डोकरी फूलो
धूप हो या बरसात
ठण्ड हो या लू
मुड़ में टुकनी उठाए
नंगे पाँव आती है
दूर गाँव से शहर
दोना-पत्तल बेचने वाली
डोकरी फूलो
डोकरी फूलो को
जब भी देखता हूँ
देखता हूँ उसके चेहरे में
खिलता है जंगल
डोकरी फूलो
बोलती है
बोलता है जंगल
डोकरी फूलो
हँसती है
हँसता है जंगल
क्या आपकी तरफ़
ऎसी डोकरी फूलो है
जिसके नंगे पाँव को छूकर, जंगल
आपकी देहरी को
हरा-भरा कर देता है?
हमारे यहाँ
एक नहीं
अनेक ऎसी डोकरी फूलो हैं
जिनकी मेहनत से
हमारा जीवन
हरा-भरा रहता है।
पक रहा है जंगल
अप्रैल का महीना लौट रहा है
जंगल मे
और
सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट में
रच रही हैं चींटियाँ अपना समय
तपते समय में
उदास नहीं हैं
जंगल के पेड़
उमस में खिल रही हैं
जंगल की हरी पत्तियाँ
पेड़ की शाखाओं में
आ रहे हैं फूल
आम अभी पूरा पका नहीं है
चार तेन्दू पक रहे हैं
पक रहे हैं
जंगल में क़िस्म-क़िस्म के फूल-पौधे
सावधान।
अभी पक रहा है जंगल।
शांत जंगल को
पगडंडी को छूकर
एक नदी
बहती है मेरे भीतर
हरे रंग को छूकर
मैं वृक्ष होता हूँ
फिर जंगल
मेरी जड़ों में
खेत का पानी है
और चेहरे में
धूसर मिट्टी का ताप
मेरी हँसी में
जंगल की चमक है।
गाँव की अधकच्ची पीली मिट्टी से
लिखा गया है मेरा नाम
मैं जहाँ रहता हूँ
उस मिट्टी को छूता हूँ
मेरे पास गाँव है, पहाड़, पगडंडी
और नदी-नाले
और यहाँ बसने वाले असंख्य जन
इनके जीवन से रचता है मेरा संसार
यहाँ कुछ दिनों से
बह रही है तेज़-तेज़ हवा
कि हवा में
खड़क-खड़क कर चटक रही हैं
सूखी पत्तियाँ
मैं हैरान हूँ
शान्त जंगल को
नए रूप में देखकर।
बेटे की हँसी में
यश के लिए
अँधेरे की काया पहन
चमकीले फूल की तरह
खिल उठती है रात
अँधेरा, धीरे से लिखता है
आसमान की छाती पर
सुनहरे अक्षरों से
चाँद-तारे
और
मेरी खिड़की में
जगमग हो उठता है
आसमान
अक्सर रात के बारह बजे
मेरी नींद टूटती है
खिड़की में देखता हूँ
चाँद को
तारों के बीच
हँसते-खिलखिलाते
ठीक इसी समय
नींद में हँसता है मेरा बेटा
बेटे की हँसी में
हँसता है मेरा समय।
हँस रहा हूँ मैं
सूरज के लिए
पल-पल मुश्किल समय में
अकेला नहीं हूँ
सूरज की हँसी है
मेरे पास
सूरज की हँसी
तीरथगढ़ का जलप्रपात है
जहाँ मैं डूबता-उतराता हूँ
और भूल जाता हूँ
अपनी थकान
सूरज हँस रहा है
हँस रहा है घर
हँस रहा है आस-पड़ोस
हँस रहे हैं लोग-बाग
हँस रहे हैं आसमान में उड़ते पक्षी
हँस रहा हूँ मैं
हँस रही है पृथ्वी इस समय।