अम्मा का तेरवां
ग्राम भोज कराना होगा,
गौ दान देना होगा,
अम्मा का तेरवां धूम-धाम से करना होगा,
वरना अम्मा शांति न पायेगी
भटकती फिरेगी आत्मा…
तुम्हें सताएगी,
रात रात जगायेगी,
सौ सौ रोग लगाएगी,
होश खोकर पगलाओगे
कहीं चैन न पाओगे
बेटा बीमार होगा
मंदा व्यापर होगा…
छोड़ देंगे कुल-देवता भी साथ
कुछ न रहेगा तेरे हाथ…
वो थरथर कांपने लगा
सोचता है
अम्मा जो जान से प्यारी थी,
जो पैर में कांटा चुभने पर
तड़प उठती थी,
मेरी आँख में एक आँसू देख
हजारों मन्नते माँगती थी,
व्रत उपवास रखती…
अब मर कर क्या इतना सताएगी
बिना ग्राम भोज
गौ दान, धूम-धाम के
उसकी आत्मा चैन न पाएगी
क्या अम्मा सच में इतना सताएगी?
दुखती रग
जब भी सुनाई जाती उन्हें कोई कहानी
वे बड़े ध्यान से सुनते
कहानी में डूब जाना चाहते
कहानी के उतार चढ़ाव साफ नजर आते
उनके चेहरे पर…
पूछा उनसे कि क्या सुनते हो
इतनी गम्भीरता से,
ये गरीब तो हर दिन
बीसियों आते है तुम्हारे दरबार में,
इनकी समस्या का समाधान भी तो
तुम नहीं करते
फिर भी उनकी बातों को दुहराते हो..
बार बार सुनते हो…
क्या ढूंढते हो उसकी बातों में…
वे अजीब सी हंसी हँसकर बोले
कौन सुनता है उनकी बात
समस्या समाधान के लिए
मैं तो उनकी बातों
ढूंढता हूँ उसकी ही
दुखती रग…
जिसे थाम मैं पहुँच हूँ उसके मन तक
तभी तो
पत्थर
मत फूँको मुझ में
प्राण,
नहीं चाहती मैं
किसी पैर के
अंगूठे की छुअन से
खो देना
अपना पथरीलापन,
अब भाने लगा है मुझे
पत्थर होना…
यूँ भी,
जी कर क्या पाया था
दर्द के सिवा
और अब जी कर
क्या पाऊँगी
सिवाय दर्द के…
मैं अहिल्या भली!!!
हर बार चुनता है वो मुझे।