उनका तो ये मज़ाक रहा हर किसी के साथ
उनका तो ये मज़ाक रहा हर किसी के साथ
खेले नहीं वो सिर्फ़ मिरी ज़िंदगी के साथ
आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ
अपनों की क्या कमी थी कोई अपने देश में
परदेस जा बसे जो किसी अजनबी के साथ
फिरते रहे वो दिल में ग़लतफ़हमियाँ लिये
ये भी सितम हुआ है मि
नाकर्दा गुनाहों की मिली यूँ भी सज़ा है
नाकर्दा गुनाहों की मिली यूँ भी सज़ा है
साकी नज़र अंदाज़ हमें करके चला है
क्या होती है ये आग भी क्या जाने समंदर
कब तिश्नालबी का उसे एहसास हुआ है
उस शख़्स के बदले हुए अंदाज़ तो देखो
जो टूट के मिलता था, तक़ल्लुफ़ से मिला है
पूछा जो मिज़ाज उसने कभी राह में रस्मन
रस्मन ही कहा मैंने कि सब उसकी दुआ है
महफ़िल में कभी जो मिरी शिरकत से ख़फ़ा था
महफ़िल में वो अब मेरे न आने से ख़फा है
क्यों उसपे जफाएँ भी न तूफान उठाएँ
जिस राह पे निकला हूँ मैं वो राहे-वफा है
पीते थे न ‘महरिष, तो सभी कहते थे ज़ाहिद
अब जाम उठाया है तो हंगामा बपा है .
री दोस्ती के साथ
‘महरिष’ वो हमसे राह में अक्सर मिले तो हैं
ये और बात है कि मिले बेरुख़ी के साथ.
इरादा वही जो अटल बन गया है
इरादा वही जो अटल बन गया है
जहाँ ईंट रक्खी, महल बन गया है
ख्याल एक शाइर का आधा-अधूरा
मुकम्मल हुआ तो ग़ज़ल बन गया है
कहा दिल ने जो शेर भी चोट खाकर
मिसाल इक बना, इक मसल बन गया है
पुकारा है हमने जिसे आज कह कर
वही वक्त कम्बखत कल बन गया है
ये दिल ही तो है, भरके ज़ख्मों से महरिष
खिला, और खिल कर कमल बन गया है
मस्त सब को कर गई मेरी ग़ज़ल
मस्त सब को कर गई मेरी ग़ज़ल
इक नये अंदाज़ की मेरी ग़ज़ल
एक तन्हाई का आलम, और मैं
पेड़-पौधों ने सुनी मेरी ग़ज़ल
खाद-पानी लफ्ज़ो-मानी का जिला
ख़ूब ही फूली-फली मेरी ग़ज़ल
जब कभी जज़्बात की बारिश हुई
भीगी-भीगी-सी हुई मेरी ग़ज़ल
फूँकती है जान इक-इक लफ्ज़ में
शोख़, चंचल, चुलबुली, मेरी ग़ज़ल
ये भी है मेरे लिए राहत की बात
जाँच में उतरी खरी मेरी ग़ज़ल
आया महरिष, शेर कहने का शऊर
मेहरबाँ मुझ पर हुई मेरी ग़ज़ल
है भंवरे को जितना कमल का नशा
है भंवरे को जितना कमल का नशा
किसी को है उतना ग़ज़ल का नशा
पियें देवता शौक से सोमरस
महादेव को है गरल का नशा
हैं ख़ुश अपने कच्चे घरौंदों में हम
उन्हें होगा अपने महल का नशा
पिलाकर गया है कुछ ऐसी अतीत
उतरता नहीं बीते कल का नशा
कोई गीतिका छंद में है मगन
किसी को है बहरे-रमल का नशा
बड़ी शान से अब तो पीते हैं सब
कि फ़ैशन हुआ आजकल का नशा
पियो तुम तो
यूँ पवन, रुत को रंगीं बनाये
यूँ पवन, रुत को रंगीं बनाये
ऊदी-ऊदी घटा ले के आये
भीगा-भीगा-सा ये आज मौसम
गीत-ग़ज़लों की बरसात लाये
ख़ूब से क्यों न फिर ख़ूबतर हो
जब ग़ज़ल चाँदनी में नहाये
दिल में मिलने की बेताबियाँ हों
फ़ासला ये करिश्मा दिखाये
साज़े-दिल बज के कहता है ‘महरिष’
ज़िंदगी रक्स डूब जाए.
महरिष सुधा शांति की
बुरा युद्ध का एक पल का नशा