आपकी याद चली आई थी कल शाम के बाद
आपकी याद चली आई थी कल शाम के बाद ।
और फिर हो गई एक ताज़ा ग़ज़ल शाम के बाद ।।
मेरी बेख़्वाब निग़ाहों की अज़ीयत मत पूछ ।
अपना पहलू मेरे पहलू से बदल शाम के बाद ।।
मसअला मेज पे ये सोचके छोड़ आया हूँ ।
अब न निकला तो निकल आयेगा हल शाम के बाद ।।
तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात के गम ।
तू किसी रोज़ मेरे घर में निकल शाम के बाद ।।
छोड़ उन ख़ानाबदोषों का तज़्करा कैसा ।
जो तेरा शह्र ही देते हैं बदल शाम के बाद ।।
कोई काँटा भी तो हो सकता है इनमें पिन्हा ।
अपने पै
ज़माने के चलन पे हद से गिर जाने की बातें क्यों
ज़माने के चलन पे हद से गिर जाने की बातें क्यों
ज़बान-ए-मर्द से आख़िर मुकर जाने की बातें क्यों
अगर अहसास मर जाएँ तो बाक़ी कुछ नहीं रहता
जियो ज़िंदादिली से घुट के मर जाने की बातें क्यों
तुम्हारे ख़ून में शामिल है चट्टानें कुचल देना
ज़रा-सी ठेस पे यूँ ही बिखर जाने की बातें क्यों
जुदाई के तसव्वुर से मेरी रूह काँप जाती है
ये माना रुक नहीं सकते मगर जाने की बातें क्यों
‘मनु’ शींरी ज़बां में गुफ़्तगू करिए ज़माने से
किसी के दिल में नश्तर-सी उतर जाने की बातें क्यों
रों से न फूलों को मसल शाम के बाद ।।
गर दिल में जज़्बात नहीं
गर दिल में जज़्बात नहीं
तो फिर कोई बात नहीं
यूँ शतरंजी चाल न चल
प्यार में शह और मात नहीं
प्यार के बदले प्यार मिले
हक़ चाहा ख़ैरात नहीं
हमको छूकर मत देखो
सूरज हैं ज़र्रात नहीं
वो वापस आयेगा ही
वो भी पत्थर ज़ात नहीं
ग़म को पोशीदा ख़ुशी आम करे
ग़म को पोशीदा ख़ुशी आम करे
ज़र्फ़वाला तो येही काम करे
ये समन्दर है तश्नालब कितना
लहर में कितनी जाँ तमाम करे
हुस्न की भी अजीब ख़्वाहिश है
चाहता इश्क़ को गुलाम करे
उसकी रहमत भी यक़ीनन होगी
नेक नीयत से अगर काम करे
तेरी नज़र पे भी मुकदमा हो
तेरी नज़र तो क़त्लेआम करे
नज़र न आओ तो जीना मुहाल करती है
नज़र न आओ तो जीना मुहाल करती है
निगाह दिल से हज़ारों सवाल करती है
दूर रहकर भी नज़र में बसाए रखती है
ख़ास लम्हात का ये कितना ख़्याल करती है
अजीब शय है नज़र बस निगाह भर में ही
परखना देखना क्या-क्या कमाल करती है
भेज के दूर माँ अपने जिगर के टुकड़े को
नज़र भर देखने का खुद मलाल करती है
छुरी की, तेग़ की, खंजर की बात क्या करनी
नज़र में ख़ुद है वो कूवत हलाल करती है