पद / 1
अद्भुत रचाय दियो खेल देखो अलबेली की बतियाँ।
कहुँ जल कहुँ थल गिरि कहूँ कहूँ कहूँ वृक्ष कहूँ बेल॥
कहूँ नाश दिखराय परत है कहूँ रार कहूँ मेल।
सब के भीतर सब के बाहर सब मैं करत कुलेल॥
सब के घट में आप बिराजौ ज्यों तिल भीतर तेल।
श्री ब्रजराज तुही अल बेला सब में रेला पेल॥
पद / 2
कुछ दीखत नहिं महाराज, अँधेरी तिहारे महलन में।
ऐजी ऊँचो सो महल सुहावनो, जाको शोभा कहीं न जाय॥
तूने इन महलन में बैठ कै, सब बुध दी बिसराय॥
ऐजी नो दरवाजे महल के, और दशमी खिड़की बन्द।
ऐजी घोर अँधेरो ह्वै रह्यो, औ अस्त भये रबि-चन्द॥
ढूँढ़त डोलै महल मैं रे, कहूँ न पायो पार।
सतगुरु ने तारी दई रे, खुल गये कपट-किंवार॥
कोटि भानु परकाश है रे, जगमग जगमग होति।
बाहर भीतर एक सो रे, कृष्ण नाम की ज्योति॥
पद / 3
हो प्यारी लागै श्याम सुँदरिया।
कर नवनीत नैन कजरारे, उँगरिन सोहै मुँदरिया॥
दो दो दशन अधर अरुणारे, वालत बैन तुतरिया।
सोहै अंग चन्दनी कुरता, सिर पै केश बिखरिया॥
गोल कपोल डिठोना माये, भाज तिलक मन-हरिया।
घुटुअन चलत नवल तन मंडित, मुख में मेलै उँगरिया॥
यह छबि देखि मगन महतारी, लग नहि जात नजरिया।
भूख लगी जब ठिनकन लागे, गहि मैया की चुँदरिया॥
जाको भेद वेद नहिं पावत, वाको खिलावै गुजरिया।
धन यशुमति धनि धनि ब्रजनायक, धनि धनि गोप नगरिया॥
संवत् 1980 में श्रीमती जी का स्वर्गवास हो गया।