अपने ख़्वाबों को तेरी आँख में जलता देखूँ
अपने ख़्वाबों को तेरी आँख में जलता देखूँ
मेरी हसरत है तुझे नींद में चलता देखूँ
मेरा मिटना तो बस इक रात का क़िस्सा है मगर
मैं तुझे रोज़ शमा बन के पिघलता देखूँ
ये मेरा वहम हैं या तेरी तज्जली का कमाल
इक सूरज तेरे चेहरे से निकलता देखूँ
ख़्वाब किस जुर्म की ख़ातिर मुझे आते हैं नज़र
अपने पैरों से फूलों को मसलता देखूँ
हो न ऐसा के मेरी आह असर कर जाए
घर तेरा पहली ही बरसात में जलता देखूँ
ख़ुदा के वास्ते अपना हिसाब रहने दो
ख़ुदा के वास्ते अपना हिसाब रहने दो
सुबह तलक़ मेरे आगे शराब रहने दो
ये क्या के ख़ुद हुए जा रहे हो पागल से
ज़रा सी देर तो रुख़ पे नक़ाब रहने दो
ये आईना है इसे तोड़ने से क्या हासिल
ख़ुद अपने वास्ते अपना जवाब रहने दो
हमें भी अपने ज़रा और पास आने दो
हमें भी और ज़रा सा ख़राब रहने दो
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
तू अगर मुझसे ख़फ़ा है तो छुपाता क्यूँ है
ग़ैर लगता है न अपनों की तरह मिलता है
तू ज़माने की तरह मुझको सताता क्यूँ है
वक़्त के साथ ख़यालात बदल जाते हैं
ये हक़ीक़त है मगर मुझको सुनाता क्यूँ है
एक मुद्दत से जहां काफ़िले गुज़रे ही नहीं
ऐसी राहों पे चराग़ों को जलाता क्यूँ है
उसकी बातें बहार की बातें
उसकी बातें बहार की बातें
वादी-ए-लालाज़ार की बातें
गुल-ओ-शबनम का ज़िक्र कर ना अभी
मुझको करनी है यार की बातें
मखमली फ़र्श पे हो जिनकें कदम
क्या वो समझेंगे ख़ार की बातें
शेख़ जी मैकदा है काबा नहीं
याँ तो होंगी ख़ुमार की बातें
इश्क़ का कारवाँ चला भी नहीं
और अभी से ग़ुबार की बातें
ये क़फ़स और तेरा ख़याल-ए-हसीं
उस पे हरसू बहार की बातें
याद है तुझसे गुफ़्तगू करना
कभी इश्क़, कभी रार की बातें
ऐ नसीम-ए-सहर मुझे भी सुना,
गेसू-ए-मुश्क़बार की बातें
जब सुकूँ है कफ़स में ऐ ‘राही’
क्यूँ करें हम फ़रार की बातें
तुम नहीं ग़म नहीं शराब नहीं
तुम नहीं ग़म नहीं शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं
गाहे-गाहे इसे पढ़ा कीजे
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं
(गाहे-गाहे = कभी कभी)
जिसको तूने न आज़माया हो
वो कहीं पर भी कामयाब नहीं
जाने किस किस की मौत आयी है
आज रुख़ पे कोई नक़ाब नहीं
वो करम उँगलियों पे गिनते हैं
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं
जो क़यामत न ढा सके ‘राही’
वो किसी काम का शबाब नहीं
कोई पास आया सवेरे सवेरे
कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे
मेरी दास्ताँ को ज़रा सा बदल कर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे
जो कहता था कल शब संभलना संभलना
वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे
जली थी शमा रातभर जिसकी ख़ातिर
उसी को जलाया सवेरे सवेरे
कटी रात सारी मेरी मैकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे
ये हक़ीक़त है के होता है असर बातों में
ये हक़ीक़त है के होता है असर बातों में
तुम भी खुल जाओगे दो-चार मुलक़ातों में
तुम से सदियों की वफ़ाओ का कोई नाता था
तुम से मिलने की लकीरें थीं मेरे हाथों में
तेरे वादों ने हमें घर से निकलने न दिया
लोग मौसम का मज़ा ले गए बरसातों में
अब न सूरज न सितारे न शमा और न चाँद
अपने ज़ख्म़ों का उजाला है घनी रातों में
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
तावीज़ें भी बँधवाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
तनहाई के झूले झूलोगे हर बात पुरानी भूलोगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
बेचैनी जब बढ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
पसीने पसीने हुए जा रहे हो
पसीने पसीने हुए जा रहे हो
ये बोलो कहाँ से चले आ रहे हो
हमें सब्र करने को कह तो रहे हो
मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो
ये किसकी बुरी तुम को नज़र लग गई है
बहारों के मौसम में मुर्झा रहे हो
ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो
दोस्त बन बन के मिले मुझको मिटाने वाले
दोस्त बन बन के मिले मुझको मिटाने वाले
मैंने देखे हैं कई रंग बदलने वाले
तुमने चुप रहकर सितम और भी ढाया मुझ पर
तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पे हँसनेवाले
मैं तो इख़लाक़ के हाथों ही बिका करता हूँ
और होंगे तेरे बाज़ार में बिकनेवाले
आख़री बार सलाम-ए-दिल-ए-मुज़्तर ले लो
फिर ना लौटेंगे शब-ए-हिज्र पे रोनेवाले