तुम्हारा अक़्स उभरा जा रहा है
तुम्हारा अक़्स उभरा जा रहा है,
लहू आँखों से बहता जा रहा है,
मैं जितनी दूर होती जा रही हूँ,
वो उतना पास आता जा रहा है,
मुझे डोली में रुख़सत कर के देखो,
मेरा क़िरदार बदला जा रहा है,
वो गाड़ी दूर भागी जा रही पर,
कोई आँखों में ठहरा जा रहा है,
वो आया था तो मेला सज गया था,
मगर उस पार तन्हा जा रहा है ..
एक साँचे में ढाल रक्खा है
एक साँचे में ढाल रक्खा है,
हमने दिल को सम्हाल रक्खा है,
तेरी दुनिया की भीड़ में मौला,
खुद ही अपना ख़याल रक्खा है,
दर्द अब आँख तक नहीं आता,
दर्द को दिल में पाल रक्खा है,
चलके उल्फ़त की राह में देखा,
हर क़दम पर वबाल रक्खा है
हर क़सम प्यार की निभानी है
हर क़सम प्यार की निभानी है,
ये खबर भी है जान जानी है,
ज़िन्दगी है अगर सियाह तो क्या,
रंग ख़्वाबों का आसमानी है,
सपने सजते हैं टूट जाते हैं,
दर्द ही प्यार की निशानी है,
मेरा होकर भी वो मेरा न हुआ,
जिन्दगी तेरी बेइमानी है,
धड़कने जिन्दा हैं मेरी तुझसे,
तुझसे ही साँस में रवानी है…
फ़ासला बीच का मिटा कैसे
फासला बीच का मिटा कैसे
याद उसने मुझे किया कैसे
अपनी पलकों में कैद रक्खा था,
राज दिल का मेरे खुला कैसे
जिस्म के पैरहन के पार पहुँच
उसने अहसास को छुआ कैसे
जन्म देकर मैं घोंट दूँ बोलो,
अपनी उम्मीद का गला कैसे,
मौत जिस रोज मेरे दिल को मिली,
भूल जाऊँ वो हादसा कैसे,
जो तेरे नाम रूह भी कर दी,
अब मेरा मुझमें कुछ बचा कैसे
उसका चेहरा तारी है
उसका चेहरा तारी है
चाहत इक बीमारी है
आँखों से दिल तक पहुंचा
बन्दे की हुश्यारी है
बेटी घर के आंगन में
ख़ुशियों की फुलवारी है
नेकी करके ढोल बजा
ये ही दुनियादारी है
रातों को तारे गिनना
इश्क़ अज़ब बेगारी है
ख़ुशियों और ग़म दोनों में
अपनी हिस्सेदारी है
कोई साथ नहीं देगा
मतलब की बस यारी है
मेरे दिल पर उसका हक़
अच्छी ये सरदारी है
ये जो आँखों मे दर्द आया है
ये जो आँखों मे दर्द आया है
ज़िन्दगी ने सबक सिखाया है
छोड़ कर सब चले गए मुझको,
साथ मैंने मेरा निभाया है
आज की शब हसीन गुज़रेगी
चाँद दरया में मुस्कुराया है
तेरी आमद की धुन जो गूँजी तो,
मेरे चेहरे पे नूर आया है
वो जो बेहद ज़हीन है लड़का
मेरा दिल उसने ही चुराया है*
क्या कहा, तुम मेरे दीवाने हो
वहम ने और दिल दुखाया है*
इश्क़ के ज़ाविये से जब देखा
मैंने उसको ग़ज़ल सा पाया है
बोल देती है बेज़ुबानी भी
बोल देती है बेज़ुबानी भी,
ख़ामोशी के कई म’आनी भी,
वक़्त – बेवक़्त ही निकल आये,
है अजब आँख का ये पानी भी,
वो सबब है मेरी उदासी का,
उससे है दोस्ती पुरानी भी,
वो मरासिम बढ़ा के छोड़ गया,
दर्द होता है जाविदानी भी,
जन्म देकर कज़ा तलक लाई,
ज़िन्दगी तेरी मेज़बानी भी,
आज फिर क़ैस को ही मरना पड़ा,
हो गयी ख़त्म ये कहानी भी…