करुण चरण कल्याणी जननी
करुण चरण कल्याणी जननी
मृदुल करो मम् वाणी जननी
दया‚ क्षमा का भाव जगा दो
दयामयी गुर्बाणी जननी
हरो सकल कष्टों को मेरे
जगत् सृजक ब्रह्माणी जननी
आलोकित कर दो प्रज्ञा को
तपस्विनी इन्द्राणि जननी
अतुल अलौकिक साहस दे दो
रिपु मर्दक क्षत्राणी जननी
मिले सुयश जीवन में मुझ को
करो कृपा कल्याणी जननी
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया आप का
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया आप का
हम पे रहमो करम जो हुआ आपका
आ दरे फैज पर ये तजुर्बा हुआ
आप उस के हुए जो हुआ आप का
आप की रहनुमाई में बढ़ते रहें
हर कदम पर मिले मश्विरा आप का
नूर भरते रहो लेखनी में मेरी
हाथ सर पर रहे मुस्तफा आप का
बेसहारा हैं जो भी भटकते यहाँ
उन सभी को मिले आसरा आप का
बंजर को उद्यान बना दे ऐ मौला
बंजर को उद्यान बना दे ऐ मौला
ख़ुशियों का सामान बना दे ऐ मौला
निर्गुण को गुणवान बना दे ऐ मौला
संतोषी इंसान बना दे ऐ मौला
हर मुश्किल का हल दे कर तू सब के
जीवन को आसान बना दे ऐ मौला
उल्फ़त का माहौल बना कर हर सू ही
प्यारा हिंदुस्तान बना दे ऐ मौला
सच्चाई की राह दिखाकर हम सब का
पुख्ता तू ईमान बना दे ऐ मौला
सब से ही मुख्तलिफ है अदबी सफर हमारा
सब से ही मुख्तलिफ है अदबी सफर हमारा
मंज़िल है दूर रस्ता है पुरखतर हमारा
सींचा है अपने खूं से शेरो अदब का गुलशन
शामिल है रंगो बू में खूने जिगर हमारा
तौफीक से खुदा की पाया है फन सुखन का
माँ की दुआओं से है निखरा हुनर हमारा
नाकाम हो गए हम इस को सँवारने में
बिगड़ा हुआ मुकद्दर है इस कदर हमारा
रो-ज़बर बहुत से देखे हैं ज़िंदगी ने
तोड़ा है पत्थरों ने शीशे का घर हमारा
केवल ख़ुदा के दर पर रखते हैं हम जबीं को
झुकता नहीं सभी के कदमों में सिर हमारा
करता हूँ पेश आप को नज़राना ए ग़ज़ल
करता हूँ पेश आप को नज़राना-ए-ग़ज़ल
नायाब मुश्कबार ये गुलदस्ता-ए-ग़ज़ल
तल्खाबे-ग़म न पीजिये हो तश्नगी अगर
भर-भर के जाम पीजिये पैमाना-ए-ग़ज़ल
करना जो चाहते हो हकीक़त से सामना
रक्खो ज़रा-सा सामने आईना-ए-ग़जल
मतले से ले के मक्ते तलक डूब कर कहा
कहते हैं लोग मुझ को तो दीवाना-ए-ग़ज़ल
ज्यूं ही ग़ज़ल की शमअ् को रौशन किया तभी
उड़ कर कहीं से आ गया परवाना-ए-ग़ज़ल
जब से ग़जल को माँ का सा दर्ज़ा दिया मुझे
जग ने खिताब दे दिया शहज़ादा-ए-ग़जल
मुश्किल था काम फिर भी फकत एक शेर में
‘अज्ञात’ ने सुना दिया अफसाना-ए-ग़ज़ल
न पूछो ये मुझ से कि क्या कर रहा हूँ
न पूछो ये मुझ से कि क्या कर रहा हूँ
ग़ज़ल में तजुर्बा नया कर रहा हूँ
भले इन की फ़ित्रत में है बेवफाई
हसीनों से फिर भी वफा कर रहा हूँ
कि रुख्सार पर तेरे होठों को रख कर
नमाज़े-मुहब्बत अदा कर रहा हूँ
बनाते हो मुँह क्यों सिकोडी हैं भौंहें
कहो क्या मैं कोई खता कर रहा हूँ
सदा बद दुआएं मिली मुझ को जिन से
मैं हक में उन्हीं के दुआ कर रहा हूँ
चला जा रहा हूँ मैं खुद उल्टे रस्ते
मगर दूसरों को मना कर रहा हूँ
बुजुर्गों के कदमों में सर को झुका कर
दुआओं की दौलत जमा कर रहा हूँ
‘अजय’ रू ब रू आइना अपने रख कर
कि खुद का ही मैं सामना कर रहा हूँ
अभी उम्मीद है ज़िंदा अभी अरमान बाकी है
अभी उम्मीद है ज़िन्दा अभी इम्कान बाक़ी है
बुलंदी पर पहुँचने का अभी अरमान बाक़ी है
हुआ है दूर कोसों आदमी संवेदनाओं से
बदलते दौर में बस नाम का इंसान बाक़ी है
सजा लो जितना जी चाहे रंगीले ख़्वाब आँखों में
दुकानों पर सजावट का बहुत सामान बाक़ी है
कहाँ ले चल दिए हो तुम उठा कर चार कांधों पर
अभी तो दिल धड़कता है अभी कुछ जान बाक़ी है
सुनाता हूँ ज़रा ठहरो हकीकत ज़िंदगानी की
कहानी तो मुकम्मल है मगर उन्वान बाक़ी है
अभी कुछ लोग हैं ऐसे उसूलों पर जो चलते हैं
अभी कुछ लोग हैं सच्चे अभी ईमान बाक़ी है
हुए ‘अज्ञात’ से वाकिफ हजारों लोग दुनिया में
मगर ख़ुद ही से ख़ुद उस की अभी पहचान बाक़ी है
घर के हर सामान से बिल्कुल जुदा है आईना
घर के हर सामान से बिल्कुल जुदा है आइना
बेजुबां हो कर भी सब कुछ बोलता है आइना
कह रहा सारा ज़माना बेहया है आइना
ऐ हसीनो तुम बताओ क्या बला है आइना
कर लो लीपापोती कितनी ही भले चेहरे पे तुम
असलियत सारी तुम्हारी जानता है आइना
आइने को देख कर इतरा रही है रूपसी
रूपसी को देख कर इतरा रहा है आइना
कातिलाना मुस्कुराहट‚ तिरछी नज़रें‚ लट खुलीं
नाज़नीं की हर अदा पर मर मिटा है आइना
खो गई इस की चमक भी साथ बढ़ती उम्र के
देखिये ‘अज्ञात’ अब धुंधला गया है आइना
एक पल को ख़ुशी बख्श दे
एक पल को खुशी बख़़्श दे
रेशमी ज़िंदगी बख़़्श दे
तीरगी का सफ़र ख़़त्म हो
राह में रौशनी बख़़्श दे
मौसमे – गुल हमेशा रहे
इस क़़दर ताज़गी बख़़्श दे
ज़िंदगी के लिए हौसला
है बहुत लाज़मी बख़़्श दे
दिल में अरमां मचलने लगे
लज़्ज़तएशायरी बख़़्श दे
ज्ञान का दीपक जला दे
ज्ञान का दीपक जला दे
तू जहालत को मिटा दे
ज़िंदगी को हौसला दे
नेक रस्ते पर चला दे
कुदरती आबो हवा दे
ख़ुशनुमा मंज़र बना दे
फूल गुलशन में खिलेंगे
तू ज़रा सा मुस्कुरा दे
खूब है ये ज़िंदगानी
खूबतर इस को बना दे
मुश्किलें ही मुश्किलें हैं
मुश्किलों का हल बता दे
बेहिसो लाचार हैं जो
मत उन्हें तू यातना दे
ज़िंदगी है कशमकश में
क्या करूं कुछ मश्विरा दे
फड़फड़ाता है परिंदा
क़ैद से इस को छुड़ा दे
जा रहा हूँ दूर तुझ से
हाथ रुख़्सत को हिला दे
चाहता हूँ तुझ से मिलना
ऐ ख़ुदा अपना पता दे
लेता हूँ उस का नाम बड़े एहतिराम से
लेता हूँ उस का नाम अदब ओ एहतिराम से
बख्शा है जिस ने मुझ को इस इल्मेक़लाम से
करता हूँ सुब्होशाम उसी की मैं बंदगी
चलती है कायनात ही जिस के निजाम से
कदमों को जो मिलाना हो रफ्तारेवक़्त से
चलना पड़ेगा दोस्तो जोशो खिराम से
कातिल नज़र से देख कर हौले से मुस्कुरा
वो दिल चुरा के ले गई पहले सलाम से
तन तो बसेरा ह्रैअजय’ चंद सांसों का फकत
जाना है सब को एक दिन अपने क़याम से
अंतर में विश्वास जगाओ
अंतर में विश्वास जगाओ
उम्मीदों के दीप जलाओ
जीते जी हिम्मत मत हारो
बाधाओं से जा टकराओ
संयम और समझ से अपनी
हर मुश्किल आसान बनाओ
कर लो दूर उदासी मन की
होठों पर मुस्कान सजाओ
पीछे मुड़़ कर मत देखो तुम
जीवनपथ पर बढ़ते जाओ
कोई मौका मत चूको तुम
हर अवसर का लाभ उठाओ
महिमा अपरंपार तुम्हारी गंगा जी
महिमा अपरंपार तुम्हारी गंगा जी
भव सागर से पार लगाती गंगा जी
गौमुख से गंगा सागर तक अमृतमय
बहती अविरल धार निराली गंगा जी
निर्मल जल अंतस को देता शीतलता
अंतर्मन की प्यास बुझाती गंगा जी
सिंचित करती संस्कारों को धरती पर
जन जन के संत्रास मिटाती गंगा जी
पूनम का जब चाँद चमकता है नभ में
सब को शाही स्नान कराती गंगा जी
हर किसी को ख़ुशी चाहिये
हर किसी को ख़ुशी चाहिए
पुरसुकूं ज़िंदगी चाहिए
चाहतों की कहाँ इंतिहा
जाम को तिश्नगी चाहिए
पार कर लूंगा सब मुश्किलें
बस दुआ आप की चाहिए
आर्जू और कुछ भी नहीं
इक तिरी बंदगी चाहिए
जीत को हौसले के सिवा
क़़ल्ब में आग भी चाहिए
करे जो परवरिश वो ही ख़ुदा है
करे जो परवरिश वो ही ख़ुदा है
उसी का मर्तबा सब से बड़ा है
बुरे हालात में जो काम आए
उसे पूजो वो सचमुच देवता है
धुआं फैला है हर सू नफरतों का
मुहब्बत का परिंदा लापता है
न जाने हश्र क्या हो मंज़िलों का
यहाँ अंधों की ज़द पे रास्ता है
अगर हो साधना निष्काम अपनी
जहाँ ढूढ़ो वहीं मिलता ख़ुदा है
वहीं होती सदा सच्ची कमाई
जहाँ भी नेकियों का क़ाफ़िला है
मस्ज़िद में वो मिला है न मंदिर ही में मिला
मस्ज़िद में वो मिला है न मंदिर ही में मिला
उसका वज़ूद क़़ल्ब के भीतर ही में मिला
ये आस्था की बात है इसके सिवा न कुछ
इक बुतपरस्त को तो वो पत्थर ही में मिला
ढूंडा मगर न मिल सका अर्श ओ ज़मीन पर
इक आबदार मोती समंदर ही में मिला
क़़दमों में बैठ माँ के ज़ियारत भी हो गई
मक्कामदीना मुझको इसी घर ही में मिला
मालूम था कि ख़ारा है फिर भी न जाने क्यूँ
बह कर नदी का पानी तो सागर ही में मिला
आइए कुर्आन की इस्लाम की बातें करें
आइए क़ुर्आन की इस्लाम की बातें करें
बाइबिल‚ गुरूग्रंथ साहिब‚ राम की बातें करें
वक़्त न जाया करें बेकार की बातों में हम
आइए इस क़ौम की इख़दाम की बातें करें
अनछुए पहलू को छूना है ज़रूरी अब बहुत
सीधेसीधे आइए हम काम की बातें करें
प्रगति में बाधक बने हैं लोग जो इस देश की
खेंच दें सूली पे क्या इल्ज़ाम की बातें करें
सिरफिरों को रास्ते पर लाएँ हम समझा बुझा
प्यार ही से‚ प्यार के पैग़ाम की बातें करें
देश हो‚ माँबाप हों या हो बड़ा-बूढ़ा कोई
सब की ख़ातिर हम सदा इक्राम की बातें करें
ये तक़ाज़ा है समय का मंज़िलेमक़्सूद को
बिन किए हासिल न हम विश्राम की बातें करें
आइए कुछ देर हमतुम पूर्णिमा की रात में
चाँद‚तारों‚ चर्खे नीलीेफ़ाम की बातें करें
हों ऋचायें वेद की या आयतें कुर्आन की
हों ऋचायें वेद की या आयतें कुर्आन की
राह दोनों ही दिखाती हैं हमें ईमान की
बाइबल औ ग्रंथ साहिब का भी ये पैग़ाम है
हो सभी के वास्ते सद्भावना इंसान की
चाय के प्याले के संग दो चार बिस्किट रख दिए
अब नहीं पहली सी ख़ातिर होती है महमान की
मत *तअस्सुब पालिये अपने दिलों में दोस्तो
प्यार से मिल कर रहो है माँग हिंदुस्तान की
आपसी विश्वास हर संबंध की बुनियाद है
चाह है ‘अज्ञात’ सब को आप सी सम्मान की
तुम जुबां पर हर घड़ी नामे ख़ुदा रक्खा करो
तुम जुबां पर हर घड़ी नामे ख़ुदा रक्खा करो
हर किसी के वास्ते लब पर दुआ रक्खा करो
मत जरूरत से अधिक तुम वास्ता रक्खा करो
अज्नबी से दो कदम का फासला रक्खा करो
बेवजह बैठे बिठाए दुश्मनी मत मोल लो
हर किसी के सामने मत आइना रक्खा करो
मुश्किलों से पार पाने का यही है रास्ता
मुश्किलों के दौर में तुम हौसला रक्खा करो
कह रहा ‘अज्ञात’ रूहे रौशनी के वास्ते
दिल का दरवाजा ज़रा सा तुम खुला रक्खा करो
कहाँ कोई हिंदू मुसलमां बुरा है
कहाँ कोई हिंदू मुसलमां बुरा है
जो नफ़रत सिखाए वो इंसां बुरा है
सियासत में हरगिज़ न इन को घसीटो
न गीता बुरी है न कुर्आं बुरा है
लहू जो बहाता है निर्दोष जन का
यकीनन अधर्मी वो शैतां बुरा है
उजाड़े नशेमन परिंदों का नाहक
उखाड़े शजर जो वो तूफां बुरा है
गलत या सही जैसे-तैसे हमारे
खजाने भरे हों ये अरमां बुरा है
हुनर सीख लो मुस्कुराने का ग़म में
हमेशा ही रहना परेशां बुरा है
सफर ज़िंदगी का है ‘अज्ञात’ छोटा
जुटाना बहुत सारा सामां बुरा है
गीता-सी या कुर्आन-सी उम्दा किताब बन
गीता-सी या कुर्आन-सी उम्दा किताब बन
बन कुछ भी ज़िंदगी में मगर लाजवाब बन
जुगनू नहीं चिराग या फिर आफताब बन
तारीकियों में नूर का तू इंकलाब बन
हाथों पे हाथ धर के न तक़दीर आजमा
तदबीर की बिसात पर तू कामयाब बन
नापाक बद नज़र से बचा कर शबाब को
पर्दे में रह के हुस्न का तू माहताब बन
‘अज्ञात’ ग़मे-हयात के काँटों के बीच तू
खुशबू बिखेरता हुआ दिलकश गुलाब बन
दर्द से उपजा हुआ इक गीत लिख
दर्द से उपजा हुआ इक गीत लिख
हर्फ़ेनफ़रत को मिटा कर प्रीत लिख
ज़िंदगी की राह पर चलते हुए
है सुलभता से मिली कब जीत लिख
प्रेरणा से पूर्ण हो तेरा सृजन
प्राण जो चेतन करे वो गीत लिख
पैरवी कर लेखनी से सत्य की
झूठ से हो कर नहीं भयभीत लिख
आज़माना चाहता है गर हुनर
आज के परिवेश के विपरीत लिख
किस तरह परमात्मा से हो मिलन
साधना की कौन सी हो रीत लिख
और कैसे कट रही है ज़िंदगी
हो रहा कैसे समय व्यतीत लिख
शिल्प का सौंदर्य केवल मत दिखा
भावना को मथ के तू नवनीत लिख
इज़हारेग़म शे’रों में यूं लिख कर करता हूँ
इज़हारे ग़म शे’रों में जब लिख कर करता हूँ
कहते हैं सब मैं तो जादूमंतर करता हूँ
जबतब घर में आने वाले महमानों की मैं
ख़ादिम बन कर ख़ातिरदारी जम कर करता हूँ
शब्दों रूपी मोती की माला को चितवन से
अर्पित सब पढ़ने वालों को सादर करता हूँ
रचनाओं में जीवन के सब रंगों को भर कर
हर पन्ने पर इज़हारे दिल खुल कर करता हूँ
दुनिया चाहे कुछ भी बोले मुझ को क्या करना
जो भी करता हूँ मैं मन की सुन कर करता हूँ
सज़्दा जब भी करना होता ऊपर वाले का
बूढ़ी माँ के चरणों को मैं छू कर करता हूँ
विपदाओं के तम में निज उम्मीदों को रौशन
मंदिर की चौखट पर जा कर अक्सर करता हूँ
मैंने वहशत में तेरा नाम सरे-आम पढ़ा
मैंने वहशत में तेरा नाम सरे-आम पढ़ा
अपने हाथों की लकीरों में तेरा नाम पढ़ा
मैंने हर साँस‚ हर इक लम्हा‚ तेरा नाम पढ़ा
कभी अल्लाह‚ कभी ईसा‚ कभी राम पढ़ा
तेरे होठों पे ज़माने ने जो डाले ताले
मैंने आँखों के इशारों को सरे-शाम पढ़ा
लाख इल्ज़ाम लगाती रही दुनिया लेकिन
प्यार का कलमा रह-ए-इश्क में हर ग़ाम पढ़ा
अपने बच्चों को खिलौना भी न इक दे पाया
मैंने अखबारों में बढ़ता हुआ जब दाम पढ़ा
अपने दिल में इतनी कुव्वत रखता हूँ
अपने दिल में इतनी कुव्वत रखता हूँ
सच को सच कहने की जुर्अत रखता हूँ
बेशक मिट्टी का दीपक हूँ लेकिन मैं
तम से टकराने की हिम्मत रखता हूँ
कहते हैं मुझ से मेरे संगी-साथी
शाइर जैसी मैं भी फ़ित्रत रखता हूँ
बेअदबी से मुझ से बातें मत करिये
ग़ैरतमंद हूँ मैं भी इज्ज़त रखता हूँ
मेरे दीवानेपन की हद तो देखो
ख़्वाबों में भी तेरी हसरत रखता हूँ
मेरे भी दिल में पलते हैं कुछ अरमां
मुस्कानों की मैं भी चाहत रखता हूँ
हैरां हैं तितली भंवरे‚ क्यों गुल हो कर
ख़ारों से मैं इतनी निस्बत रखता हूँ
ये तो बता कि दूर खड़ा सोचता है क्या
ये तो बता कि दूर खड़ा सोचता है क्या
आता नहीं है पास भला सोचता है क्या
उल्फ़त का इक चराग़ तो रौशन तू दिल में कर
दुश्मन से जा के हाथ मिला सोचता है क्या
परवान चढ़ती जायेगी ये ज़िंदगी तिरी
सुंदर तू आचरण को बना सोचता है क्या
मिल जाएंगे निदान समस्याओं के तुझे
कोशिश तो कर क़़दम तो बढ़ा सोचता है क्या
रंगीन ख्व़ाब देख तू कैसे भी रंग में
काला‚ सफेद‚ लाल‚ हरा सोचता है क्या
जिस तरफ देखो मचा कोहराम है
जिस तरफ देखो मचा कुहराम है
हो रही क्यों आबरू नीलाम है
दर्दे-दिल‚ रुसवाईयाँ‚ तन्हाईयाँ
इश्क़ का होता यही अंजाम है
छा रही है रफ्ता-रफ्ता तीरगी
ढल रही अब ज़िंदगी की शाम है
मुफ़्लिसी‚ बेरोज़गारी‚ भुखमरी
हाक़िमों की लूट का परिणाम है
किसलिए दर पर खड़े हो देर से
आपको मुझ से भला क्या काम है
यूं पहेली मत बुझाओ बोल दो
बात कोई ख़ास है या आम है
देखिए तो किस तरह हर आदमी
ज़िंदगी से कर रहा संग्राम है
काम में मसरूफ है अज्ञात भी
एक पल को भी नहीं आराम है
हर वक़्त दिल पे जैसे कोई बोझसा रहा
हर वक़्त दिल पे जैसे कोई बोझसा रहा
दिनरात कोई बात यूं ही सोचता रहा
संयम से मैंने काम लिया उलझनों में भी
हर फैसले पे अपने अडिग मैं सदा रहा
अंग्रेज तो चले गए भारत को छोड़ कर
अंग्रेजियत का कोढ़ मगर फैलता रहा
लिखता रहा मैं लेखनी को खूं में डुबो कर
उर में जगाता सब के नई चेतना रहा
मैंने किये वो काम सदा दिल से दोस्तो
जिन में भी मेरे देश का कुछ फायदा रहा
प्रारंभ से रूचि मिरी हिन्दी ही में रही
कविताओं से विशेष मेरा राबिता रहा
आवाज़ आत्मा की सदा सुनता रहा मैं
कोई भी मुझ को कुछ भी भले बोलता रहा
उलझा रहा हर आदमी रोटी की फिक्र में
पैसे के पीछे उम्रभर वो दौड़ता रहा
आश्ना‚ नाआश्ना‚ अच्छा‚बुरा कोई तो हो
आश्ना‚ नाआश्ना‚ अच्छा-बुरा कोई तो हो
ज़िंदगी के इस सफ़र में हमनवा कोई तो हो
मुश्किले हालात में मुश्किल कुशा कोई तो हो
पारसाई जो सिखाये पारसा कोई तो हो
सामना जुल्मो सितम का कर सके बाहौसला
जो जले तूफ़ान में ऐसा दिया कोई तो हो
ग़म पे ग़म पैहम मुझे क्यों दे रहा है ऐ खुदा
यूं सितम ढाने की आख़िर इंतिहा कोई तो हो
काश इन तारीकियों के टूट जाएं राबिता
रौशनी से निस्बतों का सिलसिला कोई तो हो
मेरे हाफिज़ ये बता मैं जाऊं तो जाऊं कहाँ
देने वाला इस जहां में आसरा कोई तो हो
रहमतों के अब्र बरसें भी तो कैसे दोस्तो
काफ़िरों की भीड़ में अहले-ख़ुदा कोई तो हो
नाज़नीं‚ मन मोहिनी इक कामिनी‚ गजगामिनी
चाँद से रुख़्सार वाली दिलरुबा कोई तो हो
पैकरेख़ाकी तुझे मैं छोड़ तो जाऊं मगर
बाद मेरे पढ़ने वाला फ़ातिहा कोई तो हो
थक गया हूं काटते चक्कर अदालत के ‘अजय’
हक़ में हो चाहे किसी के फ़ैसला कोई तो हो
शाइरों की भीड़ में ‘अज्ञात’ सच्चा नेक दिल
नुक़्तादाँ ‘रहबर’ के जैसा रहनुमा कोई तो हो
कहा मोम ने ये पिघलते पिघलते
कहा मोम ने ये पिघलते-पिघलते
रफ़ीक़़ेसफ़र हैं अदलते-बदलते
बहुत देर कर दी दयारेफ़लक में
सुनहरी प्रभा ने निकलते-निकलते
पहुंच ही गए हैं निकट मंज़िलों के
क़दम रफ़्तारफ़्ता‚ संभलते-संभलते
नहीं क्यों है थकती शबोरोज़ आख़िर
जबां आप की विष उगलते-उगलते
चले आइएगा कभी बाग़े-दिल में
किसी रोज़ यूं ही टहलते-टहलते
‘अजय’ इन पुरानी बुरी आदतों को
समय तो लगेगा बदलते-बदलते
सारे जहां को प्यार का पैग़ाम दे चलूँ
सारे जहां को प्यार का पैग़ाम दे चलूँ
आधे-अधूरे काम को अंजाम दे चलूँ
पी कर जिसे सुकून मिले तश्नगी मिटे
उल्फ़त भरा जहान् को वो जाम दे चलूँ
इल्मोअदब की कर रहे हैं जो भी ख़िदमतें
सोचूं कि कुछ न कुछ उन्हें इन्आम दे चलूँ
हाथों की इन लकीरों का कोई नहीं क़सूर
फिर कैसे इन को बेवजह इल्ज़ाम दे चलूँ
तुम को ग़ज़ल कहूँं कि रुबाई कहूँ कोई
जो तुम को हो पसंद वही नाम दे चलूँ
जाती है जहाँ तक ये नज़र देख रहा हूँ
जाती है जहाँ तक ये नज़र देख रहा हूँ
बदलाव इधर और उधर देख रहा हूँ
जिस गाँव के खेतों में कभी उगता था सोना
उस गाँव में उद्योग नगर देख रहा हूँ
भूचाल कहीं बाढ़ से होती है तबाही
इंसान पे क़ुदरत का क़हर देख रहा हूँ
भाती नहीं औलाद को माँबाप की बातें
बचपन पे जवानी का असर देख रहा हूँ
कैक्टस से घिरा मौन बिचारा-सा खड़ा इक
तहज़ीब का मैं सूखा शजर देख रहा हूँ
चमकेगा मिरे लख़्तेजिगर तेरा सितारा
बढ़ता हुआ मैं तुझ में हुनर देख रहा हूँ
अब रात यहाँ देर तलक टिक नहीं सकती
मैं उगती हुई एक सहर देख रहा हूँ
माँबाप का आशीष सदा साथ रहा है
मैं उन की दुआओं का असर देख रहा हूँ
‘अज्ञात’ मुझे छोड़ गया काफिला पीछे
चुपचाप खडा गर्देसफ़र देख रहा हूँ
इस से बढ़ कर और भला ग़म क्या होगा
इस से बढ़ कर और भला ग़म क्या होगा
उम्मीदों ने तोड़ दिया दम क्या होगा
पगपग पर हैं आज मुखासिम क्या होगा
होता कत्लेआम मुहर्रम क्या होगा
चारागर की आम दवाई से मेरे
ज़ख़़्मी दिल का दर्द भला कम क्या होगा
पल भर को भी नींद नहीं आती मुझ को
सोचूं सारी रात सहरदम क्या होगा
तुम हो मेरे साथ तो रुत मस्तानी है
बिन तेरे दिलदार ये मौसम क्या होगा
चिंता है फुटपाथ पे सोने वालों की
होगी जब बरसात झमाझम क्या होगा
सोच रही औलाद वसीयत से पहले
साँस गई जो बूढे की थम क्या होगा
सुनते ही आवाज शहदसा घुलता है
छेड़ोगे जब तान तो हमदम क्या होगा
ये जिस्म ‚ ये लिबास यहीं छोड़ जाऊंगा
ये ज़िस्म ये लिबास यहीं छोड़ जाऊंगा
जो कुछ है मेरे पास यहीं छोड़ जाऊंगा
जब जाऊंगा तो कोई न जायेगा मेरे साथ
सब लोगों को उदास यहीं छोड़ जाऊंगा
भरभर के जाम जिन में पिये उम्रभर वही
खुशियों भरे गिलास यहीं छोड़ जाऊंगा
जाऊंगा मुस्कुराते हुए इस जहान् से
कड़वाहटें खटास यहीं छोड़ जाऊंगा
पढ़ लेना मेरे शे’र तुम्हें याद आऊं जब
ग़ज़लें तुम्हारे पास यहीं छोड़ जाऊंगा
निराशा में बढ़ाना हौसला है लाज़िमी बेशक
निराशा में बढ़ाना हौसला है लाज़िमी बेशक
सफ़र में साथ होना आश्ना है लाज़िमी बेशक
मिज़ाजे शायरी को जानना है लाज़िमी बेशक
ख़यालों का ज़मीं से वास्ता है लाज़िमी बेशक
अगर हैवान बनता जा रहा हो अपने कर्मों से
दिखाना आदमी को आइना है लाज़िमी बेशक
सबक़़ इंसानियत का भी पढ़ाओ बच्चों को अपने
पढ़ाना प्यार का भी क़ायदा है लाज़िमी बेशक
न जाने नफ़रतों का कब फटे ज्वालामुखी दिल में
इरादे दुश्मनों के भांपना है लाज़िमी बेशक
कि साज़िश गर्दिशे अय्याम जब करने लगे यारो
किनारे कश्तियों को थामना है लाज़िमी बेशक
जवानी जोश में आ कर भटक जाए न मंज़िल से
दिखाना नौजवां को रास्ता है लाज़मी बेशक
ज़िंदगी बेमज़ा हो गई
ज़िंदगी बेमज़ा हो गई
देखिये क्या से क्या हो गई
फिर रही है बुझाती दिये
सरफिरी ये हवा हो गई
चाहियें अब दुआएं मुझे
बेअसर हर दवा हो गई
नैट पर चैट करते हैं सब
डाक तो लापता हो गई
आज कल देखिये डॉटकॉम
हर किसी का पता हो गई
इम्तिहां लोगे यूं कब तलक
छोडिए इंतिहा हो गई
है समन्दर आसमानी क्यों भला
है समन्दर आसमानी क्यों भला
हर तरफ़ पानी ही पानी क्यों भला
मुफ़लिसों को फ़िक्र है इस बात की
हो रही बेटी सयानी क्यों भला
फिर रही है दरबदर बिन लक्ष्य के
ठोकरें खाती जवानी क्यों भला
आप के लब देखकर आई समझ
हो गया ख़त ज़ा’फ़रानी क्यों भला
खास कुछ लोगों पे बस मौला मिरे
वक़्त की ये मह्रबानी क्यों भला
यहाँ खतरे में सब की आबरू है
यहाँ खतरे में सब की आबरू है
फ़ज़ा जाने ये कैसी चारसू है
समय के वेग से आगे निकल कर
ख़बर बनने की सब की आर्ज़़ू है
जिसे तुम ढूड़ते हो मंदिरों में
मिला मुझ को वो माँ में हूबहू है
पिता के रूप में मुझ से क़सम से
मसीहा रोज़ होता रूबरू है
किसे छू कर चली आईं हवाएँ
फ़ज़ा भी हो गई अब मुश्कबू है
गुलों से महकता चमन चाहिए
गुलों से महकता चमन चाहिए
मुकम्मल निज़ामे वतन चाहिए
हरे पेड़पौधों से शोभित धरा
सितारों भरा इक गगन चाहिए
परस्पर रहें सब यहाँ प्यार से
ज़़माने में मुझ को अमन चाहिए
सफलता की खातिर यकीनन हमें
जतन‚ हौसला और लगन चाहिए
मसर्रत इसी में है मिलती मुझे
ख़ुदा मुझ को फिक्रेसुखन चाहिए
जहाँ गूंजतीं हों रुबाई‚ ग़ज़ल
‘अजय’ को वही अंजुमन चाहिए
नव सृजन करता रहा तन्हाइयों के बीच में
नव सृजन करता रहा तन्हाइयों के दरमियाँ
हौसला छोड़ा नहीं कठिनाइयों के दरमियाँ
देखते ही देखते तूफान इक ऐसा उठा
कश्तियाँ जाती रही गहराइयों के दरमियाँ
आज़माने के लिए तक़दीर को हम भी सनम
हो गए शामिल तिरे शैदाइयों के दरमियाँ
काट कर मेरे परों को ये कहा सैयाद ने
अब ज़रा उड़ कर दिखा ऊंचाइयों के दरमियां
है बुजुर्गों की दुआओं का असर शायद ‘अजय’
आ गई है ज़िंदगी रा’नाइयों के दरमियाँ
जो सर झुका के हाथ कभी जोड़ता नहीं
जो सर झुका के हाथ कभी जोड़ता नहीं
वो जानता अदब का ज़रा क़ायदा नहीं
हर शख़्स का पता हुआ है आज डॉट कॉम
क़ासिद गलीगली में यहाँ घूमता नहीं
है कामयाब शख़्स वही दोस्तो यहाँ
सच्चाई की डगर जो कभी छोड़ता नहीं
इंसान उस को दोस्तो कैसे कहें भला
जो दूसरों के हित में ज़रा सोचता नहीं
अफसोस की है बात बिना गर्ज़ के यहाँ
रखता किसी से कोई ज़रा वास्ता नहीं
मुश्किल ज़रूर पेश उसे आएगी यहाँ
सांचे में ख़़ुद को वक़्त के जो ढालता नहीं
‘अज्ञात’ ख़ुद तलाशता है अपना रास्ता
वो दूसरों के नक़्शेक़दम ढूंड़ता नहीं