महब्बत क्या है ये सब पर अयां है
महब्बत क्या है ये सब पर अयां है
महब्बत ही ज़मीं और आसमां है
ज़हे-क़िस्मत मुझे तुम मिल गए हो
मेरे क़दमों के नीचे कहकशां है
तमाशा ज़िंदगी का देखती हूं
तबस्सुम मेरे होंठों पर रवां है
गुलों पर तंज़ करती हैं बहारें
अजब सी कशमकश में बाग़बां है
ज़रूरत क्या किसी की अब सफ़र में
मेरे हमराह मीरे-कारवां है
हम आए थे जहां में, जा रहे हैं
बहुत ही मुख़्तसर सी दास्तां है
तेरे दम से मुकम्मल हो गई हूं
मैं ख़ुशबू हूं तू मेरा गुलसितां है
तेरे मेरे दरम्यां जो राज़ है
तेरे मेरे दरम्यां जो राज़ है
वो हमारे प्यार का आग़ाज़ है
हम वफ़ा का इम्तिहां लेते नहीं
ये हमारा मुनफ़रिद अंदाज़ है
वुसअतें अपनी बढ़ा ले ऐ फ़लक
ये हमारी आख़िरी परवाज़ है
ज़ख़्म तूने वो दिए कि क्या कहें
ऐ महब्बत! फिर भी तुझ पर नाज़ है
हर नफ़स रहता है तेरा इंतज़ार
ख़ुदकुशी का ये अजब अंदाज़ है
तुम गए तासीर लफ़्ज़ों से गई
हां ! उसी दिन से ग़ज़ल नासाज़ है
है शनासाई भी तुझसे ज़िंदगी
फिर भी तू इक कशमकश है राज़ है
ख़ार रख दो गुलाब ले जाओ
ख़ार रख दो गुलाब ले जाओ
हां यही इंतेख़ाब ले जाओ
उन चरागों में रोशनी कम है
मेरे चेहरे की ताब ले जाओ
मैंने पहरों तुम्हीं को सोचा है
तुम ग़ज़ल का ख़िताब ले जाओ
तुमको हर पल नया उरूज मिले
मेरे सारे सवाब ले जाओ
बाग़बां ने कहा खिज़ाओं से
हर कली का शबाब ले जाओ
मेरी ख़ामोशियों को समझो तुम
और सारे जवाब ले जाओ
मेरे अल्फ़ाज़ बामआनी हैं
आओ ख़ुशबू ये बाब ले जाओ
ज़ख़्म देता है बार बार हमें
ज़ख़्म देता है बार बार हमें
वो बना देगा शाहकार हमें
हाशिए पर खड़े हैं हम कब से
अपनी ग़ज़लों में अब उतार हमें
हम हैं ज़र्रों में हम सितारों में
जाओ करते रहो शुमार हमें
इसकी आमद पे दिल लरज़ता है
ज़ख़्म देती है ये बहार हमें
तू कभी शोख़ है कभी सादा
तुझपे आने लगा है प्यार हमें
एक क़तरे की प्यास थी लेकिन
दे दिया तुमने आबशार हमें
हमको जीना था जी लिये ख़ुशबू
कब तुम्हारा था इंतज़ार हमें
वही चेहरा पुराना चाहिए था
वही चेहरा पुराना चाहिए था
मुझे गुज़रा ज़माना चाहिए था
मैं नाहक डर रही थी आइनों से
मैं पत्थर हूं, बताना चाहिए था
निहायत पाक है मेरी महब्बत
तुम्हें तो सर झुकाना चाहिए था
ग़ज़ल हम भी मुकम्मल कर ही लेते
कोई मौसम सुहाना चाहिए था
बिछड़ कर भी नहीं बिखरी हूं ख़ुशबू
मुझे तो टूट जाना चाहिए था
तुम्हारा साथ पल पल चाहती है
तुम्हारा साथ पल पल चाहती है
ज़मीं प्यासी है बादल चाहती है
मुसलसल क़ैद से उकता गई है
ये चिड़िया कोई जंगल चाहती है
मेरी चाहत की ये क्या ज़िद है आख़िर
जो तुम पर हक़ मुकम्मल चाहती है
घटा बरसात की पागल दीवानी
मिरी आंखों का काजल चाहती है
उजालों ने वो साजिश की कि ख़ुशबू
अंधेरे अब मुसलसल चाहती है
बेवफ़ाई की यूं सज़ा देंगे
बेवफ़ाई की यूं सज़ा देंगे
दिल से हम आपको भुला देंगे
भर लूं आंखों में ये नज़ारे भी
मेरी तन्हाइयां सजा देंगे
प्यार बच्चों पे हम लुटाएं तो
ये फ़रिश्ते हमें वफ़ा देंगे
शाख़ से टूटना न ऐ पत्ते
तेज़ झोंके तुझे उड़ा देंगे
फूल जब भी वो ले के आयेंगे
प्यार हम भी उन्हें सवा देंगे
आगे बढ़ना है ख़ुद तुझे ख़ुशबू
लोग कब तुझको रास्ता देंगे
कभी घर से बाहर भी आकर तो देखो
कभी घर से बाहर भी आकर तो देखो
ज़माना है क्या आज़माकर तो देखो
तबस्सुम तुम्हारे भी लब चूम लेना
किसी ग़मज़दा को हंसाकर तो देखो
तुम्हें इक अनोखी ख़ुशी सी मिलेगी
किसी के कभी काम आकर तो देखो
महब्बत की बातें बहुत हो चुकी हैं
वतन का भी अब गीत गाकर तो देखो
उड़ानों के क़िस्से सुनाएगा ख़ुशबू
किसी टूटे पर को उठाकर तो देखो
जाने किस बात की वो मुझको सज़ा देता है
जाने किस बात की वो मुझको सज़ा देता है
ज़हर देता है न फिर कोई दवा देता है
ग़ैर-मुमकिन है ये छुप जाएं मेरी नज़रों से
तेरा हंसना तिरे ज़ख्मों का पता देता है
वो सलामत रहे परदेस में जाने वाला
दीप मंदिर में कोई रोज़ जला देता है
जी में आता है कि मैं उसको मसीहा कह दूं
मेरे होंठों पे तबस्सुम जो खिला देता है
उसकी रहमत पे कभी शक नहीं करना ख़ुशबू
वो तो सहरा को भी गुलज़ार बना देता है