लेखक मित्र उमराव सिंह जाटव के नाम एक कविता

ओ मेरे प्रिय मित्र
तुम रुष्ट हुए,
भर कर क्रोध
लौट गए वापस अपनी दुनिया में
और कंपित कर गए मुझे ।

पीछे छोड़ गए अनगिनत प्रश्नों की
गर्भवती
सुलगती एक चिता ।

तुम क्यों चाहते थे
भरमार चिक्कलसें
बेदम वाह-वाही

क्यों हसरतें थी तुममें
कि कोई दे तवज़्ज़ों
और ठूँस ठूँस कर भर दे
तुम्हारे फ़ूलदानों में
वो काग़ज़ी- बेजान फ़ूल
जिन्हे तुम खुद भी तो कभी नहीं देखते ।

लेकिन क्यों थी यह तुम्हे अपेक्षा
कि लोग भाँड़ बन जायें
और लगें तुम्हे पूजने
ठीक वो ही पूजा-पाठ
जिसका विरोध करते करते
अब साँस फ़ूलने लगती है तुम्हारी ।

ओ मेरे प्रिय मित्र
भीड़ कभी प्रेम नहीं करती
भीड़ तमाशा होती है
भीड का अपना गति-विज्ञान है
उसे हर रोज़ जरुरत होती है एक तमाशे की
तुम भी
और मैं भी तो
हिस्सा थे, इस तमाशे का ।

पर तुम स्वयं इसके विरोधी थे
फ़िर क्यों पोषित की वह जिज्ञासा
कि एक तमाशा तुम्हारा अपना भी हो

ओ मेरे प्रिय मित्र
काश तुम ये जान पाते
कि बिना तमाशा बने भी
तमाशे को देखा जा सकता है
इसका लुत्फ़ लिया जा सकता है
किसी को प्रेम किया जा सकता है
सिर्फ़ प्रेम
विनिमय विहीन प्रेम ।

ओ मेरे प्रिय मित्र
काश तुम यह जान पाते
कि एक हाथ से भीड़ नहीं थामी जाती
एक मुठ्ठी में एक हाथ ही भर सकता है
तकिये के बगल में रखे
बहुत हैं एक
-दो चमेली के फ़ूल ही
जिनके सहारे काटी जा सकती है
रात, अंधेरा और उसकी त्रासदी ।


रचनाकाल : 20.05.2010

तेरा मेरा भारत- महान 

तुम कहते हो बदल रहा है भारत

भेजते हो रंग बिरंगी तस्वीरों की ‘फ़ारवर्ड मेल्स’
नहीं थकती जो गिनाते उलब्धियाँ, एक के बाद एक
प्रति व्यक्ति बढ गई है आय
खुल गये हैं चमचमाते मॉल
शहरों में बन गये हैं फ़्लाई ओवर
बिछ गया है सर्वत्र सड़कों का जाल
देश हो गया है चलायमान
भारत भेज रहा है अंतरिक्ष में चन्द्रयान

बढ रही है “अग्नि-त्रिशूल” की ताकत और रफ़्तार
सस्ते हो गए हैं हवाई जहाज के किराये
उपलब्ध हैं सभी आलीशान कारें
तुम कहते हो बदल रहा है भारत…

कस्बों में हो रहे हैं अब फ़ैशन शो
टी०वी० चैनलों की पहुँच में
आ गया है अब अंतिम आदमी
उनसे नहीं छिपती अब
भैंस के मरने की भी ख़बर
बन गई है एक लाख रुपये की कार

बहुत बन गये हैं मकान
एक के बाद एक
ठूँस दी गई हैं बहुमंज़िली इमारतें
हर बडे शहर में भारत के
तुम कहते हो बदल रहा है भारत…

दौड रहा है भारत प्रगति के पथ पर
सारथि बहुत सक्षम है
बहुत बडा विद्वान है, उसे अर्थ का ज्ञान है
भीष्म की प्रतिज्ञा का पर्याय है
भारत में उसका नेतृत्व अपरिहार्य है
खींच कर ले जाने को है प्रतिबद्ध वह
इक्कीसवी सदी में- एक भव्य भारत को

अब इंटरनेट और तेज़ हो जाएगा
पिक्चर की जगह वीडियो भेजा जाएगा
नये युग में युवा का प्रवेश हो जाएगा
भारत शीघ्र ही विश्व शक्ति बन जाएगा
तुम कहते हो बदल रहा है भारत…

भर गए हैं खाद्यान्न
उपलब्ध हो गया है सबको अन्न
देश की प्रजा बहुत है प्रसन्न
विश्वस्तरीय होता है अब उपचार
हर नगर धर्म का हो रहा प्रचार

धर्म गुरुओं की अनवरत आपूर्ति
गाँव-गाँव ही नहीं वरन
विदेशों में भी उनका निर्बाध् निर्यात है जारी
चहु दिशा हो रहे भारतीय उन्नति के गुणगान
राष्ट्रभक्त कवियों का बढ रहा है अब मान…

प्रगति बहुत तेजी से
पूरे भारत से होकर, भागी जा रही है
काल सेन्टर की कमाई
देश के युवा से खाई नहीं जा रही है
बहुत जल्द मुंबई स्टाक एक्सचेंज
बन जायेगा न्यूयार्क, लंदन, शांघाई, जापान के शेयर बाजारों का
एक भरोसेमन्द विकल्प

प्रवासी चंचल पूँजी भारत के शेयर बाजारों से होकर
खेत खलिहानों और चूल्हे चौकों और चौपालों तक
भर देगी अकूत सम्पत्ति
बन जाएगा भारत एक समृद्ध राष्ट्र
इस सपने को देखने और जबरन दिखाने का आयोजन
तन-मन-धन और शक्ति-बल से
पूरे राष्ट्र में
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है

इसीलिये बंधु
तुम कहते हो बदल रहा है भारत…

कि लोकतंत्र हो चुका है मज़बूत
मिल गए है सभी को जनवादी अधिकार
दिल्ली-पेंटागन के बने ये डिजिटल निवाले
ख़ुद भी खाते हो
मेरे मुँह में भी ठूँसते हो और दूसरों के भी

राष्ट्र की दे कर दुहाई
करके मेरा भावनात्मक शोषण
तुम चाहते हो कि
इस प्रचार महायज्ञ-उपक्रम का
मैं भी बन जाऊँ एक भाग
और मैं भी ठूँस दूँ
ये संक्रमित निवाले किसी और के मुँह में

और ये सिलसिला तब तक जारी रहे जब तक
कोई सिरफ़िरा
बनकर एक ठोस यथार्थ की दीवार
तुम्हारे व्यर्थ प्रचार से भरे
मस्तिष्क को पटक पटक कर
तुमसे पूछे कि :

क्या बंद हो गयी नेताओं की घूसखोरी
सरकारे नीलामियों में भ्रष्टाचार
रुक गई प्राकृतिक संपदाओं की सरकारी लूट
क्या थम गया आदिवासियों का विस्थापन
क्या मिल गये गरीब, दलितों, महिलाओं को उनके अधिकार
क्या शांत हो गया कश्मीर, सुदूर उत्तर पूर्व
क्या शांत हुआ नक्सलबाडी हथियार बन्द आंदोलन
क्या बंद हुई फ़र्ज़ी मुठभेडें
क्या मिल गए समस्त मानवाधिकार
क्या लग गई मंहगाई के घोडे पर लगाम

क्या मिल जाती है दो जून की रोटी सभी को
क्या आज भी तुम नहीं भेजते
आफ़िस में लगे व्यावसायिक फ़ोन के बदले
एक खास तिथि को एक निश्च्ति शुल्क, जिसके न भेजने पर
थम जाता है तुम्हारे टेलीफ़ोन का रक्त चाप
भेजते हो तुम शिकायती फ़ैक्स,
जो किसी अफ़सर को कभी नहीं मिलते
और तुम कुछ भी नहीं उखाड पाते, उस अदना से लाईनमैन का
क्या यह थम गया?

क्या विद्युत विभाग का एस०डी० ओ० बिना पूरी बिजली आपूर्ति किए
नही लेने आता अपनी मासिक किस्त
क्या आज भी नहीं भेजते तुम एक तयशुदा राशि
आबकारी विभाग के अधिकारी को
जिसके विलंब पर चला आता है उसका चपरासी
किसी अघोषित आधिकारिक निरीक्षक की भाँति
और देता है तुम्हे पैगाम कि “सा’ब याद कर रहे हैं आपको”

क्या ज़िला उद्योग का वह बदबू भरा चपरासी
गुटका मुँह में दबाए, अब हर महीने नहीं करता उगाही?
क्या बंद हो गया है सेल्स-टैक्स वालों को लगाना मासिक भोग
इंकम-टैक्स वालों को
नगर निगम टोल टैक्स वालों को
पुलिस वालों को
और न जाने कितने सरकारी विभाग
जो कारोबार को खाते है किसी घुन की तरह

हो सकता है यह सब बदल गया हो
हो सकता है शहर में, नया मानव पैदा हो गया हो
वो अब नहीं करता हो धर्म के नाम पर सांप्रदायिक दंगे
थम गया होगा सड़कों पर बहना निरीह इंसानी ख़ून
क्या पूर्णतः सुरक्षित हो गये बच्चे, लडकियाँ, मातायें-बहनें

चलो मुझे बताओ, क्या हो रहा है हमारे गाँव में?
क्या हुआ उस दीवानी मुकद्दमें का
जिसे पिताजी ने मरने के दस साल पहले किया था दर्ज
कैसे जाते थे वो तहसील, फ़िर सेशन कोर्ट हर महीने तारीख पर
कुढ़-कुढ़ कर देते थे पेशकार को रिश्वत
जिसे जज देखकर करता था अनदेखा
क्या हो चुका उस केस का फ़ैसला ?

क्या वह अभी भी देश के लंबित ढाई करोड़ मुकद्दमों में से एक है
क्या बन्द कर दी पटवारी-कानूगो ने मांगनी अपनी नाजायज़ फ़ीस
क्या ग्राम प्रधान-सचिव-पटवारी-ठेकेदार-पुलिस का गठजोड़ टूट गया है
जिसने काग़ज़ों मे ही दिखा दिया था
हमारे घेर से खेत तक का खडंजा
और डकार गए थे सरकारी धन
हमने की थी उसकी शिकायत जिलाधिकारी तक
क्या कोई कार्यवाही हुई?

बदले में मिला था हमें प्रधान-पुलिस के गठजोड का
एक फ़र्ज़ी फ़ौज़दारी मुकद्दमा ।

क्या लिख लेता है थानेदार तुम्हारी शिकायत
क्या बंद हो गये फ़र्जी मुकद्दमें जिन्हे प्रधान दरोगा को घूस देकर
करवाता था दर्ज
और करवाता था फ़िर फ़ैसला, डरा कर-धमका कर
खा जाता था पैसा गरीब का
क्या टूट चुका यह अपराधपूर्ण बंधन

क्या गन्ना समिति ने देनी शुरु की है गन्ने की पर्चियां
सहकारी समिति से मिल जाती है खाद
बिक जाता है सरकारी गल्ले में अनाज
बिना रिश्वत दिए ?

क्या बिक जाती है सब्जियाँ बिना आढ़ती के
क्या असानी से हो जाता है आलू, लाला के कोल्ड स्टोर में जमा
क्या आ जाता है डाक्टर ढोर अब भी वक़्त पर
क्या आने लगे सभी अध्यापक गाँव के माध्यमिक स्कूल में
क्या सच में होने लगी है वहाँ पढाई
क्या आने लगी बिजली जब उसकी हो ज़रूरत

क्या मिलता है प्रर्याप्त आपाशी हेतु पानी
क्या लौट आया वह गाँव का प्रेमी जोड़ा
जिनके प्रेम को पंचायत ने किया था तिरस्कृत
क्या गाँव में दलित समस्या हल हो गई
क्या बेनामी जमीन मिल गई उन्हें
क्या थम गया बिहार के गरीब मज़दूरों का आना
क्या मिल जाते है बैंक से ऋण आसानी से
क्या सरकारी अस्पताल में होने लगा है
गरीबों का उपचार,
उनके हिस्से की दवा बाजार में बिकनी बंद हो गयी

क्या यह गलत है कि करीब पचास फ़ीसदी भारत के जनता
अभी भी कुपोषित है
क्या रोज़गार मिल गया है सबको
क्या उपयुक्त प्राथमिक शिक्षा मिल गयी सब को
क्या ठीक हो गया है सब कुछ
क्या सचमुच बदल गया है भारत

क्या बदल गया है नेता-नौकरशाह
क्या बदल गया है मानव
मैं, तेरे अभिशिप्त सिर को
झूठ की भभूत मले इस पाखण्डी सिर को
इन यथार्थ के ठोस प्रश्नों के पत्थरों पर
तब तक मारता रहूँगा
जब तक तेरी
दिल्ली-पेंटागन की जुबान से

“हाँ” नहीं निकल जाता
हाँ- बदल गया है भारत
हाँ- हो गया है नया सवेरा

पैग़ाम-ए-मौहब्बत

नफ़रत के बदले प्यार को लुटा रहा हूँ मैं
सदियों पुरानी रस्म को ठुकरा रहा हूँ मैं

मेरी ज़ात को समा ले अपनी ही ज़ात में
है बचा खुचा जो चेहरा वो मिटा रहा हूँ मैं

गीतों में मेरे ख़ुशबू अब होने लगी दोबाला
अब इनमे तेरी रंगत को मिला रहा हूँ मैं

नगमे वफ़ा के शायद निकले तुम्हारी रूह से
यही सोच शेख साहिब तुझे पिला रहा हूँ मैं

तेरे मतब पे जाकर भी इन्सां बना रहूँगा
तेरी रिवायत की जड़ें हिलाने जा रहा हूँ मैं

देता रहा वाईज मुझे जो हिदायत की घुट्टियाँ
पीकर जो आई होश उसे वही पिला रहा हूँ मैं !

जब से बनाया तुझको आशार का मज़मून
चारों तरफ ये चर्चा है कि छा रहा हूँ मैं !

तेरा तसव्वुर तेरी ख़व्वाईश रखता हूँ]

तेरा तसव्वुर तेरी ख़व्वाईश रखता हूँ
जैसे खुद को पीने की प्यास रखता हूँ ।

जो भी क़दम उठे तेरी जानिब
ख़ुद से मिलने की आस रखता हूँ ।

जबसे किया है उसने तर्के ताल्लुकात
तब से उसके अहदों का पास रखता हूँ ।

तेरे गुलशन में ऐसा कोई फ़ूल नहीं माली
जिस फ़ूल की सीने में सुबास रखता हूँ ।
 
गुंबदे कामयाबी का “शम्स” क्या कीजिये
लम्ह लम्हा मैं उसी का एहसास रखता हूँ ।