पेड़ जितने सफ़र में घनेरे मिले
पेड़ जितने सफ़र में घनेरे मिले
उनके साए में बैठे लुटेरे मिले
रौशनी में नहाए अँधेरे मिले
शर्म से मुँह छुपाए सवेरे मिले
जाने यादों के पंछी कहाँ खो गए
शाख़-दर-शाख़ उजड़े बसेरे मिले
काफ़िले पर जो गुज़री नहीं जानता
अधजले और वीरान डेरे मिले
तेरे बारे में ‘रौशन’ बहुत-कुछ कहा
चाहने वाले जितने भी तेरे मिले
रुह जब बे लिबास होती है
रुह जब बे-लिबास होती है
नग्नता देह-देह रोती है
ज़िन्दगी मौत के मरुथल के
वासनाओं के बीज बोती है
दिल में कुछ और शब्द होते हैं
लब पे कुछ और बात होती है
मूल्य बाज़ार में भटकते हैं
चेतना सूलियों पे सोती है
मेरी आँखों गिरे तो पानी है
तेरी आँखों का अश्क मोती है
सच के आगे जनाब क्या करते
सच के आगे जनाब क्या करते
हो गए ला-जवाब क्या करते
लूट में जो यक़ीन रखते हैं
ज़िन्दगी का हिसाब क्या करते
ज़िन्दगी कट गई गुनाहों में
कोई कारे-सवाब क्या करते
वो जो रुसवाइयों से डरते हैं
शेर वो इन्तिखाब क्या करते
जिनको काँटों का ख़ौफ़ था ‘रौशन’
आरजू-ए-गुलाब क्या करते