श्रीराम का बाल्यावस्था शृंगार वर्णन
1.
”कोटि-काम-शोभा श्याम अंग नीलकंजघन अरुण-सरोज-पद नख-जोति मोती हैं।
रेख-कुलिश-ध्वज-वर-अंकुश-पग-नूपुर धुनि सुनि कै मुनीशन मन छोभ अति होती हैं।
रेखात्रय-उदर गँभीर-नाभि किंकिणिकटि भुज-विशाल-भूषणयुत सुखमा-की-सोती हैं।
उर-मणि-हार-हरि-नख द्विज-पाद-अंक पदिक मनोहर छवि साजहूं सँजोती हैं॥
2.
कम्वुकण्ठ चिवुक-सहायमान आननछवि अमित अनंग अंग शोभा अति जायो है।
दुइ दुईदाँत अति-रुचिर-अधर-रक्त नासा-शुचि तिलक अपार छवि छायो है।
सुन्दर कपोल गोल बोल प्रियतोँ तरि मधु अलिपुंज केश गभुआरे मनभायो है।
चारु श्रुति नीलकंज नेत्रवर भौंह बंग तनु पीत झिंगुली सजि मातु पहिरायो है॥
3.
जानुपाणि विहरैँ नृपांगन के माँझ रूपकान्ति अवलोकि मनमोद बढ़ि जात है।
ज्ञानगिरा गोतित पुनीत सुखधाम राम मोहगत विगत विनोद अवदात है।
निर्गुण निरंजन अज व्यापक सुब्रह्मवर प्रेमभाव भक्तिवश भक्त सुखदात है।
शेषनिगमागम थकि जात कहि लीलावश पार नहिं पावैँ निशिदिन सरसात है॥
इति श्री बाल्यावस्था शृंगार वर्णनम्
जनकपुर की छवि का वर्णन
अथ जनकपुर में की शोभासमाज वर्णन शैली
1.
पीतपट काछे आछे तूण कटि बाँधे काँधे चाप शर पाणि लोक लोचन सुखदाई हैं।
चन्दन कपूर भरपूर तनमाँह खौर श्यामचितचौर गौर जोरी मनभाई है।
कन्ध मृगराजसाज परमविशाल भुज नागमणिहार उर सुभग सुहाई है।
नवकंजलोचनभवमोचन पुनीत चारु कर्ण सर्वांग कामकोटि छवि छाई है॥
2.
कानन कनक फूल कल लोल अनमोल पेखि मन मुग्ध चख थकि थकि जाई है।
शारदेन्दु आनन विलोकि त्रायतापगत भौंहु धनु कुटिल अपार छवि पाई हैं।
बाँकी चितौन चारु तीछे कटाक्ष रेख तिलक अनूप सुखरूप दरशाई है।
केश अलिपुंज शिर चौतनी सुभग चारु नखशिख रुचिर सुदेश दुहुँ भाई है॥
3.
शोभासुखसीव जलजात गात नील मृदु कोटि 2 काम प्रति रोम 2 वारिये।
काकपक्ष सोहै सिर नीको लखि फीको काम बीच 2 गुच्छा कुसुमावली निहारिये।
परमसुचारु कान भूषण विराजमान कललोल कुण्डल कपोल सुखकारि ये।
चन्द्रमुखलोचन चकोर मुखकंजछवि मधुमकरन्दसों मलिन्द चख धारिये॥
4.
चन्दन कपूर चूर केसर तिलक भाल, विन्दु श्रम स्वेद कण मोती दल गायो है।
कुंतल घुँघुँवारे सुभग सँवारे शीश अलिपुंज देखि मदछड़ि के लजायो है।
भौंह धनु विकट अति निपट तिरीछे दृग नवल सरोज रतनारे मनभायो है।
सुभग किशोर वय नवल युवा के रूप परम अनूप सुकुमार भूप जायो है॥
5.
सुखमासदनवारे मदनमदकदनहारे दाडिमरदनवारे सुन्दर सँवारे हैं।
सघन बदनवारे दामिनिदमकवारे हाँस को विलास मन्द 2 शशि तारे हैं।
कम्बु कलग्रींव छविसींव उरमालमणि बाहु कर कलभ बलसिंधु के करारे हैं।
शांति शीलवारे कटि केहरि पटोरे पीत हंसवंशभूषण प्यारे दशरथदुलारे हैं॥
इतिश्री जनकपुर की छवि वर्णन समाप्ति
श्यामल शिखी गल सुरंग अंग चारु
श्यामल शिखी गल सुरंग अंग चारु छवि तड़ित विनिन्दक सुभाय सुदुकूल है।
रक्तनवल अमल कमलदल लोचन चारु शरद विमल विधुवदन अतूल है।
सकल सुमंगल सँवारे प्रति अंग अंग पेखि ये अनूा रूप मार मदभूल है।
यावक सुरंग मकरन्द रक्त रंजित पद-कंज मुनिमधुप समाज सुखमूल है।
शिवपूजन सहाय कृत
(”शिवपूजन“ ”एक क्षुद्ररामभक्त द्वारा रचित कविता“)
श्रीराम विवाह के समय की छविछटा
1.
माधुरी मुरति वाले सुन्दर सुरति वाले सहज निराले मनमोहन सुखारे हैं।
शारदेन्दु निन्दक मुखारविन्द मन्दमन्द रुचिर चितौन लखि मारमद हारे हैं।
सहज सलोने सुठिलोने मृगछौने सम मनभाव लोचन विशाल रतनारे हैं।
कलित कपोल कर्ण कुण्डल ललित लोल मृदुल सुबोल मंजु ओष्ठ अरुणारे हैं।
2.
चिबुक रसीली त्यों रँगीली हाँस मन्दमन्द चन्द कर शरदहूँ विनिन्दक सुहायो है।
भौंहनि कमान तान मानमदमार हनि चोखी सु अनोखी चख नासा मनभायो है।
सुभग विशाल भाल तिलक रसाल माल अलकाझलख पेखि भ्रमर लजायो है।
चौतनी चमकदार पीत रँगदार शिर गेँदा व गुलाब बीच रचि के बनायो है॥
3.
अखिल त्रिलोक छबि सींव सुख नींव यह कम्वुकल ग्रींव चारु तीनि बर रेखा है।
कण्ठ महुँ कलित गजेन्द्र मणि कण्ठ बर उर बनमाल उपवीत पीत लेखा है।
ठवनिमृगेन्द्र सम धीर बृषकन्ध भुजवलनिधि विशाल छबि जानैँ जिन देखा है।
तूणकटि पीत पट बाँधे बर वामकाँधे साधे कर चाप शर नखशिख अलेखा है॥
इतिश्री गोस्वामी तुलसीदासजी कृत मानस भाषा रामायणे श्री मिथिलापुरी वीथी मध्यवर्णित एवम् जनकराजस्य पुष्पोद्यान मध्ये वर्णित शृँगारस्य उल्थाकृतं शिवपूजनेन स्वहृदयभावं कवित्तभाषायां लिखितं रचितं च॥
श्रीराम विवाह छवि वर्णन
1.
परम पुनीत पीत धोती द्युति वालरवि दामिनि की ज्योती हरति छवि भूरी है।
कलितललित कल किंकिंणि मनोहर कटिसूतू दीर्घ बाहु मणिभूषण सोँ पूरी है।
पीत उपवीत शुभ यज्ञ व्याह साज कर मुद्रिका विलोकि मार भागि जात दूरी है।
सोहत उरायत महँ भूषण प्रभासमान मंजु नखसिखतेँ सु शोभा अतिरूरी है॥
2.
मुक्तामणि झालर सब अंजल सँवारे चारु पीत काँखासोती सो उपरणा सुभसाजे हैं।
कोमल कमल दल लोचन अमल रूरे कलकान कुण्डल सुलोल छवि छाजे है।
सकल सुदेश सुखमाके उपमा के चारु माधुरी सुभगता नखसिखते विराजे हैं।
भौंह बंक नासा शुकतुंड भालविन्दु चन्द्र केसर तिलक छविधामभल भाजे हैं॥
सवैया:
3.
कुन्तल कुंचित मेचक चिक्कण मौर मनोहर सोहत माँथे।
हंस की दीप्ति हरे अति ज्योति सुमंगलमय मुक्तामणि गाँथे।
मौलि सुदेश की कान्ति महामणि वीच रचे कुसुमावलि साथे।
मंजुल मौर अनूप छटा छकि गे शशि मैनहुं के मद नाथे॥
सामान्य सुखमादर्शन
श्यामतन भृंगकच कंज कर कंज पद कंजचख कुन्ददंत सुखमा अपार की।
सुन्दर कपोल गोल लोल कलकुण्डल कान ध्यानज्ञान मान हरै मुनिमन मार की।
रुचिर निवासा सुकनासा नन्दचन्द हाँसा अधर बिम्बकासा नखसिख छवि सार की।
शारदहूँ नारद विशारद कलाधरधर कहि ना सकैं जेहि सुफन हजार की॥
इतिश्री रामचन्द्र शृंगारवर्णन
होली धमार
मंगल लग्न भवन मंगलमय मंगलमय अवतारा।
रघुवर जन्म उदारा। मंगल सुख सारा॥
देश देश के नृप सब आए बहु विधि लिय उपहारा।
भूलि गई सुधि निजतनु केरी बिसरी विधि व्यवहारा।
जपतप संयम मुनिगण बिसरे योगी योग अचारा।
मगन भये रघुपति यश गावें सब नाचहिँ नृप द्वारा।
सुरगण दुन्दुभि झाल बजावैं सबदिशि जयजयकारा।
सुमन सुमन वर्षै अति हर्षै निरखैँ करहिं विचारा।
गुणनिधान करुणारस पूरण नृपसुत परम उदारा।
‘शिवपूजन’ जन अभय करन को असुर माहि हरिहैँ महिभारा॥
इति
श्रीरामचन्द्र की स्तुतिमालिका
श्री सीताराम
श्रीरामचन्द्र की स्तुतिमालिका
शिवपूजन एक रामोपासक कृत
(ईशस्तवन)
दोहा:
जयति दनुज वन घोर कृशानू। जपति विवेक सरोरुह भानू॥1॥
जयति क्षमामंदिर व्रजनन्दन। जयति दैत्यकुल मूलनिकन्दन॥2॥
जय मृगराज सुजन मनकानन। षट् विकार मृग गज पंचानन॥3॥
जय नवनीत चौर वंशीधर। जय करुणालय शंख गदाधर॥4॥
जय केशी कैटभ मधुसूदन। देव देव जय यशुदा नन्दन॥5॥
जय श्रीमर्य्यादा पुरुषोत्तम। जयति जयति सर्वज्ञ नरोत्तम॥6॥
जयति पतितपावन सुररक्षक। काल कराल असुर दल भक्षक॥7॥
जयति भूप मौलिमणि चारू। गज्जन दनुजहरण महि भारू॥8॥
जय सुरनायक यदुकुल केतू। जय जनहित रक्षक श्रुति सेतू॥9॥
जय जनमनवन केहरि शावक। जय अघ अवगुण घन वन पावक॥10॥
दोहा:
जय खरहा जय त्रिशिरहा, दूषणहा रणधीर।
रघुपुंगव रविकुलतिलक, जय जयश्री रघुवीर॥11॥
जय कालिन्दी कूल विहारी। जय त्रयताप शूल अपहारी॥12॥
जयति कच्छ मच्छ वपु धारण। गोद्विज सुर सन्तन हित कारण॥13॥
जयति जयति वाराह महीधर। जय नरसिंह देव जय प्रभुवर॥14॥
जय जय मुनिजन मानसहंसा। जय जय हंसवंश अवतंसा॥15॥
जय करुणावरुणालय यदुवर। जय सुखमासुख प्रेम पयोधर॥16॥
दोहा:
हृषीकेश माधव सुखद, राघव आनन्दकन्द।
विश्वम्भर केशव वरद, प्रभुगोविन्द मुकुन्द॥17॥
दामोदर अखिलेश विभु, अच्युत कृष्ण अखण्ड।
निष्कलंक अनवद्य मय, व्यापक सर्व ब्रह्मण्ड॥18॥
जयति जयति जय सिन्धु किशोरी। जयति विष्णु मुखचन्द्र चकोरी॥1॥
जयति जयति जय जनक किशोरी। जयति राममुख चन्द्र चकोरी॥2॥
जयति जयति वृषभानु किशोरी। जयति कृष्ण मुखचंद्र चकोरी॥3॥
जय जय भीष्मक भूप किशोरी। जयति कृष्णमुख चंद्र चकोरी॥4॥
जेहि पद लखि दशरथ सह भामिनि। रहत अनन्द मग्न दिन यामिनी॥1॥
दोहा:
जानुपाणि डुगुरत अजिर, ठुमुकत ठुमुकि परात।
मुखमाखन ओदन लसत, राउ रानि सरसात॥2॥
विहँसत किलकत मधुर मनोहर। समय सरिस गावति सखि सोहर॥3॥
दोहा:
जासु बाल लीला निरखि, रानी राउ अनन्द।
वन्दौं सोइ प्रभुपद सुखद, हरण मोह दुख द्वन्द॥4॥
चूमति भरि मुख उमँगि के, चूमि 2 हुलसात।
ललकि 2 लै गोद भरि, ठुमुकि 2 प्रभु जात॥5॥
जो पद मृदु चूमत सदा, नाद यशोदा धन्य।
वन्दौं सोइ पद पद्म रज, मो सम को जग अन्य॥6॥
जो पद यमुना ललकिके परसि पखरि सुवारि।
सादर वन्दौँ सोइ पद हिये प्रेम निरधारि॥7॥
जो पद हेम मृगा सँग धावा। जेहि जपि धु्रवहुँ अचल पद पावा॥8॥
जो पद पद्म पार्थ रथ सोहा। जेहि लखि शंकर कर मन मोहा॥9॥
जो पद शृँगवेर किय पावन। भृगु ऋषीश के मोह नशावन॥10॥
दोहा:
जो पद केवल प्रेमयुत, वारि कठौत पखार।
लै चरणोदक जन सहित, उतरेउ भवनिधि पार॥11॥
वन्दौँ सोइ मृदु पद जलजाता। भवनिधिपोत चारि फल दाता॥12॥
दोहा:
भक्त प्रतिज्ञा पालि कै, कर धरि चक्र महान।
धावा जो पद भीष्म पर, नमो सो पद सुखखान॥13॥
जेहिपद सुमिरत रैन दिन, प्रेम सहित हनुमान।
प्रणवौं सोइ पग पगुतरी, सिया लषण के प्राण॥14॥
जिन चरणन को पाइ के, शवरी गइ लपटाइ।
तिन चरणन को पादुका, नमों सदा सिरनाइ॥15॥
जा पदरज को परसि कै, तरी अहिल्या नारि।
अघ अवगुण जो दलिमलै, कीरति गुण विस्तारि॥
जेहि पद पदुम सु पाण्डरी, भरत रहैं मन लाइ।
वन्दौँ सोइ पद मंजुमृदु, भक्तन को सुखदाइ॥