कभी चंदा, कभी सूरज, कभी तारे संभालें हैं
कभी चंदा, कभी सूरज, कभी तारे संभाले हैं
सुखनवर के मुकद्दर में मगर पैरों के छाले हैं
हमारी बेगुनाही का यकीं उनको हुआ ऐसे
वो जिनको चाहते हैं अब उन्हीं के होने वाले हैं
मेरी भूखी निगाहों में शराफत ढूंढने वाले
तेरी सोने की थाली में मेरे हक़ के निवाले हैं
हमारी झोपडी का कद बहुत ऊंचा नहीं लेकिन
तेरे महलों के सब किस्से हमारे देखे भाले हैं
भरी महफ़िल में आके पूछते हैं हाल मेरा वो
तकल्लुफ भी निराला है,इरादे भी निराले हैं
चलो अब इस जहाँ की सोच से नज़रे हटा लें हम
जहाँ तक देखते हैं ,हर किसी के हाथ काले हैं
डुबोकर मेरे ख़्वाबों का सफीना पार उतरो तुम
और अहसास के सपने तो लहरों के हवाले हैं
खुदा की दुनिया में क्या क्या नहीं है
खुदा की दुनिया में क्या क्या नहीं है
हमारी आस को खतरा नहीं है
खुदा से यूँ हमे शिकवा नहीं है
उसे हमने मगर देखा नहीं है
किसी के हाथ में चुभती है चाँदी
किसी के हाथ में चिमटा नहीं है
बदलते दौर में उस घर का नक्शा
गली के मोड़ से दिखता नहीं है
बिखरकर खो गए यादों के मोती
हुनर का मुझमें ही धागा नहीं है
दुआ में और क्या मांगूं मैं या रब
उन्हें मुद्दत से बस देखा नहीं है
उतर आती है ज़न्नत भी ज़मी पर
मगर बिछड़ा खुदा मिलता नहीं है
भटकता है तेरी चाहत में जोगी
तेरी महफ़िल में क्या चर्चा नहीं है
चलें भी आयें वो एक रोज़ शायद
समंदर से बड़ा सहरा नहीं है
जिसे अंधी तलब है जिंदगी की
हकीकत में वही ज़िंदा नहीं है
निगाहें दूर तक करती हैं पीछा
तुम्हारे आने का रस्ता नहीं है
सुना है सब्र की मंज़िल है मीठी
हमारे पास पर नक्शा नहीं है
नज़र आ जाता है सहरा में दरिया
सलीके से कोई प्यासा नहीं है
नहीं है उसको अब मेरी तमन्ना
मुझे भी दर्द अब उतना नहीं है
उसी की याद में आँखे हैं रौशन
उसी के नाम का कतरा नहीं है
ज़माने ने मुझे तोडा है इतना
वो मेरे दिल का अब टुकड़ा नहीं है
थे उसपे बेअसर सब लफ्ज़ मेरे
सो खत में कुछ भी तो लिक्खा नहीं है
ख्यालों में है तेरे गम की सूरत
बयां करने को पर मिसरा नहीं है
ज़रा-सा मुस्कुरा दो तो बड़ी हो जाओगी बिटिया
ज़रा सा मुस्कुरा दो तो बड़ी हो जाओगी बिटिया
तुम्हीं जुगनू,तुम्हीं खुशबू, तुम्हीं हो चाँदनी बिटिया
किताबें कितनी सुन्दर हैं कहीं चंदा,कहीं तारे
लो अपने बस्ते में भर लो ये सारी रौशनी बिटिया
सुबह उठकर चली जाती हो जैसे रोज़ पढ़ने तुम
किसी दिन बच्चों को तुम भी पढाओगी मेरी बिटिया
चलो आओ चलें पढ़ने नए कुछ खेल भी खेलें
सरल हैं ये सभी चीज़े नहीं मुश्किल कोई बिटिया
नए रस्ते ,बड़ी मंज़िल ,घना उल्लास और साहस
बसा लो इनको जीवन में रहो संवरी सजी बिटिया
मुस्कुराहट ही सदा मिलती खता के सामने
मुस्कुराहट ही सदा मिलती खता के सामने
सारी दुनिया छोटी है माँ की दुआ के सामने
छत नहीं मिलती है जिनको एक ऊँचाई के बाद
गिर भी जाती हैं वो दीवारें हवा के सामने
सिर्फ वो ही ढक सकेगा अपनी खुद्दारी का सर
दौलतें प्यारी नहीं जिसको अना के सामने
जिनकी दहशत से सितम से जल रहा सारा जहां
वो भला क्या मुँह दिखायेगें खुदा के सामने
आसमां सी सोच हो और बात हो ठहरी हुई
फिर ग़ज़ल मंज़ूर होती है दुआ के सामने
तेरे होठों से जो सुन लूँ इश्क में डूबी ग़ज़ल
ये इनायत है बड़ी मेरी वफ़ा के सामने
किस लिए तुम खोलते हो मेरे मर्ज़ो की किताब
नाम उसका ही लिखा है हर दवा के सामने
हर जगह मौजूद रहती जीने की सूरत कोई
आदमी का बस नहीं चलता कज़ा के सामने