आ गया हूँ देख माँ तेरी शरण
आ गया हूँ देख माँ तेरी शरण।
दिख रहा है आसमाँ तेरी शरण।।
हो अगर अवगुण उसे तो माफ कर।
मांगते हैं नित क्षमा तेरी शरण।।
हो तुम्हीं दुर्गा काली सरस्वती।
ज्ञान रूपी धन जमा तेरी शरण।।
भगवती हो, हो जगत कल्यायणी।
है सभी इंतजाम माँ तेरी शरण।।
सृष्टि की रचना की तू आधार हो।
हर किसी की आत्मा तेरी शरण।।
ज़िन्दगी है सुहानी तभी
ज़िन्दगी है सुहानी तभी।
संग में हो जवानी तभी।।
कामनी कामना कर रही।
आ गई रातरानी तभी।।
छटपटाती रही ख्वाब में।
छा गई ये कहानी तभी।।
आ गई है मिलन की घड़ी।
नाज नखरे रवानी तभी।।
हुस्न भी खार खाने लगी।
इश्क़ की बात जानी तभी।।
दर्द दिल में बहुत पर बुझाता नहीं
दर्द दिल में बहुत पर बुझाता नहीं।
दिन गुजरता गया पर बताता नहीं।।
आपकी याद में मैं पिघलता रहा।
दीप जलता रहा कुछ सुझाता नहीं।।
दूध मक्खन बना देखता रह गया।
द्वार पर भी कभी सर झुकाता नहीं।।
या खुदा ये मुझे तू अकड़ क्यों दिया।
छूट अपने गये पर पिराता नहीं।।
मैं कभी भी किसी को भुलाया कहाँ।
क्यों न अपना रहा क्यों बताता नहीं।।
जा अकेला रहा छोड़ सब कुछ यहाँ।
चाह कर भी इसे भूल पाता नहीं।।
अजगैवी बाबा के घर से, गंगा जल भर लाएंगे
अजगैवी बाबा के घर से, गंगा जल भर लायेंगे।
झटकल दुलकल काँवर लेकर, बाबा के घर जायेंगे।।
ऐसा ही माहौल रहा तो हर आँगन सुख जागेंगे।।
ले काँवर में गंगा जल हम शिव शंकर पर ढारेंगे।।
सावन महिना गंगा का जल, बाबा को अच्छा लगता।
ले काँवर में गंगा का जल हम भोला पर ढारंेगे।।
काँवरिया पथ पर सुविधाएँ, सरकारी झूठा निकला।
फिर भी हम चलते जायेंगे, तब दर्शन कर पायेंगे।।
भाई चारे का है अवसर, सब आरक्षण ध्वस्त हुआ।
सब मिलकर गाते जाते हैं, अब शिव शंकर आयेंगे।।
सब की पीड़ा एक है यारो, हम सब हैं भाई-बहिना।
हर-हर भोले नारा गूँजे, काँवर लेकर नाचेंगे।।
जिंदा हैं तो ज़िन्दगी में काम कीजिये
जिंदा हैं तो ज़िन्दगी में काम कीजिये।
पप्पा मम्मी को न यूँ बदनाम कीजिये।।
आगे बढ़ते जाइये जीवन सफल करें।
चरित्र का निर्माण कर खुद नाम कीजिये।।
नेता दोषी हैं यहाँ इस मुल्क में सभी।
जनता का शाही खजाना जाम कीजिये।।
देते हैं उपदेश जैसे सन्त हों यही।
इनके मद को चूर सुबहो-शाम कीजिये।।
सीमा सुरक्षित है मगर सैनिक उदास हैं।
इनकी मनसा अब न कत्लेआम कीजिये।।
नहीं इस पार रहना है, नहीं उस पार जाना है
नहीं इस पार रहना है, नहीं उस पार जाना है।
मुहब्बत में मुझे यारो, उसे फिर घर बुलाना है।।
गये परदेश जो साथी, भटकते आज भी वह हैं।
इधर परिवार भूखे हैं, उधर मिलता न खाना है।।
गरीबी है गरीबांे को, अभी भी जान पर आफत।
जिसे अभिशाप कहते हैं, मिटाकर घर बसाना है।।
गरीबी को मिटाने का, नहीं सरकार का मकसद।
इरादा साफ जाहिर है, गरीबों को मिटाना है।।
भला चाहो अगर तुम तो, खड़े हो पैर पर अपने।
करो मिहनत सभी मिलकर, जमा करना खजाना है।।
नहीं मुहताज होना है, किसी के सामने जाकर।
खुदा दौलत अगर है तो, खुदा को पास आना है।।
नवीन से नवीन इक ग़ज़ल लिखो
नवीन से नवीन इक ग़ज़ल लिखो।
जमीन से जुड़ी हुई असल लिखो।।
उदास क्यों जनाब आज हो यहाँ।
तलाश कर खिली हुई कमल लिखो।।
समान खुद खरीद कर न लाइये।
किसान के लिए नई फसल लिखो।।
तनाव में कभी नहीं रहा करो।
उदार भाव से चहल पहल लिखो।।
सलीब पर कमीज क्यों टँगी हुई।
उतार कर उसे पहन अजल लिखो।।
गिलास में शराब है भरी हुई।
पिये बिना गगन पवन फजल लिखो।।
प्यार में तुम कभी अकबकाना नहीं
प्यार में तुम कभी अकबकाना नहीं।
रोशनी की तरह झिलमिलाना नहीं।।
प्यार ही ज़िन्दगी की दवा है असल।
ज़िन्दगी में कभी हड़बड़ाना नहीं।।
दुश्मनी प्यार से मत करो तुम कभी।
बात बिगड़े अगर तिलमिलाना नहीं।।
याद आऊँ अगर रात में जब कभी।
नीद में तुम कभी बड़बड़ाना नहीं।।
आपसी रंजिशें आ मिटाने चले।
प्यार की शुभ घड़ी यूँ गँवाना नहीं।।
ग़ज़ल तो रात की रानी
ग़ज़ल तो रात की रानी।
जिसे हम शाम से जानी।।
सुबह उठते कविता को।
गिरे जब आँख से पानी।।
पता फिर भी मुझे मालूम।
मनाने पर नहीं मानी।।
मनाऊँ मैं भला कैसे।
नहीं हूँ मैं बड़ा ज्ञानी।।
पुनः फिर रात जब आई।
नहीं है रूप की सानी।।
आज तक हम ज़िन्दगी में क्या नहीं झेले
आज तक हम ज़िन्दगी में क्या नहीं झेले।
मुश्किलों के संग हम शतरंज भी खेले।।
दण्डवत करते रहे हैं हम सदा उनको।
मान कर अच्छे गुरु हम दण्ड भी पेले।।
हुस्न के जालिम दरिंदे घूमते-फिरते।
लग रहे हैं आशिकों के अब यहाँ मेले।।
बाग में हर फूल भी अब खुश नहीं दिखते।
आबरू को लुट लिये बाबा सहित चेले।।
अब कहाँ जांऊँ किसे दुखड़ा सुनाऊँ मैं।
खा रहे छिलके हटा कर ये सभी केले।।
राह से पत्थर हटाना चाहता हूँ
राह से पत्थर हटाना चाहता हूँ।
प्यार से पर्वत हिलाना चाहता हूँ।।
बाग में कलियाँ खिली हैं ढेर सारी।
मनचलों से मैं बचाना चाहता हूँ।।
यार को मिलते रहे सुख हर हमेशा।
अर्चना करना खुदा से चाहता हूँ।।
ऐ ग़ज़ल आओ ज़रा मुँह खोल भी दो।
मैं मधुर सुर लय सुनाना चाहता हूँ।।
कर रहे सेवा यहाँ साहित्य की जो।
मैं गले उनको लगाना चाहता हूँ।।
देश की हालत बिगड़ती जा रही है।
अब इसे फिर से सजाना चाहता हूँ।।
आपसी मतभेद को भी है मिटाना।
लक्ष्य अपना मैं बताना चाहता हूँ।।
न्याय अब मिलता कहाँ है कचहरी में।
गांव में चौपाल लाना चाहता हूँ।।
जो नहीं पढ़ते उसे भी है पढ़ाना।
आईना उनको दिखाना चाहता हूँ।।
दुश्मनों को प्रेम करना है सिखाना।
शांति का संदेश देना चाहता हूँ।।
साफ कपड़ों की धुलाई कौन करता है
साफ कपड़ों की धुलाई कौन करता है।
आज कल खुद ही पढ़ाई कौन करता है।।
कचहरी में रोज हम यह देखते आये।
अब गरीबों की भलाई कौन करता है।।
फीस लेते हैं उसी को डांटते भी हैं।
याचकों की अब रिहाई कौन करता है।।
जुल्म तो घर से निकल अब रोड पर होते।
बीच राहों पर बुराई कौन करता है।।
वोटरों के साथ देखो छल किये जाते।
जुल्मियों पर अब कड़ाई कौन करता है।।
जात के हथियार से जो जिस्म जर-जर की।
उन दरिंदों की पिटाई कौन करता है।।
आम की गाढ़ी कमाई लूटते जो हैं।
ताज उनको दे बड़ाई कौन करता है।।
खा मलाई बर्तनो को फोड़ते देखो।
अध कपाड़ी को विदाई कौन करता है।।
आ गले लग जा सभी मिल बैठ कर सोचें।
राज अपना है दुहाई कौन करता है।।
सारी दुनिया यही तो इक कलाम बोलता है
सारी दुनिया यही तो इक कलाम बोलता है।
पुलवामा के शहीदों को सलाम बोलता है।।
तुझ जैसा कायरों को ये जहांन जानता है।
तुम हत्यारा घिनौंना हो तमाम बोलता है।।
सुन अब ऐलान भारत की नहीं कहीं बचेगा।
तेरा बंकर उड़ेगा ये अवाम बोलता है।।
हो माँ की गोद लुटेरा जवान जानते हैं।
अब तेरा लाल रोयेगा अंजाम बोलता है।।
अन गिन लाशें गिरंेगी खून की नदी बहेगी।
आका को जा बता दे परिणाम बोलता है।।
हम उगाते रहें खेत में वह फसल
हम उगाते रहें खेत में वह फसल।
प्रेम के गीत संगीत लय वह ग़ज़ल।।
चाँद सूरज सुनें मुस्कुराये चमन।
सुन बहारें हँसे महफिलें हों असल।।
मौत के ख़ौफ से मत डरो तुम कभी।
याद आये जमाना खिलाओ कमल।।
शब्द को चुन सजाओ बनाओ लड़ी।
हार ऐसा बने की करें सब पहल।।
काफिया बिन न बनती कहीं भी ग़ज़ल।
कौन करता यहाँं है बहर पर अमल।।
हो बहर पर अमल तो बनेगी ग़ज़ल।
मत लिखो तुम कहीं भी चहल वह पहल।।
जो कुछ भी देखता हूँ, अच्छा नहीं बुझाता
जो कुछ भी देखता हूँ, अच्छा नहीं बुझाता।
जिसको भी देखता हूँ बच्चा नहीं बुझाता।।
अपनों से मार खाये करते रहे भरोसा।
रहते हैं साथ लेकिन सच्चा नहीं बुझाता।।
रहते हैं साथ सारे मिलकर नहीं जहाँ में।
नफरत का फल जो कडु़आ कच्चा नहीं बुझाता।।
कहते तो सब यही हैं हम देश के सिपाही।
ये अंगूर की तरह पर गुच्छा नहीं बुझाता।।
आये जो पास मेरे लगते शरीफ जैसे।
क्या खूब है लिबासे, लुच्चा नहीं बुझाता।।
हर घड़ी हर नगर में कहर है
हर घड़ी हर नगर में कहर है।
व्याप्त डर हर गली हर नगर है।।
देखकर चौकिये मत कहर को।
आदमी में भरा खुद जहर है।।
डर गये सांप भी आदमी से।
हर पहर आदमी पे नजर है।।
पान मुँह में लिये चल रहे हैं।
हर सफर में मेरा हमसफ़र है।।
मान की भूख किसको नहीं है।
गर मिला है नहीं तो असर है।।
कागज नहीं होते तो विवादे नहीं होते
कागज नहीं होते तो विवादे नहीं होते।
कागज बिना कोई भी फसादे नहीं होते।।
कागज से कागज को खरीदे भी जाते हैं।
कागज पे इतने सारे कसीदे नहीं होते।।
हर रंग में बिकता है कागज का पुलिंदा।
अब इस तरह के कोई परिंदे नहीं होते।।
खून-खराबा का बस जरिया है ये कागज।
ऐसा कहीं भी कोई दरिंदे नहीं होते।।
चर्चित कहावत जोरू, जमीं, जोर के होते।
ऐसा कहीं भी कोई मसौदे नहीं होते।।
हो अगर बारिश हवा भी रूख बदलेगी
हो अगर बारिश हवा भी रूख बदलेगी।
देख लेना बिजलियाँ भी खूब चमकेगी।।
अब कहाँ जायें बता हर ओर आफत है।
है घटा घनघोर बारिश झूम बरसेगी।।
रहनुमा का है पता क्या बाढ़ में देखो।
जेब में खैरात भी सब घूस जायेगी।।
आ गया सबको बुलावा चांद से देखो।
खुशनुमा माहौल करने हूर आयेगी।।
है ज़रूरत ज़िन्दगी में आपकी खुशियाँ।
सूझ जाते ही यहाँ फिर धूप आयेगी।।
आग-सी तपती जवानी छोड़कर मत जा पिया
आग-सी तपती जवानी छोड़कर मत जा पिया।
रात बाकी है अभी मुख मोड़कर मत जा पिया।।
मस्तियाँ परवान पर हैं आज दोनों की यहाँ।
आ करें रंगीन दिल को तोड़कर मत जा पिया।।
आ उठायंे आज हम दोनों जवानी का मज़ा।
अब नहीं परदेश जा घर छोड़कर मत जा पिया।।
मै बरस इक्कीस की हूँ आप पचपन साल के।
हो भला कैसे मिलन कर जोड़कर मत जा पिया।।
जाल में मैं फँस गई अब हो किनारा किस तरह।
इस जवानी को तो यूं झकझोरकर मत जा पिया।।
दूर से आये सुनाने ग़ज़लगो अपनी ग़ज़ल।
बिन सुने जाना नहीं है, लौटकर मत जा पिया।।
चाँद को बड़का कटोरा में यहाँ हम लायेंगे
चाँद को बड़का कटोरा में यहाँ हम लायेंगे।
चाँदनी संग बैठकर छोला भटोरा खायंेगे।।
चाँदनी की रोशनी में देश को नहलाएँगे।
देख कर दुश्मन जलेगे विश्व को ललचाएँगे।।
बालपन में दूर रहकर ये हमें रुलवाया था।
घर बुलाकर हम इसे मम्मी से अब मिलवाएँगे।।
आसमां से चाँदनी जब से उतरकर आई है।
ये सितारे खुद ब खुद भू पर उतर कर आयेंगे।।
इक कदम हम दूर हैं उसके घर दहलीज से।
हार को फिर जीतकर दुनिया को अब दिखलाएँगे।।
आपकी वह नज़र चाहिए
आपकी वह नज़र चाहिए।
हर ग़ज़ल को बहर चाहिए।।
कर सके जो अमल हर घड़ी।
स्वर मधुर हर पहर चाहिए।।
बह सके जो निरन्तर यहाँ।
उस नदी को लहर चाहिए।।
प्यार करते हो तुम गर उसे।
जिस्म पर ना नज़र चाहिए।।
दाल गलती नहीं आंच से।
ताप कुछ इस कदर चाहिए।।
दुल्हनें भी भली वह लगे।
थोड़ी पतली कमर चाहिए।।
कहोगे बात तो हटकर मिलेगी
कहोगे बात तो हटकर मिलेगी।
करोगे प्यार तो सटकर मिलेगी।।
भले ही काम में दिनभर रहेगी।
ढलेगी शाम तो हँसकर मिलेगी।।
करेगी रोज किच-किच शाम तक ही।
चढ़ेगी रात तो मुड़कर मिलेगी।।
मुसीबत आ खड़ी होगी वहाँ पर।
दिलों की बात दो कहकर मिलेगी।।
बँधी है गाँठ नखरों से हजारों।
नदी की धार-सी बहकर मिलेगी।।
निभाना है तुझे वादा किया तो।
वही वह रात में लेकर मिलेगी।।
चलो इक बार, नदी के पार
चलो इक बार, नदी के पार।
करेगें खुल कर दोनों प्यार।।
बुझेगी हम दोनों की प्यास।
जहाँ हो मन्द पवन की बयार।।
खिलेगें हर क्यारी में फूल।
चमन मुस्कंेगे देख बहार।।
करेगें जब नैनन को चार।
जनम भर के हम होगें यार।।
जलेंगे हर घर दीप चिराग।
मधुर रस की होगी बौछार।।