आजु परभात छबि औरई लखानी तन
आजु परभात छबि औरई लखानी तन ,
औरे रँग तरुनी तिया को ह्वै गयो ।
राजहँस सफल हिये की चारु आसा भई ,
ललित मनोरथ को बीज बन ब्वै गयो ।
तपनि मिटावन अनँद सरसावन अमल ,
जीवधाम सोँ अमँद घन च्वै गयो ।
आज ही अनूप तेज रखि उर अँतर ,
सभी के सँग साँचोई तिया को तन ह्वै गयो ।
राजहँस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
सुरत सुखद सम अति अरसाने अँग
सुरत सुखद सम अति अरसाने अँग ,
आनन अनूप सोनजूही छवि छावै है ।
अमल रसाल सम युगल उरोज पर ,
अधिक अधिक स्यामताई सरसावै है ।
राजहँस नित निज रूपहिँ बढ़ाय लँक ,
तन मन बैन की चपलता हटावै है ।
रवि छवि वारी वर उषा सी रुचिर बाल ,
गरभ समेत प्यारी काको न सुहावै है ।
राजहँस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
उदित उदयगिरि अवलीन जैसे रवि
उदित उदयगिरि अवलीन जैसे रवि ,
जैसे राजै सरस कुसुम पुँज कोद मेँ ।
कवि राजहँस जैसे सर मे सरोज वर ,
जैसे मनहर सुर सुँदर सरोद मेँ ।
राजत भरत ज्योँ शकुँतला के अँक
रघु राजै ज्योँ सुदच्छिना की गोद मेँ ।
तैसे ही हरनहारो प्यारो छविवारो सिसु ,
तरुनी तिया को पागै लाज औ प्रमोद मेँ ।
राजहँस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।