आधा आदमी और मेरी आवाज
अपनी पूरी छाया से खेलता
देख अपने समानान्तर अधूरी छाया
कौतुक से ऊपर देखकर
बच्चा हैरानी से चिल्लाया
अरे! आधा आदमी! आदमी आधा!
मेरी आवाज से बच्चा सहमा
चुप अपनी आवाज समेटता हुआ
मेरी आवाज!
मैने हर वक्त सुनी
खो न दूं कहीं अपनी आवाज
जीवन–छंद के पूर्ण गान के लिये
हर पल हर सांस
स्वर्ण रजत पहुरूओं के साथ
चार छंदों की एक तान बुनी।
कहां थी मेरी आवाज?
आधे आदमी के बेआवाज प्रश्न
मेरी आवाज बेउत्तर मौन
कहां थी मेरी आवाज?
कभी उठकर रोटियों के सुगन्धित धुऐं में
कभी उठकर प्यालों की खनखनाहट में
कभी उठकर साजों की झनकार में
कभी उठकर मुद्राओं की खनक में
कभी उठकर चोराहे के भोपुओं में
कभी उठकर मंत्रों इबाबतों में
कभी उठकर बारूद के धुंऐ में
घुटती हुई लरजती हुई
आधे आदमी की सूखी आंखों में
खोती हुई।
सरहद पार जिसे छोडा
वह भी था आधा आदमी
इस पार जो लौटा
वह भी था आधा आदमी
न आवाज न आंसू
नहीं चार छंदों का गान
रोक सके न क्यो
आदमी को आधा आदमी होते हुऐ
बना सके न क्यो
आदमी को
अश्रु गौतम के
भावों से भरे थे
कमु से या कुभा से
कहाँ से आये थे
पर्वत की शिलाऐं नहीं जानती
थी शिल्पी के हृदय में
तथागत की वाणी।
छैनी हथोड़ी के आघातों से
हुआ भाव–संयोजन
धातु और पाषाण में
बनी प्रस्तर प्रतिमा गोतम की
भाव ही प्राण थे
भाव ही सेतु थे
मानव की उपासना के
अभिव्यक्ति के।
शांत करूणा थी
मुर्ति के मुख पर
प्रतिमा ने सदिया देखी
धूप आंधी तूफान
आये, चले गये।
प्रतिमा नहीं थी वह
स्वपन था रचियता का
मुस्कानें जो शिशुओं के मुख पर हो
अश्रु जो उनके गालों पर हो तो
हाथ उन्हे झुलाने को उठते हो।
एक दिन सब बदल गया
प्रस्तर प्रतिमा गोतम की
महालय में एक विशाल पाषाण!
मौन खडी देखती रही
अपने अंगों पर होते
बारूद के आघात झेलती रही
अश्रु न एक गिरा
पाषण मुर्ति जो थी!
उस मुर्ति का हृदय प्रेम भरा
व्याप्त हो जायेगा
विश्व मानव के मन में
ऐसा ही सोचा होगा
रचयिता ने
मूर्ति का क्या है
जो था वो तो
अहिंसक प्रेम भरा मन था
भावों का संयोजन था
उसे ही विराट होना था।
रसा ्रकमु कुभा की भुमि
नवपल्लव सिसकते है
हाथ हत्या के लिये उठते है
मानव का मन
पाषाण ऐसा भी होता है!
गोतम की ध्वसत
प्रस्तर प्रतिमा
अश्रुपूरित हो गयी
एक पूरा आदमी?
बूंद और शब्द
विंध्यगिरी अमरकंटक शिखर पर
अम्बर से गिरती बूंद-बूंद मेघस्याही
धुंआधार के मरकत मृदंग पर
मधुमास की भैरवी रूद्र का हुंकार
मिलन के राग विरह के गान
कोयल की कूक चामुंडा का रोद्र
लहर पंक्तिबद्ध मुक्तछंद जलगीतिका
किले, मंदिर, घाट, खेत, गृहणी, किसान
यक्ष कुबेर की निधियाँ, गंर्धवनारद के गान
महाकाल साक्षी शाश्वत बहती कहानी।
गंगा की तरह वह स्वर्ग से नही उतरी
नहीं वह महेश्वर की जटाओं में बंधी
रोक नहीं सकी सहस्त्रबाहु की भुजाऐं
रेवा नदी थी नदी की ही तरह बही।
अंतरगिरी में अमरकटंक पर घटाऐं
फाल्गुनी, बसंती, हेमंत, शीत, ग्रीष्म
शब्दघन धुंआधार बरसते कडकते
अन्तहीन रेतीली मरूभुमि में खो जाते
घनेरी घाटियों में दिशा तलाशते
कभी पथरीली चट्टानों को जगाते
सुरम्य नाद करूण आरोह अवरोह
भावों के किनारें भावनाओं का नीर
आम, जामुन, कास, बबूल की निधियाँ
सुनहले दुपट्टे से चूडियों के गीत
राग अनुराग भयद्वेष के अभेद्य किले
चेतना करूणा प्रज्ञा प्रीत के मंदिर
अश्रुजल से धुलते घाट पनघट
अन्तराचल पर कलकल शब्दसरिता बही
अपने अपने पथ बहती दो नदियाँ
भेद बडा एक दोनों में पाती हूं
लहरों के गीत लिखती विंध्यवासिनी
बहकर थमे सागर से जा मिलती है
भावमंथन से निकली अन्तरवासिनी
किसी सागर में समाना नहीं चाहती
मनके
सुबह, दोपहर, शाम
खुली पलकें
ज्योतिहीन दृष्टि
मनके गिनती उगंलियाँ
जहाँ से चली
वहीं पर जा थमी।
बीज, अंकुर, फले वृक्ष,
झड़ते पत्ते
ठुमकती बयार
उड़ाते झोंके
कहां प्रारम्भ
कहां अन्त?
यात्रा, पडाव, मंजिल
बन्द पलकें
बन्द मुठ्ठी
अन्तर तलाशती दृष्टि
माला गिरी
अब खुली हथेली!
ओस के दिये
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दिये ओस के दिये
पुतलियो के दरवाजे खुले
मनुहार के जुगनू झिलमिलाये
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दिये ओस के मोती
पुतलियों के दरवाजे खुले
सुधियों के हंस लहराये
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दी ओस की मंजरियाँ
पुतलियों के दरवाजें खुले
प्रीत के बसंत घिर आये
पलकों की देहरी पर किसी ने
छेड़ दी ओस की रागिनी
पुतलियों के दरवाजे खुले
उमंगों के पपीहे बौराये
पत्तियाँ
पेडों से झरती पत्तियाँ
पत्तियों से जुडी पत्तियाँ
टूट टूट कर गिरती पत्तियाँ
पीली भूरी बैगनी पत्तियाँ
पानी में भीगती पत्तियाँ
ठंड में ठिठुरती पत्तियाँ
धूप में गुनगुनाती पत्तियाँ
गर्मी में झुलसती पत्तियॉं
चांदनी में कुनमुनाती पत्तियाँ
हेमंती हवा में उड़ती पत्तियाँ
पेड़ो से झरती पत्तियाँ
केसरी सिंदूरी महावरी पत्तियाँ
पत्तियों संग धूम मचाती पत्तियाँ
पत्तियों से मिल गाती पत्तियाँ
पत्तियों से छुप भागती पत्तियाँ
पत्तियाँ के सपने देखती पत्तियाँ
पत्तियों की हंसी उडाती पत्तियाँ
पत्तियों से मिलने दौडती पत्तियाँ
पत्तियों से बिछ्ड़ रोती पत्तियाँ
फिर आने का वचन देती पत्तियाँ