Skip to content

मातृभूमि

युद्ध मातृभूमि के लिए होते आए है, होते रहेंगे
देश पर मिटने वाले हर दिल में जीवित रहेंगे।

अमर हो जाना यूँ किसी के वश की बात नहीं
प्राण आहुति देने वाले माटी में समाहित रहेंगे

साक्षी रहेगा इतिहास, वीरों की क़ुरबानी का
लहु के रक्तिम कतरे स्मृति में संचित रहेंगे

महकती समर भूमि शहादत के पलाशों से
सिपाही देश के सरहद तक न सीमित रहेंगे

हो जाएँगे खाक कट जाएगा मस्तक हमारा
तिरंगे की फिर भी आन बान सहित जियेंगे

परिवर्तित होगा समय हवाएँ रुख बदल लेंगी
चर्चे सपूतों के युगों-युगों तक सर्वविदित रहेंगे

स्त्रियाँ 

जीर्ण शीर्ण अट्टालिकाओं की
भित्तियों पर
अजंता-एलोरा की गुफाओं में
उकेरी सुन्दर नक्काशी में
नजर आती है
स्त्रियों की विभिन्न भाव भंगिमाएँ
स्मित बिखेरती मुद्राएँ
सतरंगों में लिपटी पेंटिंग्स,
सुर्ख रंगों में चमकते नयन
अधखुले अधरों से बहता मधुर रस!
खुले स्याह केश!
मन को वीरान टापू पर
लिए जाते हैं
लेकिन
इन बदरंग भित्तियों के गर्भ में लुप्त
भीगी पलकों के कोर पर ठहरी अश्क की बूँदें
अदृश्य ही रह जाती है!
नयनाभिराम चित्रों के
सतरंगी रंगों में छुपा
श्र्वेत-श्याम रंग
कहाँ नजर आता है!
चकाचोंध में जहान की
हजारों दर्शक रूपेण चक्षु
प्रकाश
ही देखना चाहती हैं
अंधकार नहीं!
सुनो!
प्राचीन और आधुनिक स्त्रियों!
तुम सिर्फ़
सजावट का सामान हो!
विज्ञापनों का आधार हो!
सौंदर्य का बाज़ार हो!
सुनो स्त्रियों
अधरों को सिल लो
मजबूत इक धागे से
केवल मुस्कुराओ,
खिलखिलाओ!
क्योंकि
तुम्हारी ये उन्मुक्त हँसी
सबको सुकून जो देती है…

विश्व सिरमौर

विश्व-सिरमौर यह, भारतवर्ष हमारा है
भवभूतियों से उज्ज्वल, जगत का सहारा है।
प्रसिद्ध इस पुण्यभूमि के हम आर्य हैं कहलाते
दक्ष हम हर कला में, आचार्य हम ही कहलाते।
पावन ऋषि भूमि है ये, पावन-सी सुर गंगा है
नित शीश नवाते हम, विजयी हमारा तिरंगा है।
बसंत, पतझर, ग्रीष्म, शीत ऋतुएँ आती जातीं
ज्योति-कलश रश्मियाँ, मधुर यहाँ लुढ़काती।
साहस अभिमन्यु का, परिचायक मेरे देश का
करते सदा पालन हम संस्कारों के आदेश का।
चल कर कंटीले-पथ पर, विजय-मार्ग हम चुनते हैं
हम भारतवासी सर्वदा, मन की अपने सुनते हैं।
गौरवमयी मेरी धरती माता सदियों यूँ ही फले फूले
हे माँ! तेरे अँगना में, सुख-समृद्धि सदा झूला झूले।

जीवन सार 

सदियाँ बीत गयी
इक उलझन सुलझाने में
अनगिनत हस्तियाँ
आई
और
चली गयी होंगी
असंख्य किरदार
फ़ना हो गए होंगे
सुल्तान फ़क़ीर हो गए होंगे
अश्क बह कर
समंदर बन गए होंगे
मुस्कान आहें बनी होंगी
आह पुनः स्मित बनी होगी
अभिमन्यु
हाँ! अभिमन्यु-सा मन
चक्रव्यूह में विचरण कर
योगी बन
इकतारा लिए हाथ
घुम्मकड़-सा
फिर होगा
यत्र-तत्र
हिमालयी गुफाओं में
एकाग्रचित्त हो
मनन चिन्तन किया होगा
बारम्बार
किन्तु फिर भी वह
एक अंश भी
सार न पा सका होगा
थाह न पा सका होगा
जीवन के इन
गूढ़ रहस्यों का

प्रेम

प्रेम इस जीवन का मूल आधार होता है
निश्चल भावों का इसमें संचार होता है
इक मन दूजे मन को तब ही पढ़ पाता है
ईश्वर का जब हम पर यह उपकार होता है
दुनिया में जीना सुनो आसान नहीं होता
जीत लेगा निज मन, वही बस पार होता है
राहों पर असत्य की यहाँ जो भी है चलता
जीवन उसका तो हाँ केवल खार होता है
परवाह करे जो अपनों की जान से बढ़कर
जीतने हर बाजी वही तैयार होता है
कर लो तुम चाहे पूरी दुनिया का भ्रमण
चरणों में मात पिता के संसार होता है

मन वृन्दावन 

सरल प्रेम जो महके तो मन वृन्दावन हो जाए
बरसे नेह की बरखा यह जग सावन हो जाए

बसा लो तुम हृदय में, यदि कृष्ण-सा मिले कोई
यह मन तुम्हारा राधिका सम पावन हो जाए

समझ लो बात अनकही, उनके भी मन की तुम
चहके फूलों की क्यारी, उपवन आँगन हो जाए

पहचान लें पर-पीर, जग होगा दुखों से दूर
बिखरेगी ख़ुशी हर ओर जहाँ मनभावन हो जाए

बुनती हैं सलाइयों पर

बुनती हैं सलाइयों पर
औरतें
नित नए ख्वाब
सिलती हैं उधडी कतरने…
बोती हैं मन के गमले में
एक गुलाब
सींचती हैं उसे
दर्द की बूंदों से…
रेशम के लच्छों-सी
उलझी ज़िन्दगी को
अधपकी धूप में बैठ
सुलझाती हैं
नेह की ऊष्मा से…
नवाकर दे कर
करती हैं पोषित
कच्चे घड़े को
भरती हैं उसमे प्रान…
बांधती हैं पग में
प्रतिबंधित घुंघरू
थिरकती हैं
अपनी ही ताल पर…
हरी अमियाँ जैसे अधकचे ख्वाब
सहजती हैं
हृदय रुपी मर्तबान में…
और
फिर एक दिन
पहन लेती हैं पंख
भरती हैं ऊँची उड़ान…
उसके पश्चात्
नहीं रुकते उनके कदम
तत्पश्चात वह
छू ही लेती हैं आकाश!

पत्थर मील के 

तख्त ताज़ सब इस जमीं पर रह जायेंगे
पत्थर मील के अनकही दास्ताँ कह जाएँगे।

हुई जो आँखें बंद, दुनिया हमें भुला देगी
अश्क आँखों के कुछ दिन ज़रूर बह जाएँगे।

बोले हैं मीठे बोल हमने यहाँ इक दूसरे से
बाद हमारे केवल वही तो यहाँ रह जाएँगे।

ऊँचे महल चौबारे बनवाए यहाँ कितनों ने
संग लहरों के वे भी इक दिन ढह जाएँगे।

दिए जा रहे हैं दर्द हमको अपने ही बेशुमार
आखिरी दम तलक सभी हम सह जाएँगे।

बोले हैं मीठे बोल जो यहाँ इक दूसरे से
बाद हमारे केवल वही तो बस रह जाएँगे।

देश की माटी

माटी से देश की नहीं ऊँचा कोई सम्मान है
यही तो हमारी रोज़ी रोटी यही बस ईमान है।

देखे हैं वतन यूँ तो कई हमने पूरी दुनिया में
जुदा मगर सबसे यही हमारा हिंदुस्तान है।

चरन पखारे इसके, नदियाँ ये पावन कितनी
धरती ये वीरों की, हम इस पर कुर्बान हैं।

हुए शहीद कितने कि इस पर आंच न आए
कुरुक्षेत्र हल्दीघाटी अमिट इसकी पहचान हैं।

ज्ञान दीप 

धीर हों हम, गम्भीर हों
शील हों हम, शमशीर हों
अटल हमारे इरादे हों
टूटे न कभी वह वादे हों
मन के हम नेक हों
विचारों में सदा एक हों
बने प्रेरक समाज के
आस्था और विश्वास के
मन के हम क़ाज़ी बनें
जीत की हम बाजी बनें
रहें प्रशस्त धर्म पर
शोध करें हम मर्म पर
पावन हम सीप बनें
ज्ञान के हम दीप बनें

Leave a Reply

Your email address will not be published.