धूम ऐसी मचा गया कोहरा
धूम ऐसी मचा गया कोहरा
जैसे सूरज को खा गया कोहरा
बन के अफ़वाह छा गया कोहरा
बंद कमरों मे आ गया कोहरा
तेरे पन्नों पे आज ऐ अख़बार
कितनी लाशें बिछा गया कोहरा
साँस के साथ दिल की रग-रग में
बर्फ़ की तह जमा गया कोहरा
अपने बच्चों से क्या कहे मज़दूर
घर का चूल्हा बुझा गया कोहरा
धूप कितनी अज़ीम नेमत है
चार दिन में बता गया कोहरा
उनके चेहरे पे सुरमई आँचल
चाँद पे जैसे छा गया कोहरा.
रात भर ढूँढता फिरा जुगनू
रात भर ढूँढता फिरा जुगनू
सुब्ह को ख़ुद ही खो गया जुगनू
रोशनी सब की खा गया सूरज
चाँद ,तारे, शमा, दीया, जुगनू
तीरगी[1] से यह जंग जारी रख
हौसला तेरा मरहवा जुगनू
क्यों न ख़ुश हो ग़रीब की बिटिया
उसकी मुठ्ठी में आ गया जुगनू
नूर तो हर जगह पहुँचता है
कूड़ियों में पला-बढ़ा जुगनू
धुँधले-धुँधले- से हो गए तारे
मिस्ले कन्दील[2] जब उड़ा जुगनू
चेहरे बच्चों के बुझ गए ‘राशिद’
माँ के आँचल में मर गया जुगनू.
भूल पाए न थे ट्रेन का हादसा
भूल पाए न थे ट्रेन का हादसा
आज फिर हो गया एक नया हादसा
जाने क्या हो गया आजकल दोस्तो
रोज़ होता है कल से बड़ा हादसा
बाप का साया और काँच की चूड़ियाँ
एक ही पल में सब ले गय हादसा
ऐ ख़ुदा, ईश्चर,गाड, वाहे गुरु
तेरे घर में भी होने लगा हादसा
मैं हूँ शायर, हक़ीक़त करूँगा बयाँ
साज़िशों को कहूँ, क्यों भला हादसा?
किसको फ़ुर्सत है,ये कौन सोचे यहाँ
हो गया किस गुनाह की सज़ा हादसा
तेरे घर के सभी लोग महफ़ूज़ हैं
भूल जा ‘आरफ़ी’ जो हुआ हादसा.