अज़्म मोहकम करके दिल में ये ही एक सहारा है
अज़्म मोहकम करके दिल में ये ही एक सहारा है
दरिया हो या कि समन्दर सब का एक किनारा है
दिल अपना इतना नाज़ुक था जिससे मिले हम सबके है
अब सबके तकाज़े पूरे हुये तो कहने लगे बेचारा है
इस गाँव की कच्ची गलियों में बचपन में हमारे साथ रहे
अहदे जवानी में लोगों अब कोई नहीं हमारा है
ये प्यार मुहब्बत खेल हुआ अब अहदो वफा है बेमानी
माज़ी ही ग़मख्वार है अपना दर्द ही एक सहारा है
अहले खिरद तो दिलवालों को दीवाना ही समझे है
आरिफ़ तो दीवाना ठहरा कैसे इसे पुकारा है
ख़ामोश न रहिये कोई बात कीजिये
ख़ामोश न रहिये कोई बात कीजिये
तन्हा जो किया करते थे अब साथ कीजिये
वो शाम तवील और वह लम्हें इन्तिज़ार
अपनी स्याह ज़ुल्फ़ों से ही रात कीजिये
ये बात दिगर है कि खिलवत कदे में है
आये है तो उनसे मुलाकात कीजिये
क्या कुछ छुपा के रखा है उस नशतर-एदिल में
करना है राज़ फ़ाश तो एक साथ कीजिये
आरिफ़ ने अगर छेड़ दी है अगर अन्जुमन की बात
फिर आप ही तनहाइयों की बात कीजिये
क़ुदरत से वह जाने तमन्ना ऐसी अदा कुछ पाये है
क़ुदरत से वह जाने तमन्ना ऐसी अदा कुछ पाये है
उसके परतवे हुस्न से गुल भी अपना रंग चुराये है
हुस्न-ए-अज़ल से ले जाते है दीवानों को मक़तल तक
इश्क़ ने पाया ऐसा जुनूँ कि मक़तल भी थरराये है
गौहर मोती लाल जमुर्रद ये सब तो नायाब सही
उनके लब का एक तबस्सुम सब पे सबकत पाये है
खून-ए-जिगर से सींचा हमने गुलशन की हर डाली को
फसले बहाराँ आई जब तो माली हमें सताये है
तर्के खामोशी करके हम तो चले है कूये जानाँ को
जैसे-जैसे क़दम बढ़े है आरिफ तो घबराये है
दिल की धड़कन रफ्ता रफ्ता दर्द जिगर में होए है
दिल की धड़कन रफ्ता रफ्ता दर्द जिगर में होए है
तुझमें ऐसा कोन सा जादू आँख हमारी रोये है
जंगल जैसा सूना सूना हर इक रस्ता लगता है
महफिल सारी तन्हा तन्हा तुझ बिन ये सब होए है
यारों ने सब दर्द जगाया नाम ज़ुबाँ पर ले लेकर
ये तेरा बेचारा ऐसा हँस हँस के भी रोए है
सुख कैसा और दुख कैसा उसका कुछ एहसास नहीं
तेरी ज़ुल्फ के छाँव तले ये थका हुआ जब सोए है
उनको देखो कौन है वह? चाक है दामन चाक गरीबाँ
ज्यों ज्यों उफक पे लाली छाई अपना आपा खोए है
यूँ तो ग़ज़ले सब कहते सबका है अन्दाज़ जुदा
तेरे नाम ग़ज़ल जब लिखी जी भर आरिफ रोए है
बुतखाने भी कहने लगे अब काफिर हो आवारा हो
बुतखाने भी कहने लगे अब काफिर हो आवारा हो
कोई कहे है रंज में डूबा कोई कहे बेचारा हो
दर्द व गम रंज व अलम ये सब कोरी बाते है
जामे मुहब्बत पीकर देखों प्यार बड़ा ही प्यारा हो
सागर सागर दरिया दरिया सहरा सहरा देखों हो
तुम ही तुम हर सू हो चरचा एक तुम्हारा हो
दामन अपना चाक करे हो इश्क़ को भी बदनाम करे हो
इश्क़ का दरिया सब्र का दामन देखो साथ किनारा हो
रो रो काटी हिज्र की रातें आरिफ करे हो अपनी बात
आँसू अपना दामन अपना जीने का एक सहरा हो
तेरा कितना एहतरा है साकी
तेरा कितना एहतरा है साकी
तेरे बिन पीना हराम है साकी
न चल सुए-मयखाना अभी
अभी तो वक्त-ए-शाम है साकी
देख इक नज़र इधर को भी
किससे हमकलाम है साकी
तू ख़फा होये तो ख़फा हो जा
दिल में तेरा ही मुकाम है साकी
होश आये तो बात कुछ होवे
अभी तेरा ही नाम है साकी
चाहे आरिफ़ हो या कि ज़ाहिद हो
हर इक लब पे तेरा नाम है साकी
आया है अब क़रार दिल-ए-बेकरार में
आया है अब क़रार दिल-ए-बेकरार में
जब ये क़दम पहुँच गये उनके दयार में
गर संग ही मिले फूलों के एवज तो
हम रोज़ रोज़ जायेगे उनके दयार में
वह जुम्बिश-ए-जब और निगाहों का वह झुकाव
क्या देख ले न जाऊँ मैं उनके दयार में
अब तक न कह सके जो वह बात उनसे कहते
वह रू-बरू जो होते अबके बहार में
इक बार मुस्कुरा के नज़र में उठा दिया
आरिफ अभी तक डूबे हुए हैं ख़ुमार में
ज़ब्त कर ऐ हसरत-ए-दीद कुछ देर अभी है
ज़ब्त कर ऐ हसरत-ए-दीद कुछ देर अभी है
ग़ुज़रे थे वह जिस राह से वह राह यही है
एक जाम मोहब्बत का पिला के वह चल दिये
बाक़ी अभी भी तिश्नालबी तिश्नालबी है
एक हल्क-ए-ज़जीर है या गेसू-ए-जाना
दोश-ए-हया में कोई बदली सी उठी है
छेड़ो न इसे ऐ सबा जागा है कई रात
तक तक के उसी राह को अब आँख लगी है
अश्कों की पनहगाह आरिफ को ले सलाम
हर शाम तेरी ज़ात पे एक लाज बची है
रात को इस अँधेरे में जी मेरा घबराये है
रात को इस अँधेरे में जी मेरा घबराये है
चुपके-चुपके धीरे-धीरे कौन यहाँ तक आये है
हिज्र की रात को हर लम्हा एक सदियों जैसा लगता है,
अब आयेगा वस्ल का लम्हा दिल, दिल को समझाये है
उनकी गली से जब गुज़रे हम बाम पर साया लहराया
ठहरे कदम वहाँ कोई नहीं यह आँख ही धोखा खाये है
अजब हया फूलों पे छाई कली-कली शरमायी है
जान-ए-तमन्ना चमन में आया ज़ुल्फों को लहराये है
नाज़ुक-नाज़ुक हाथ से अपने साक़ी जाम उठाये है
तश्ना लव सब रिन्द यहाँ किसके हिस्से आये हैं
अपना अश्क़ है पिया हमने ग़म की परदादारी को
हिज़्र तो एक हक़ीक़त आरिफ खुद को यह समझाये है
तंगदस्ती अना दोनों ही साथ हैं
तंगदस्ती अना दोनों ही साथ हैं
दर्द बच्चों से अपना छुपाते रहे
बेवफाई का इल्ज़ाम सर पे लिए
दोस्ती दोस्तों को सिखाते रहे
अब तो तनहाई ही अन्जुमन हो गयी
दर्द खुद को ही अपना सुनाते रहे
जाम छलका जो हाथों से उनके कभी
ढंग-ए-रिन्दी ही आरिफ़ बताते रहे
वह रंग वह शबाब ज़रा याद कीजिए
वह रंग वह शबाब ज़रा याद कीजिए
वह चश्म पुर सराब ज़रा याद कीजिए
अबरे बहार आके चमन कर गई गुदाज़
सर मसति-ए-गुलाब ज़रा याद कीजिए
उड़ते हुए गेसू को संभाले में लगे हैं
वह मंज़र-ए-नायाब ज़रा याद कीजिए
महफिल में उठे और वह बरहम चले गये
चेहरे का वह अताबज़रा याद कीजिये
नज़रें उधर को उट्ठीं तो उट्ठी ही रह गयीं
सरका था जब हिजाब ज़रा यद कीजिये
आमद से जिसके शोर क़यामत सा थम गया
वह हुस्न-ए-पुरशबाब ज़रा याद कीजिये
वह चश्म-ए-नीमबाज़ सी मस्ती कहीं नहीं
आरिफ़ वही शराब ज़रा याद कीजिये
तुम्हारी याद की खुशबू को लेकर जब हवा आयी
तुम्हारी याद की खुशबू को लेकर जब हवा आयी
मैं तेरे दिल में बसता हूँ कुछ ऐसी ही सदा आयी
तेरे क़दमों को चूमें क़ामयाबी हर घड़ी हर पल
मेरे होठों पर जब भी आयी तो बस यही दुआ आयी।
अजब दस्तूर दुनिया का मोहब्बत को बुरा समझे
यहाँ तो इश्क़ के हिस्से में हरदम ही सज़ा आयी
मोहब्बत है मेरा ईमान बस मैं इसमें क़ायम हूँ
नहीं सोचा कभी हिस्से में कितनी बद्दुआ आयी
तेरे चेहरे की रंगत फूल में ख़ुशबू कली में है
तेरी उल्फ़त का किस्सा लेके अब बादे सबा आयी
कोई अपना कहे आरिफ़ को बस इतनी तमन्ना है
कि मैं भी कह सकूँ हिस्से में मेरे भी वफ़ा आयी
ग़ज़ल सरा हूँ तेरी खातिर कुछ तो लगाव हो
ग़ज़ल सरा हूँ तेरी खातिर कुछ तो लगाव हो
हमसे जुदा हो कैसी बीती सारा हाल सुनाव हो
ये अहले खिरद हैं दीवाने पे मश्क-ए-सितम है
तुम बज़्म-ए-वफा के एक दिया तुम उनको राह दिखाव है
चुपके-चुपके होले-होले कौन दिये ये दस्तक हो
खोलो दिल के बन्द दरीचे उसमें उन्हें समाव हो
करते-करते बेदर्दी तुम दर्द के मारे बन बैठे
निकले आँसू मेरे लिए क्या बात हुई बतलाव हो
मस्त-मस्त आँखों को देखूँ तब मैं कोई शेर कहूँ।
आरिफ अपनी ग़ज़ल सुनाये तुम भी गीत सुनाव हो
देखो ये शाम गेसुय-ए-शब खोल रही है
देखो ये शाम गेसुय-ए-शब खोल रही है
गुंचे चटक रहे है कली बोल रही है
इक नूर उतर आया है सहराये अरब में
हर एक जबाँ सल्ले अला बोल रही है
आया कोई छ्लकता हुआ जाये गुलाबी
शबनम भी दो बूँद को लब खोल रही है
चाहे वह शब-ए-हिज्र हो या हो शब-ए-विसाल
मेरे लिए दोनों बड़ी अनमोल रही है
छुप-छुप के रो लिए हो देखे न कोई और
आरिफ तेरी ये आँख तो सच बोल रही है