लिफ़ाफ़े के भीतर
लिफ़ाफ़े के भीतर
तुम्हारी चिट्ठी मिली
लिफ़ाफ़े के भीतर
एक दूसरा लिफ़ाफ़ था
उस पर एक नाम लिखा था
गाँव का नाम, डाकख़ाना, ज़िला
तुमने लिखा था ख़त में
दूसरे लिफ़ाफ़े के भीतर
रेल का टिकट है और
माँ को एक चिट्ठी
लिफ़ाफ़ा कई दिनों से बन्द था
लिफ़ाफ़े के भीतर बंद थी
कई दिनों से एक चिट्ठी
चिट्ठी में कुछ उतावले शब्द थे
जो झमाझम बारिश में
रह-रह कर कजरी गाने लगते थे।
सात बरस की लड़की
सात बरस की लड़की
इक्कीस इंच की साइकिल
चला रही है
गाँव के बाहर पिच रोड पर नंगे बदन
पीछे-पीछे दौड़ रहा है
एक उससे भी छोटा नंग-धड़ंग लड़का
लड़की का रंग काला है
भूरे बाल खुले हुए हैं
नाक में चांदी की कील है
लड़की पैडल मारने के लिए उझकती है
आबनूस की तरह उसकी खुरदुरी टहनियों वाले हाथ
डैनों की तरह फरफराते हैं
उड़ते पक्षी की निहंग आँखों से
लड़की बेपरवाह देखती है मुझे
लड़की निर्भय है
और काला लड़का भी
कई कच्चे-पक्के घरों की बाहरी दीवारों पर
कई कच्चे-पक्के घरों की बाहरी दीवारों पर
गेरू से चित्र बने हैं
केले के पेड जिनमें कई घार केले लटके हैं
फहरते सिक्केदार पंखों वाले नाचते मोर
दो गोल पत्तियों वाले खिले-अधखिले कमल के फूल
भाला लिए दरवाज़ों के दोनों तरफ़ तने दरबान
यह कोई ज़रूरी नहीं कि घरों के नाम हों ही
लिहाजा इन घरों पर कोई नाम
दर्ज़ नहीं है
व्यक्तियों के नाम घरों के नाम हैं
गाँव के किनारे प्राइमरी स्कूल की परती पर
गाँव के प्राइमरी स्कूल की परती पर
इतवार के दिन
उन्मुक्त खेलते लड़कों से पता पूछता हूँ
लड़के इकट्ठे हो जाते हैं
अनजाने भाव चेहरों पर
पानी की तरह बरसते हैं
लड़के नाम दुहराते हैं…
नाम का जाप प्रारम्भ है
लड़के नाम नहीं जानते
नाम का अर्थ नहीं जानते
नहीं जानते हैं बद्ध को
और बुद्ध का धम्म
एक अधेड़ व्यक्ति
एक अधेड़ व्यक्ति
प्रत्युत्तर में पूछता है
दिन का प्रत्यक्ष यक्ष प्रश्न-
“फलाने कौन बिरादर हैन…?”
सहचर वृक्ष से पूछूँ
खग से खग की भाषा में
या उस जीव से
जिससे मिला ही नहीं कभी
मैं तटस्थ सोच में हूँ
तुम्हारी जाति क्या है, बन्धु?
तुम्हारी जाति क्या है, कवि?
या फिर क्यूँ पूछूँ?
वह मुझे देखती है
वह मुझे देखती है
जैसे देखती है
मुझ में किसी और की आँखें
किसी और का चेहरा
ढूँढ़ती है कोई और ठस आवाज़
माथे पर जैसे कोई चोट का निशान
उसकी आँखों में
मैं देखता हूँ परात भर पानी
जिससे वह पखारती है मेरे अदृश्य पाँव
तुम किसकी माँ हो
राम सवारी देवी?
मैं क्यूँ देखता हूँ तुम्हारे माथे पर
अपनी माँ का टीका
तुम्हारी निष्कपट आँखों में
अपनी माँ के संचित आँसू
माँ को जाना है
माँ को जाना है बेटे के पास
माँ ख़ुश है
ताने-बाने पर चढ़ी हैं नीली सफ़ेद यादें
बुने जा रहे हैं आसमानी सपनों के थान
दिख रहे हैं
उजले-उजले दिन
नरम-नरम रातें
सुनाई दे रही है विस्मित हँसी
अभी मकई के दाने निकालने हैं
अचार को धूप दिखानी है
कपड़े तह करने हैं
तलनी है मीठी पूरी
खदेरन को खेत सहेजना है
बड़कू को घर-दुआर
काम ही काम फैल गया है आज
पान्ती काकी
मैं पान्ती काकी के बारे में
पूछता हूँ
और लोगों की आँखों में
पढ़ता हूँ दुख तन्त्र
लोग कमला दासी के
बारे में पढ़ते हैं
किताब में
कविताओं में
तालाबों में बची हैं
तालाब में बची है शैवाल की
हरी खुरदरी कालीन
महुआ के पेड़ों की
हरी छाँव
मकई के हरे खेत
धान की हरी जवानी
बचा है अभी भी
अपनों के बीच अपनों की ख़बर का
चटख हरापन
तुम यहाँ भी
तुम यहाँ भी मिल गए जब्बार मियाँ?
पूरे भदोही में
तुम किस-किस गाँव में ख़ुश हो
और किस-किस में उदास
मुझे बता सकोगे
मैं देखता हूँ
जब तुम कालीनों पर
गुल-तराशी करते हो तो
फूल महकते हैं
और तुम बहुत उदास हो जाते हो
यहाँ से पचास किलोमीटर दूर बनारस में
उठ रही दुआख़्वानी की आवाज़ें
और मुर्की बंद होने की ख़बर सुनकर
तुम घबरा क्यों जाते हो जब्बार मियाँ?
एक नई सी गुमटी है
एक नई सी गुमती है
मर्तबान में टाफ़ी, साबुन, बिस्क्य्ट बन्द हैं
धागे में लटके हैं गुटखे
एक ज़र्दे का पान लगवाता हूँ
दो रुपए के सिक्के में से काट कर
दुकानदार मुझे लौटाता है
एक का नोट
एक रूपए का नीला कड़क नोट
मुद्रण वर्ष 1969
छत्तीस वर्ष से बचा कर रखी गई
आस का भग्नावशेष