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शुभाशीष चक्रवर्ती की रचनाएँ

मृत्यु-1

मृत्यु संग न ले जाने का हठ कर रही है
मैं उसकी गोद में कूद जाता हँ
जीवन हँसता है
और
घेर लेता है
अपने शुरुआत के दिनों से

मृत्यु-2

तुम्हारी आवाज़ मेरी निःशब्द परछाई का
बिम्ब है
अभी-अभी शरीर से निकली आत्मा
टिकी है खिड़की के पास
तुम्हारे लौटते ही
वह सरकती है बाहर
देहों के बीच
तुम चीखती हो
वह रुक जाती है
तुम मुझे चूमती हो
वह पास आती है
तुम्हारे गिरते आँसू
मेरे शरीर को छूते हैं
वह भीग जाती है
स्पर्श-आभा में

वह मेरे भीतर
फिर से रिस जाती है
तुम आवाज़ बिखेरती हो
वह सोखती जाती है उसे
चुपचाप पड़े एकान्त में

मृत्यु-3 

मेरे स्वप्न टुकड़ों में
नींद का सफ़र पूरा कर रहे हैं
मैं तुम्हारे पास अनजाने में चला आया हूँ
मेरे मृत होते जीवन पर
तुम हाथ रखती हो
आत्मा शरीर से
अलग हो जाती है
स्वप्न बदल जाता है

तुम मेरे घर की सीढ़ियों पर बैठी हो
तुम्हारी सफ़ेद साड़ी आलने में टँग रही है
उससे सफ़ेद रंग छूटकर फ़र्श पर फैल रहा है
आंगन में सफ़ेद धुँआ भर गया है
धुएँ से तुम्हारा शरीर टुकड़ों में बँट गया है
तुम दिखती हो
फिर
लुप्त हो जाती हो
मैं आँखें मूंद लौट आता हूँ

गाँव के किनारे पर खड़े बरगद के
एकमात्र झूले पर
मैं अपनी बारी का इन्तज़ार कर रहा हूँ
शाम का धुंधलका उसकी डोर को
अंधेरे में ले जा रहा है
मैं मृत्यु और जीवन के बीच
डोल रहा हूँ
सारा गाँव सो रहा है

मृत्यु-4

तुम्हारे नहीं होने का अस्वाद
अचानक फैल रहा है
मैं अनिश्चित तुम्हारे पीछे
दौड़ रहा हूँ
तुम उस पार के नक्षत्रों के
नीचे खेल रही हो
मैं मृत्यु पर लिखी
किताबें पढ़ रहा हूँ

मृत्यु-5 

शाम का भय फैल रहा है
अकेले कमरे से
मैं भाग रहा हूँ
सूर्य का प्रकाश
उस छोर तक पहुँचकर
लौट रहा है
संयम शरीर छोड़ रहा है
तुम फिर याद आ रही हो

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