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कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ

बीज

गिरा बीज कोई अनजान
उम्मीदों का उमड़ा तूफ़ान
धरती सीने हुई रोपाई
फसल स्वप्न की लहलहाई
थी सख्त धरा जैसे मरू
काश बनता यह विशाल तरु
रवि ने अपनी तपिश बढ़ाई
धूप भी तंज से खिलखिलाई
है कहाँ नसीब का जल तुझपे मूरख
करेगी कैसे इसकी सिंचाई?
भावों की बहती बूंदों से
सींचा नयनों के मेघों से
सह सूरज की प्रचंड तपन
हर मुश्किल को मैंने किया दफ़न
कर ली उम्मीदों की यूँ सिंचाई
बिखरी सुगंध चिड़िया चहचहाई
मेहनत से जीवन गया संवर
बीज कल का आज बना शजर

बदलाव 

बदली धरती मौसम बदला
नभ वायु जल भी गन्दला
कट जंगल बने ऊँची इमारत
करें कृषक नौकरी की हिमायत
धूप ही धूप छाँव कहीं ना
मुश्किल हो गया है जीना
बुढा गयी सृष्टि की काया
कैसा यह बदलाव है आया?
करता न कुछ भी अभिभूत
हुई छटा पृथ्वी से विलुप्त
संकर बीज संकर ही नस्लें
कृत्रिम वातावरण कृत्रिम ही फसलें
कर छेड़छाड़ प्रकृति से क्या पाया?
अमृत देकर जहर कमाया
कैसा यह बदलाव है आया?

मकसद

छूट गिरफ्त बादलों की सूरज
बैचैन रौशनी फैलाने को
बदल भी तो करते हैं श्रम
रिमझिम बूँदें बरसाने को
धरा आतुर सीने पर अपने
फसल हरी उगाने को
नभ टंकरित करता है ध्वनि
ऊर्जा देती हमको अग्नि
जल से सबको प्राप्त जीवन
करे प्राणों का संचार पवन
इंसान ,जानवर, पेड़ -पौधे सारे
गृह –उपग्रह, चाँद और तारे
करें कर्म निरंतर ,निर्धारित हद
जुटे रहते करने को पूरा
अपने होने का मकसद

साँझ की डोली

सांझ बहन चंदा से बोली
आ भैया खेलें आँख मिचोली
भैया ने अपनी बाँहें खोलीं
गले लगा बहन को प्रेम से बोला
छोड़ बहन तू सखियों की टोली
हो गयी है सयानी अब तू
बैठ डोली जा संग हमजोली
साँझ ठुनक कर फिर ये बोली
नहीं करनी मुझको शादी वादी
मैं चढूं कभीं न भैया डोली
चंदा के भी भर आये नयना
बोला रीत यह पुरानी बहना
घोड़ी चढ़कर आयेंगे सजना
छोड़ के अब गुडिया और बचपना
सजा अपने सजना का अंगना
पहन कर चूनर सितारों वाली
बनेगी दुल्हन बहना हमारी
बाजे पवन शहनाई नभ मंडप में
हो खुशियाँ ही खुशियाँ तेरे जीवन में

माहिया

शाम सहर, कहर लिखे
दर्द ग़ज़ल जिसका
वो फिर क्या बहर लिखे।

सबने ही ठुकराया
गम बस अपना था
साथ उसे ही पाया।

लव दर्द तराने हैं
आहट से उसकी
महफ़िल वीराने हैं।

यूँ अरमां दिल मचले
गलियों से उसकी
दीवाने हम निकले।

दिल कैसे संभाले
आँखों में बसते
हैं दर्द भरे नाले।

अब चैन कहाँ दिन को
कितना तड़पाती
बातें तेरी दिल को।

आखिर कुछ तो कहता
रह न सही दिल में
इन आँखों में रहता।

पाकर सब खोती हूँ
तन्हा रातों में
अक्सर मैं रोती हूँ।

अश्कों के धारे हैं
काजल के जैसे
आँखों ने पाले हैं।

पल भर का डेरा है
कल उड़ जाना है
जग रैन बसेरा है।

दिल कहता बेचारा
कुछ नादाँ हूँ मैं
थोडा सा आवारा।

नजरों के पैमाने
आये लौट यहीं
जो कल थे मयखाने।

मेरा दिल बहला दे
आज डुबा खुद में
मुझको पार लगा दे।

है कैसी ये हसरत
दिल को एक घड़ी
मिलती न कहीं राहत।

यूँ देख निशाँ मन में
कोई ढूंढ न ले
गुम तू हो जा मुझमें।

न मुझे कुछ अब भाये
बस पन्थ निहारूं
काश कि तू आ जाए।

गीत मधुर गायेंगे
इश्क मिटा दे तू
हम प्रीत निभायेंगे।

जलती राख बुझा दे
तू धड़कन बनके
मेरा दिल धड़का दे।

क्यूँ इश्क न तू पिघले
इंसा पत्थर के
दिल मोती सा बिखरे।

रात धुंआ खलिश जवां
ले आया मुझको
ये इश्क कहाँ ?।

वो दर्द भुलाता है
लोग समझते हैं
मस्ती में गाता है।

भूल गए मयखाने
पी आये जबसे
नजरों के पैमाने।

किस्मत मीत बनी कब ?
पल भर की खुशियाँ
मंजर बदल गए सब।

मांग रही कुछ रब से
उस भोलेपन ने
दिल जीत लिया तबसे।

जाग उठी ख्वाईशें
ए दिल पहुंचा दे
उन तक फरमाइशें।

नींद गयी आँखों से
दिन वो अच्छे थे
जो गुजरे फाकों से।

बुलबुल पे नजरें रख
सैय्याद चले हैं
गिरगिट सा रंग बदल।

जीना आसान कहाँ
है संगदिल जहाँ
बचता ईमान कहाँ ?।

बिंदी चाँद बना दो
नेह सितारों से
मेरी मांग सजा दो।

रिश्ता कायम होता
नदिया बन बहती
गर वो सागर होता।

खोटा हैं न खरा है
पाकीजा है दिल
मासूमियत भरा है।

बजती मन की वीणा
वह उठती झर-झर
क्यूँ आँखों से पीड़ा।

नीर नयन छलकाई
भूल चुकी जिसको
याद वही माँ आई।

डूबे जब ख्यालों में
होश किसे रहता
बेनूर सवालों में।

लगता शाप, दुआ भी
वो मेरा दिलबर
अच्छा और बुरा भी।

यूँ साहिल छूट गया
थी नैया भंवर
मांझी भी रूठ गया।

मिलता खैरात नहीं
है इश्क समाधी
लम्हों की बात नहीं।

तू जान निसार न कर
जी लूंगी सदियाँ
थोड़ा प्यार मुझे कर।

उल्फत जंजीर नहीं
ये दिल है मेरा
तेरी जागीर नहीं।

जादू सा असर हुआ
वो रूप कमल सा
नजरों में उतर गया।

कितने पाक नज़ारे
दें इश्क गवाही
सूरज, चाँद, सितारे।

डर भंवर से क्या चल
मेरा हाथ पकड़ ले
सागर के पार निकल।

कुछ पीछे छूट गया
सच हो ही जाता
पर सपना टूट गया।

मुझको आकाश बना
या तेरी मर्जी
ज़िंदा अब लाश बना।

इश्क सिला देते हैं
करते है धोखा
नाम वफा देते हैं।

जो हसरत बाकी है
करने को पूरी
इक पल ही काफी है।

बस एक सदा देना
देखूंगी रस्ता
मुझको न दगा देना।

फिर नयन गुबार बहे
दिल तन्हा मेरा
कब तक प्रहार सहे

शूल चुभे भूलों के
देखे फिर आंसू
उन हँसते फूलों के

ख्वाईशें बढ़ने दो
बर्फ हुए अरमां
तुम धूप निकलने दो

देख उसे फिसल गया
गर्द पडा दिल का
आईना मचल गया

कलियन के भोंरे ने
दिल लूटा मेरा
उस पवन झकोरे ने

बस सबने मन देखा
वो माँ थी जिसने
ये खालीपन देखा

गीतों में प्रीत कहाँ है
गुम रस वर्ण वहीं
मन का मीत जहां है

यूँ दिल सबका जीता
फिर भी मन बर्तन
है निर्धन सा रीता

नील गगन के तारे
गीत करूँ अर्पण
लिखे संग तुम्हारे

जब मन दर्पण देखा
आतुर बहने को
काला सा घन देखा

ये कैसा पागलपन
जीवन दुर्गम पथ
ख्वाइशों का नर्तन

खोना क्या पाना है
जीवन बंजारा
ठौर बदल जाना है

बातों में क्या जाता
कम हैं वो जिनको
इश्क निभाना आता

उफ़ दिल की लाचारी
फितरत चोरी की
करता पहरेदारी

पथ से नज़र हटी कब
मुश्किल सफ़र सही
रुकी मगर थकी कब

देखे कैसे मंज़र
जख्म दिया गहरा
थी किस्मत या खंजर

इंसान कई रूठे
था पर्दा सच्चा
किरदार मगर झूठे

चर्चे अखबारों में
डूबे हैं जबसे
इन मस्त बहारों में

जीते जी दफनाया
क़त्ल सभी हसरत
जब उसने ठुकराया

क्षणिकाएँ

1
पति ने पत्नी के राज में
बस इतनी सी खता की
माँ – बाप के ही घर में
माँ – बाप को जगह दी।

2
रुपया भी बड़ा
रौब जमाता है
अमीरों की जेब में
खनखनाता है
और गरीबों को देख
भिनभिनाता है।

3
आज नहीं तो कल
वो वादों से टूटेंगे
हम भी तो नेता हैं
अच्छी तरह से लूटेंगे।

4
वहशियों के सींखचे में
लड़की बनी कबाब
खींसे निपोर कहे कानून
दुष्कर्मी
नाबालिग है जनाब।

5
सब्र का इनदिनों
निकल रहा है
कडबा फल
जो करना है
आज ही कर लो
न हुआ है
न होगा कुछ कल।

6
पुरुष कहे
सुन अबला
तू प्रकृति
मैं ईश्वर
मैं अमर तू नश्वर
मैं निडर
तू डर –डर के मर।

7
कलियुग में
आती नहीं
उन तक कोई आंच
दो और दो को जोड़कर
जो जन करते पांच।

8
सुन मृत किसान को
मुआवजे की घोषणा
पत्नी किसान से गिडगिडायी
सुनो जी, बच्चों को
अब भूख से मुक्ति दिला दो
जीते जी न खिला सके
मरके ही रोटी खिला दो।

9
सभा में मंथन करें
मुर्गा छाप सब बम
आदमी ही आतिश हुआ
अब क्या करेंगे हम?

10
चींटी से हो शुरू
हाथी बन जाती है
छोटी सी एक बात
बातों – बातों में
बे बात बढ़ जाती है।

11
जिनकी मुठ्ठी में
फंसा दिख रहा गोश्त
लोग बनाते उन्हीं को
आजकल अपना दोस्त।

12
सिंहासन भी काँप उठा
देख मामला अद्वीतीय
अन्याय रहे हैं कर
न्यायधीश विक्रमाद्वितीय।

13
न तिल है न ताड़ है
मुद्दा टिकट का है
चमचे बिछे पैरों में
सुप्रीमो चने के झाड है।

14
ऊँगली चाटते नेताजी बोले
खाने में आया स्वाद निराला
जरा बता तो बहुरानी
तूने क्या मसाला डाला?
नैन मटकाते बहु बोली
घोटाला ही घोटाला।

15
हिंदी के सिपाही ही
करवाते हिंदी तमाम
गुड मोर्निंग -गुड नाईट कहें
भूलके सादर प्रणाम।

16
नेताओं को लग गए
बैठे बैठे रोट
जात-धर्म के नाम पर
हर दफा ही झटकें वोट।

17
जो रिश्वत के कर रहे
आये दिन स्टिंग ऑपरेशन
ले रिश्वत उन्हें बंद करें
भाड़ में जाए नेशन।

18
जिसकी मूंछ में ताव है
उसी की बस आब है
बाकी मुंह बिचका फरमाते
भैया, जमाना खराब है।

19
मशीन के संग
वक्त बिताते
जमीर इतना सो गया
अच्छा –भला था
कल का आदमी
आज खुद मशीन हो गया।

20
अंगरक्षकों की फ़ौज
और चमचमाती कार
चमचे जूते चाटते
कहें उन्हें सरकार।

21
नौकरी से लौटा पति
पत्नी पर झुंझलाया
बोला मैं गधे सा कमाता हूँ
तुम खूब मजे की उडाती हो
बीवी हँसके बोली
तभी तो तुम नौकरीपेशा
और मैं गृह मंत्री कहाती हूँ।

22
आज उसी की पूछ है
है जिसकी पौ- बारह
कड़के भटके फिर रहे
बिना पूँछ आवारा।

23
नयी पौध के देख रंग
आया याद अतीत
सोच बुढापे की लाचारी
जवानी हुई भयभीत।

24
कलदारों पर नाच रहे
बनके बाबू नट
टूटी हड्डी पसलियाँ
फूटा जब मधु घट।

25
तन जोगी भेष धरें
उमड़े मन में काम
ऐसे बगुला भक्त ही
बनते आसाराम।

26
जिन पूतों को खिला रहा
बाप मेवा और लीची
छल जाएगा बाप को
वो इंद्र समझ दधीची।

27
मन – मस्तिक
निरंतर द्वंद
हो न हो, जरूर
है इनमें भी कुछ
घनिष्ठ सम्बन्ध।

२८
भाप सी स्वच्छन्द उडती
बनती है जब बादल
स्वभानुसार बरसाती है
नेह संपदा टूटकर
समा जाती है सागर में
भुलाकर अपना अस्तित्व
क्रोध के ज्वार में सिन्धु
फैंकता है कभी बाहर
और शांत होने पर करता है
पुन:मिलन की प्रार्थना
छला जाता है सिन्धु द्वारा
नित्य ही उसका स्त्रीत्व

२9
हकीकत की धरा पर
कब तक यह टिक पायेंगे?
आकांक्षाओं की बेल नाजुक
लोग कुचलेंगे, रौदेंगे, दबायेंगे
ओस भीगे, शोख, चटकीले
दिव्य सुमन कल्पनाओं के
ये आकाश कुसुम से सपने
क्या सच कभी हो पायेंगे?
30
निकल नहीं रहे आंसू
घुट रही हैं चीखें कंठ में
चीख चिल्ला रही है
पर फडफडा रही है
सैयाद की कैद बुलबुल
मगर कुछ कर
नहीं पा रही है
सोचती एक जुल्म है
मेरी विवश ये जिन्दगी
कौन हूँ मैं?
क्या है अस्तित्व मेरा
संगिनी या बंदिनी?

31
छल से या बल से
कीचड़ से या कमल से
ख़ुशी से या गम से
झूठ से या दंभ से
सिंह से या सियार से
दुश्मन से या यार से
सूरज से या चाँद से
वृक्ष से या छाँव से
शहर से या गाँव से
हाथ से या पाँव से
गीता से कुरान से
हर शय हर इंसान से
इस मतलबी जहान से
अच्छा या बुरा मिला
ले लिया सबक मैंने
जो भी जिससे मिला

दोहे

1
ढोंग अनोखे रच रहे, जग के ठेकेदार
घूमें जोगी भेष में, अंटी में कलदार
2
दिल में कारगुजारियां, अधरों पर है मौन
ऐसे बगुला भगत को, पहचानेगा कौन?
3
सदकर्मों का तोड़ घट, जो जन पाप कमाय
लाभ उसको मिले नहीं, गाँठ का भी लुटाय
4
पति-पत्नी जो चलत रही, चलन दो नौक – झोंक
जो जन बोले बीच में, देत आग में छोंक
5
चिरनिद्रा में बैरभाव, बंधुत्व जाय जाग
उसी रोज इस देश के, खुल जायेंगे भाग
6
फैली अशांति हर जगह, शान्ति का अभाव
नायक सुभाष से नहीं, छोडें जो प्रभाव
7
नितदिन बढ़ता जा रहा, जातिवाद का कोढ़
कितने हिस्सों में बंटें, मची हरतरफ होड़
8
नफरत डारो आंच में, दिल लो आप मिलाय
मन प्रेम का भाव रखो, अलगाव दो मिटाय
9
लालफीता खत्म करो, ईमान हो बहाल
काम पूरे शीघ्र हों, देश बने खुशहाल
10
नित दिन बढती जा रही, सबंधों में खटास
त्यौहार के लड्डू भी, घोल सकें न मिठास
11
उर तेरे भाव अकूत, उमड़े मन सैलाब
हाथ कलम जो थाम लें, आ जाय इन्कलाब
-0-
सपना के पुराने दोहे
1
उर में गहरा जख्म हो, दवा न दे आराम
प्रेम पगे दो बोल ही, करें दवा का काम
2
खून आज का हो रहा, लोहे से भी गर्म
नहीं कद्र माँ बाप की, खोई नैना शर्म
3
मन्दिर मस्जिद चर्च में, ढूंढा चारों धाम
जो मन खोजा आपना, मिले वहीँ पर राम
4
चंदा तकता चांदनी, धरा तके आकाश
सबके दिल में खिल रहे, भीगे प्रेम पलाश
5
खोल जब भी मुख मानुष, शब्द प्रेम के बोल
ढाई आखर प्रेम के, शब्द बड़े अनमोल
6
चूसत खून गरीब का, नेता भरते कोष
गंगाजल से कब भला, धुलते उनके दोष
7
कर न पाया जीवन जो, सही गलत में भेद
मरता मौत चूहे सी, करे न कोई खेद
8
क्या तू लाया संग में, संग क्या ले जाय
धन दौलत कपडे सभी, धरा यहीं रह जाय
9
धरते धरते आस को, बीती जीवन शाम
क्या पता लग जाए कब, इन पर पूर्ण विराम
10
बातों से लौटें नहीं, काले धन के कोष
जनता भूखी मर रही, फ़ैल रहा आक्रोश
11
पुष्प आजकल वृक्ष पर, वरपाते हैं जुल्म
दोस्तों में छिपे दुश्मन, हमें नहीं बस इल्म
12
मान मर्यादा ताक पर, नेकी दई भुलाय
ओढ़े दो गज का कफ़न, और साथ का जाय
13
भाग्य का मिल जाएगा, तुमको देर सवेर
हडबडी फिर काहे की, चढ़ते क्यों मुंडेर
14
दुनिया भर में चल रहा, यह गोरख व्यापार
असली कोने में पड़ा, नकली का बाजार
15
नेता फिर दिखला रहे, जनता को अंगूर
समझे भैया चाल को, करें नहीं मंजूर
16
गोबिंद और ज्ञान की, कद्र न हो जिस ठौर
भूत पिशाच बसें वहां, बसे न कोई और
17
लक्ष्य रखे जो आदमी, आप कर्म से ऊंच
गिर पड़े वो धडाम से, शर्म से जाय डूब
18
मुंह चुरावे कर्म से, और कहे लाचार
घुन लगे उस शरीर में, हो सके न उपचार
जो बली के चरणों में, रोज झुकावे शीश
आग लगाता वो फिरे, मिले उसे आशीष

20
करते रहते रात दिन, जो व्यर्थ के काम
स्वंय को बर्बाद करें, देश करें बदनाम
21
धन दौलत मांगे नहीं, प्रेम वचन का दास
जो बतियावे प्रेम से, वो ही मन का ख़ास
22
व्यस्त भोग विलास में, करते ध्यान न योग
निरोगी कोई न मिले, बसें उस ठौर रोग
23
जोगी जा संसार में, इत उत लड़ते नैन
तप ध्यान सब भंग करें, जी कर दें बैचैन
24
सुमिरन हरि का मैं करूँ, भूलूँ दिन क्या रैन
हरि का दर्शन जो मिले, आये तब ही चैन
25
रे मन गठरी बाँध तू, कर न किसी से मोह
मन का मायाजाल ये, बेहतर है बिछोह
26
कर न मेहनत जी तोड़, जब हो पुत्र कनाश
नाम गिरावे गोत्र का, धन का करे विनाश
27
लाठी लेकर फिर रहे, गांधी जी के भक्त
सज्जन को हड़का देत, दुर्जन को दें तख्त
28
हुस्न की गर चिलमन से, झलक अगर दिख जाय
सठियाती इस उम्र में, चैन हमें मिल जाय
29
दास प्रभु से यह कहे, सुन लो अर्ज हमार
राम नाम जप दिन कटें, बेचो अहम् अटार
30
मन चाह मिल जाएगा, मन में ले जो ठान
जीत दौड़ी आएगी, लक्ष्य बने आसान
31
महल चाकरी के बुरे, छिजें न तख्तो – ताज
गज भर की कुटिया भली, सुख अपने ही काज
32
अंटी में एक इकन्नी, तिस पर खर्चे दून
ठगी से परहेज नहीं, सिर पर सवार खून
33
इधर का जो करे उधर, खेले अजीब खेल
फल कर्म का खुद भुगते, जिये दर्द को झेल
34

सुख में सुमिरन कर लिए, जिसने हरि के पाँव
उसी सच्चे भक्त को, मिलता हरि का गाँव
35
मुख दूजों का जो तके, आदमी कर्महीन
लक्ष्मी हो जाती कुपित, मिलती न जर जमीन

बाल कविताएँ

जल 

जल जीवन है,जल ही धन है
जल बिन धरती उजड़ा वन है
जहाँ देखो वहां जल की माया
बिन जल असंभव अन्न ,पेड़, छाया
मचे त्राहि-त्राहि जल बिन क्षण -क्षण
हो पशु -पक्षी या फिर कोई जन
जल वाष्प बदरा बन छाये
बिन जल सावन सोचो क्या बरसाए?
गरमी भीष्ण जीवन कहीं ना
धरा है गहना ,और जल नगीना
मैला कचरा बहाकर जल में
सोचो जरा क्या पाओगे?
जब जल ही ना होगा तब बोलो
तुम भी कहाँ जी पाओगे?
ना करो व्यर्थ जल को बच्चो
करो संरक्षण धरा पर इसका
जल हो रहा अब यहाँ पर कम है
जल जीवन है जल ही धन है
जल बिन धरती उजड़ा वन है

प्रेम गणित

प्रेम से करो हल बच्चो
नफरत के तुम सभी सवाल
भूलकर गलती दूजों की
करो ख़त्म तुम सभी बवाल
सुनो प्रेम को जोड़ो अबसे
नफरत को दो तुम घटा
कर गुना स्नेह का दिल से
ईर्ष्या को दो शून्य दस बटा
शेष में रखो फिर प्रेम को ही तुम
बाकि दो सबकुछ फिर हटा
देखना इस प्रेम गणित का जादू
कितना देगा फिर तुम्हें मजा

बस इतना दिल चाहे मेरा

बस इतना दिल चाहे मेरा
आसमान के सारे नज़ारे, धरती पर ले आऊँ मैं
जहाँ भी गिरें आँखों से मोती, झोली में भर लाऊँ मैं
बस इतना दिल चाहे मेरा
दूर करूँ दुःख: सबके दिलों से, खुशियाँ अपनी दे आऊँ मैं
कूड़ा बीनते नन्हे हाथों को, पोथी बस्ता पकडाऊँ मैं
रहे ना खाली पेट कोई भी, सबकी भूख मिटाऊँ मैं
बस इतना दिल चाहे मेरा
बीज प्रेम का ह्रदय-धरा पर, सबकी खूब उगाऊँ मैं
सहमा सिमटा भोला सा जीवन, उसे निर्भय आज बनाऊँ मैं
उसे उसका हक़ दिलाऊँ मैं
बस इतना दिल चाहे मेरा

ध्यान रखना

मेरे बच्चे बात मेरी यह ध्यान में रखना
जमीन पर रखना पैर, नजर आसमान में रखना
टूटे डैनों से भी उड़ा करते हैं परिंदे
हों ना हों पंख हौसला कायम उड़ान में रखना
बोल ही अक्सर दोस्त बनाते बोल ही दुश्मन
दिल के साथ मिसरी अपनी जुबान में रखना
पूरे होते ख्वाब उन्ही के ख्वाब जो देखा करते हैं
लोग हँसे भले, ऊँचाई फिर भी अरमान में रखना
कहने से भी ज्यादा सुनना बेहतर होता है
मुंह पर लगाम वजन अपने कान में रखना
मान देकर ही मिलेगा सम्मान तुम्हें बच्चे मेरे
कोई कसर ना दूसरों के सम्मान में रखना

आओ कुछ अहसास लिखें

आओ कुछ अहसास लिखें
खुद पर एक विश्वास लिखें
मन कागज हौसला कलम बनाकर
एक नया इतिहास लिखें
नयनों में आशा प्रेम की भाषा
खो गए जो होशो हवास लिखें
ठेंगा दिखादें किस्मत को अपनी
रेखाओं के ऐसे आभास लिखें
ना राजा ना रंक कोई “सपना “
आम भी खुद को ख़ास लिखें

दे वच

ना डिगेगा पथ से इतर अपने दे वचन
करेगा स्वप्न सब साकार अपने दे वचन
अपने में भर नेकियाँ रख यही तू खूबियाँ
कर्म सभी तू पूर्ण कर अपने दे वचन
आचरण विचारकर, संस्कार संभालकर
मन को मंदिर सा कर, अपने दे वचन
सिंह सा दहाड़कर, दानवों को मारकर
जग पापियों से रिक्त कर अपने दे वचन
दिल पे अपने रख हाथ, कर भारती की जयकार
करेगा नाम इसका तू अमर अपने दे वचन

पेड़ की विनती

मत काटो निर्दयता से आखिर मुझमे भी है जान
मैं भी हूँ सजीव तुम्हारी ही तरह
मुझमे भी है बसते प्राण
जब काटते तुम मुझे स्वार्थवश अपने
दर्द होता हमे भी निकल पडते आँसू अपने
जैसे निर्भर तुम जल वायु प्रकाश पर
वैसे ही निर्मित इनसे मेरा भी तन-मन
मागतां नही कभी कुछ भी तुमसे
चाहे फैलाओ कार्वन,धुआं और प्रदूषण
जहर पीकर देता सदा तुमको हरियाली
मिलती मुझी से प्राण वायु तुम्हे कहते जिसे ऑक्सीजन
देता शीतल छाया करता भूमि सरक्षण
खूवसूरत नज़ारे है मुझसे,नदिया चाँद तारे है मुझसे
अपने तुच्छ स्वार्थ की खातिर तुम ओ मानव
व्याप्त होगी वैश्विक गर्मी तव कौन करेगा तुम्हारी रक्षा
बनो समझदार मिलाओ प्रकृति से हाथ,
छोडो दुश्मनी रहो हमेशा मेरे साथ
गर एक भी वृक्ष लगाये जन जन
होगी वैश्विक गर्मी दूर कायम रहे धरा पर जीवन

स्वयं हो

माना जीवन डगर अँधेरी
ना घबराना अंधेरों से मेरे बच्चे
टिमटिमाते जुगनू तुम स्वयं हो
माना मंजिल दूर बहुत है
ना घबराना तन्हाई से मेरे बच्चे
तुम ही राही कारवां तुम स्वयं हो
माना दुःख की छाएंगी घटायें
जीवन में क्षण –प्रतिक्षण
ना घबराना दुखों से मेरे बच्चे
सुख का ओजस्वी सूर्य तुम स्वयं हो
रखो याद बाद वसंत के पतझड़
आता अवश्य ही जीवन में
ना घबराना पतझड़ से मेरे बच्चे
खिलता-महकता उपवन तुम स्वयं हो
जीत –हार पहलू दो जीवन सिक्के के
ना घबराना हार से मेरे बच्चे
जीत के आगामी कीर्ति स्तंभ
भी तुम स्वयं हो
ना दोष मढना गलती का अपनी
सुनो कभी दूजों के सर
शर्मिन्दा भी होना ना मेरे बच्चे
गलतियों के जिम्मेदार भी तुम स्वयं हो
और उनसे सीखा अनमोल सबक
मेरे बच्चे तुम स्वयं हो

रानी की आकांक्षा

1)
काश मैं होती चिड़िया रानी, दाना चुगती पीती पानी
इस डाल से उस डाल पर, उडती फिरती कलरव करती
चीं –चीं चूं-चूं का खूब शोर मचाकर
नन्हे-नन्हे पंखों से अपने, करती आसमान की रखबाली
काश मैं होती चिड़िया रानी

2)
काश मैं होती तितली रानी,पंख भी होते सुन्दर -सुन्दर
हरे, लाल पीले, चितकबरे धानी, हवा हिंडोले चढ़ आ जाती
बगिया -बगिया, पुष्प -पुष्प मंडराती
सुंगंध फूलों की भर दामन में, महकाती मैं रुत सुहानी
काश मैं होती तितली रानी

3)
काश मैं होती परियों की रानी, सुनते मेरी सब कहानी
छड़ी जादू की हाथ में लेकर, इसको उल्लू उसे मुर्गा बनाती
कभी छूमंतर कभी प्रकट हो जाती
प्यार करती बच्चों को हमेशा, पूरी करती उनकी मनमानी
काश मैं होती परियों की रानी

4)
लेकिन हूँ मैं एक बच्ची रानी,कौन सुनेगा मेरी कहानी
बंद मुझे घर में सब रखते, खेल-कूद, पढने ना देते
कहते दुनिया बुरी बहुत है
कभी बाहर ना जाना बिटिया रानी, हो रही हो तुम सयानी
क्यूँ हूँ मैं एक बच्ची रानी?क्या कर ना सकूंगी मैं मनमानी?

मुझे पढ़ना है 

पढ़ना है आगे बढ़ना है, जिद कर रही माँ से मुनिया
बेलन थमा गुस्से से माँ बोली, चकला -चूल्हा, बेलन ही है
सुन ले मुनिया अब तेरी दुनिया
क्या करना है पढ़ लिखकर, तू कौन सा नाम कमाएगी?
घर के काम सीखकर ही तू, ससुराल में दिल जीत पाएगी
इनसे अलग एक और है दुनिया, माँ को समझाते बोली मुनिया
पढ़ाई के हैं फायदे अनेक, आ माँ तुझको समझाए मुनिया
ना बसूलेगा ऊना-दूना सूद महाजन, कम तोलेगा ना चालू बनिया
देंगे ना कम मजदूरी जमींदारजी, ना ज्यादा काम कराएँगे
हम तुम रहेंगे फिर ठाठ -बाट से माँ, सब सुख अपने हो जायेंगे
घबरायी सी माँ बोली ओ मुनिया, ना देख तू सपने ऊँचे-ऊँचे
यह सब अपने लिए नहीं हैं बच्चे, गन्दी बहुत है बाहर की दुनिया
बड़े -बड़े राक्षस घात लगाए बैठे, दबोच लेंगे पंजे में तुझको गुनिया
मर्द का नाम जरूरी कहते जग में, सम्मान पाएगी बनके दुल्हनिया
कौन ज़माने में रहती है माँ तू?,झुंझलाकर अब बोली मुनिया
पहुँच चुकी औरत अन्तरिक्ष में, संभाल रही बागडोर देश की
चला रही है रेल और जहाज, नाज कर रही उसपर दुनिया
फिर क्या खुदको ना संभाल सकेगी मुनिया?
मत रोक मुझे तू पढ़ जाने दे, अशिक्षा के भंवर से बाहर आने दे
देख चमत्कार शिक्षा का माँ तू, एक दिन बोलेगी तू ही गर्व से
सुनो देश के पुरुषो सुन लो, यह है मेरी बेटी मुनिया

मेरा चंदा 

मेरे आँगन उतरा चंदा
सिमटा छोटे से बिछोने में
गोल गोल सी अँखियाँ
जिनमे सिमटी सारी दुनिया
संग उसके खेले बूढी काकी
ताई, चाची हो या मुनिया
कभी रोये कभी झट हंस जाए
इत् उत् उत् इत् गर्दन मटकाए
जीभ लपलपाए और किलकाये
मोह लिया है सबका ही मन
उस सुन्दर, चपल सलोने ने
मैंने भी तो अपना बचपन ढूंढा
उसके खेल खिलौने में
मेरे आँगन उतरा चंदा
सिमटा छोटे से बिछोने में
सुन ओ चंदा घर तू मेरा
रोशन ऐसे ही करता चल
जो तू रूठे इस घर से
आये कभी ना ऐसा पल
उठूँ तो पहले देखूं तुझको
सो जाऊँ तो सोचूँ सपने में
घर के साथ उधम करता फिरे तू
मेरे उर सूने सूने में

जगमग दीवाली

बड़ी अकड के मावस आई
जग भर में अंधियारी छाई
बोली तम का होगा यहाँ डेरा
कायम धरा पे साम्राज्य मेरा
शय की मेरे कोई मात नहीं है
चाँद की भी औकात नहीं है
लेकिन घमंड होता बुरा भाई
सबने मिल एक युक्ति सुझाई
भर मिटटी के दिए में तेल
जली बाती, खत्म तम का खेल
हुई उड़न छू निशा की काली
रौशनी झिलमिल छटा निराली
सुबक उठी फिर मावस काली
की दीपों ने जगमग दीवाली

चलो मनाएँ दीवाली 

रूठा मटकी भुला चलो
मनाएँ मिलजुल दीवाली
जलें दीप खुशियों के दिल में
बरसे न किसी आँख से पानी
कूड़ा कचरा चलो दूर हटायें
रंग रोगन कर घर को सजायें
नए नए माँ पकवान बनाती
देख जिन्हें जीभ ललचाती
देहरी आँगन रंगोली सुहानी
बनाए जतन से मुनिया रानी
पापा लाये लक्ष्मी जी गणेश
कृपा से जिनकी मिटे क्लेश
सुनते सब फिर राम की कहानी
असत्य पे सत्य की विजय वाली

जलो दीप से 

कर्म हमेशा करते रहना
मायूसी का न पहनो गहना
दूर हटेगी गम की काली
जीवन में छाये खुशहाली
जलो दीप से लाओ दीवाली
करो पथ दूजों का आलोकित
देखो होगा मन कितना पुलकित
प्रेम समर्पण की बाती निराली
जले अगर तो मने दीवाली

उपवन 

पुष्प झूमते हैं उपवन में
खिलती है डाली डाली
पत्ता पत्ता भीगे ओस से
रंग बिरंगी लगे हर क्यारी
भोरों की गुनगुन का गीत
तितली लेती मन को जीत
घास हरी मिटटी मटमैली
भीनी भीनी सुगंध है फैली
पक्षी करते चीं चीं का शोर
यहाँ नृत्य करते हैं मोर
आओ चलो हम पौध लगाएं
नए नए कई वृक्ष उगायें
पूरी धरती फिर होगी चमन
घर घर महकेगा उपवन

मेरी नानी

मैं नानी का प्यारा बेटा
नानी मुझे पढ़ाती है
चिड़िया, परी, मोर और राजा
नित नयी कहानी सुनाती है
सीख सिखाती, ज्ञान बढ़ाती
बच्चों से न कभी अलसाती
नानी की बातें अनमोल
करती प्यार हमें दिल खोल

सीख कर्म की

मुन्ना जब तू होगा सयाना
बैर कपट से दूर ही रहना
चाहे दुनिया तुझे कहे दीवाना
किसी की तू आस न करना
खुद पर बस विश्वास है रखना
सुन,मेहनत से कभी न घबराना
आत्मविश्वास सफलता का खज़ाना
सीख कर्म की जब समझ आएगी
दुनिया कदमों में झुक जायेगी

गन्दा सूरज

सूरज ने किरणे फैलायीं
पर मुझको तो नींद है आई
मम्मी कहती उठ जा बेटा
उठ तो मैं जाता लेकिन
बैठे बैठे लेता हूँ जम्हाई
काश ये सूरज कभी न निकले
मेरी तरह रजाई में छिप ले
मैं भी सोऊँ यह भी सोये
मीठे मीठे सपनो में खोये
करनी पड़े न कभी पढ़ाई
लेकिन कहाँ संभव यह भाई
तुझसे अच्छे तो चंदा मामा
कितना अच्छा करते ड्रामा
कभी बड़े, छोटे या आधे
कभी – कभी आधे से ज्यादे
नज़र आते कभी एकदम गोल
वो लगवाते स्कूल के कुंडे
तुम क्यूँ देते उनको खोल
गंदे सूरज मुझसे मत बोल
रोज-रोज वही स्कूल का झोल

पापाजी का मोबाइल

पापाजी का मोबाइल है आया
टच का जादू सबपर छाया
भैया खेलें केंडी क्रश सागा
बोले दीदी व्हाट्स एप्प की भाषा
मम्मी कहती सुनिए जी मुझको
सुना दो गाना डॉट कॉम पे गाना
पापा देखें क्रिकेट का स्कोर
पर मैं हो जाता हूँ बोर
छोटा हूँ ना घर में सबसे
खेलना चाहता मैं भी कबसे
मोबाइल कोई छूने न देता
कहते मुन्ना इसे न छूना
तू हर चीज तोड़ फोड़ देता

हाइकु

बसंत

1
मिलन आस
ले आया मधुमास
भोंरे चहके।

2
तितली भोली
कहे आ रे बसंत
भर दे झोली।

3
ऋतु है भली
अलि निहारे कलि
प्रेम चक्षु से।

4
पीत वसन
पहने गुलशन
सरसों जड़े।

5
खुमारी छाई
ले पुष्प अँगडाई
कली शर्माई।

6
हरी सौगात
झरे पीले से पात
दानी बसंत।

7
पीत वसन
ऋतुराज बसंत
आया पहन

8
सुध बिसरी
महका तन मन
प्रिय बसंत

9
पिया बसंती
देखत इठलाई
धरा लजाई

10
ऋतु बसंत
पुष्प सभी महके
पक्षी चहके

11
बिछोह अंत
संकेत मिलन का
देता बसंत

12
मधुर कंठ
ऋतुराज बुलाये
कोयल गाये

13
मन उदास
बसंत भर देता
जीने की आस

14
कौन ऋतु ये
थिरकन ये कैसी
कली चहकी

15
अलि गुंजार
कली करे शृंगार
प्रेम बयार

16
छलिया मास
रंग में रंग जाती
धरा बासंती

17
घर आँगन
स्वागत है बसंत
कहे हंसके

18
आया बसंत
खिलते उपवन
कोयल कूके

19
जी उठी फिर
धरा लगी झूमने
देख बसंत

20
पपीहा गाये
नाचे मनवा मोर
बासंती भोर

21
मनवा तृप्त
सौंधी मिटटी महके
मधुमास में

22
सरसों खेत
छटा पीली है छाई
शीत विदाई

23
फिरे धरा पे
लो उन्मुक्त पवन
छोड़ गगन

24
बसंत आती
धरा क्यों मदमाती
बन युवती

25
सखी बसंत
भरती तरुणाई
भू इठलाई

26
खिलें कोंपल
धरे बसंत प्रिया
रूप नवल

27
खुमारी छाई
धरा ले अँगडाई
देख बसंत

28
लज्जा का भाव
कर पीत शृंगार
धरा बौराई

29
धरा उतरी
बैठ पूर्व- पंख
ऋतु बसंत

ग़ज़लें

वंदेमातरम् 1

जुल्म रक्तपात का ,देश के विनाश का
दह्शाती लूटपाट का ,करें खेल अब खत्म
न कोई दुखी हो न हो सीने में कोई गम
करेंगे नाम रोशन इस सरजमीं का हम
उठा तिरंगा हाथ में कहें वंदेमातरम्
संसद इस राष्ट्र की मलंग हो गयी
मर्यादा नीती इनदिनों पतंग हो गयी
नेता भी लो देश से महान हो गए
गद्दारों से सांठगाँठ यही काम हो गए
कुर्सी के खटमलों को खींच फैंक डालें हम
विभीषणों की संख्या करें देश से खत्म
उठा तिरंगा हाथ में कहें वंदेमातरम्
टूटा है दिल देश का ,इसे आस चाहिए
रग रग में दौढ़ता नया विश्वास चाहिए
जिस सोने की चिड़िया के पर कतरे हैं लोगो
नए पंख देने को उसे तिलक ,सुभाष चाहिए
फिर से रंगेंगे माँ की चुनरी को हम धानी
लिखेंगे अपने खून से फिर शोर्य कहानी
रख पवित्र अग्नि पे कर ,खाते हैं ये कसम
उठा तिरंगा हाथ में कहें वंदेमातरम्
एक रात की नही पलों की बात थी नहीं
मिली यह आजादी हमें खैरात में नहीं
कर शीश कई कुर्बान ,इसको पाया है हमने
आजाद भगत की जान इतनी सस्ती थी नहीं
आये जो दुश्मन सामने उन्हें भून डालेंगे
जमा के धौल पीठ पर इन्हें कूट डालेंगे
जिन्दा ही धरती में उन्हें कर देंगे हम दफ़न
उठा तिरंगा हाथ में कहें वंदेमातरम्

वंदेमातरम् 2

माँ भारती हम सब की माता
यही है माता यही विधाता
हम सब इसकी संतान हैं
छाती ठोक गर्व से बोलें
मेरा भारत महान है
यही भाव रहे सीने अपने
हो एक पल भी न कम
लगा भाल पे इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
फिर कहलाये सोने की चिड़िया
हो कायम यहाँ चैन औ अमन
कर्ज उतारें मिटटी का इसकी
सौ सौ बार इसे करें नमन
लगा भाल पे इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
सुख समृद्धि का लगायें नारा
तन मन भी चाहे जाए वारा
करें वन्दना चरणों में माँ की
चलो खायें माँ की कसम
लगा भाल पर इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
आंचल समेटे माँ अपने बच्चे
हैं चार धरम चारों ही अच्छे
देश की खातिर मर मिट जाएँ
अब अपना यही जतन
लगा भाल पर इसकी मिटटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
दुश्मन जिन्दा नहीं जाने देंगे
आंच न इसपर आने देंगे
इसकी जय जयकार से गूंजें
ये धरती और वो गगन
लगा भाल पर इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
न घर है न ही परिवार हमारा
पंद्रह अगस्त त्यौहार है प्यारा
है संकल्प यही अब अपना
यही अपना एक धरम
लगा भाल पर इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
खड़े सीमा पर जितने भी जवान
कोई हिन्दू है न है मुसलमान
आँख उठा देखे कोई माँ को
लहू हो जाता इनका गरम
लगा भाल पर इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्

रंग दे धानी ,चुनर मेरी

रंग दे धानी, चुनर मेरी रंग दे धानी
चढ़ा शीश मातृभूमि पर अपनी
अमर करें जवानी
चुनर मेरी रंग दे धानी
नस-नस में भड़काएं शोले
काँप उठे यह नभ फिर
डगमग-डगमग धरती डोले
गिरें धडाधड सीमा पर दुश्मन
तडतड छूटें बम गोले
फिर से तुम्हे पुकार रही है
भगत बिस्मिल की वाणी
चुनर मेरी रंग दे धानी
मैले आँचल में सिमटी सी
भारत माता सिसक रही
लहू बहाकर अपना रंग दो
चुनरी इसकी बदरंग हुई
नेताजी, आजाद, तिलक की
दोहरायें शोर्य कहानी
भारत माता बनेगी फिर से
इस धरती की रानी
चुनर मेरी रंग दे धानी
मत भूलो तुम याद रखो
शहीदों की कुर्बानी
चुनर मेरी रंग दे धानी
चुनर मेरी रंग दे धानी

बहुत हो चुका अब हमें इन्साफ मिलना चाहिए

बहुत हो चुका अब हमें इन्साफ मिलना चाहिए
खदेड़कर धुंध स्याह,नभ साफ़ मिलना चाहिए

भ्रष्ट तंत्र भ्रष्टाचार, भ्रष्ट ही सबके विचार
हर एक जन अब इसके, खिलाफ मिलना चाहिए

भड़काए नफरत के शोले, सरजमीं पर तुमने बहुत
जर्रा –जर्रा इसका हमें, आफताब मिलना चाहिए

झूठे वादे झूठे इरादे और नहीं चल पायेंगे
बच्चे बच्चे का पूरा, हर ख्वाब मिलना चाहिए

उखाड़ फैंको तंत्र को, स्वतंत्र हो तुम अगर
लोकतंत्र का हमें अब, पूरा स्वाद मिलना चाहिए

अर्पण तुझपर दिल और जान

अर्पण तुझपर दिल और जान
मेरे देश महान, हे भारत देश महान
उतर हिमालय के सर से गंगा मैया
चूम तुझे करे कलकल का गान
सूरज,चाँद,सितारे से लकदक करता
नीले अम्बर का सुन्दर परिधान
गांधी, सुभाष, तिलक से सपूत तेरे
करें न्योछावर तुझ पर अपनी जान
माथे मुकुट सम हिमालय शोभित
बना जग में तेरा अभिमान
तुझसे ही तो अपनी शान
मेरे देश महान, हे भारत देश महान
सुमधुर ऋचाएं वेदों की,
गूंजी थी जहां पर पहली बार
सभ्यता और संस्कृति का तेरी,
माने लोहा सारा संसार
काशी में जहाँ बम भोले बिराजें
और अबधपुरी में जय श्री राम
वृंदावन की कुंज गलिन में
खेलें नटवर नागर घनश्याम
बलिहारी तुझपर मेरे प्राण
मेरे भारत देश महान, हे भारत देश महान
सुख शांति का सन्देश जहाँ नित देते
और करते हैं सबका सम्मान
यही प्रभु से प्रार्थना करते
हे प्रभु करो सदा सबका कल्याण
तेरे मान सम्मान की खातिर भारत माँ
दे देंगे हम हंसकर जान
नारी है यहाँ स्वरुप दुर्गा का
और नर में बिराजें श्री भगवान्
तू है मात सामान
मेरे भारत देश महान, हे भारत देश महान

वो वक्त कभी तो आएगा

कोहरे की गिरफ्त से निकलकर
कुछ पल में ही, आज़ाद हो जाएगा
बिखरा के सुनहरी किरणें सूरज
जग में उजियारा फैलायगा
वो वक़्त कभी तो आएगा
सूखी धरती तपती रेतों पर
बदरी को रहम तो आएगा
उमड़-घुमड़ फिर गरज गरजकर
बादल सावन बरसायेगा
वो वक़्त कभी तो आएगा
अमावस की रात से बचकर
चाँद भी चांदनी विख्ररायेगा
भूल अन्धेरा पूर्णिमा के दिन
पूर्ण चाँद बन जाएगा
वो वक़्त कभी तो आएगा
जब निजहित भूलके जन-जन
राष्ट्रहित को धर्म बनाएगा
दूर होगा भ्रष्टाचार और आतंक तब
देश अपना स्वर्ग बन जाएगा
वो वक़्त कभी तो आएगा

समय बड़ा बलवान 

चलता ही रहता यह निरंतर
बिना किसी व्यवधान
जानकर भी इससे हम
क्यों रहते हैं अनजान
समय बड़ा बलवान रे भैया
ऐसा जतन करो
दिक् दिगंत तक कीर्ति –गंध से सुरभित पवन करो
महक उठे जननी का आँचल ऐसे रंग भरो
झिलमिल-झिलमिल उड़े गगन में माँ का आँचल धानी
लिखो समय के वक्षस्थल पर ऐसी अमिट कहानी
धरती की छाती पर रंग केसरिया शोर्य का लहराए
ऐसी हो हरित क्रांति जो श्रम के गीत सुनाये
चलता रहे चक्र उन्नति का ऐसे जतन करो
महक उठे जननी का आँचल ऐसे रंग भरो
रंग स्वेत, स्वेत क्रांति का बहे दूध की धारा
स्वेत चंद्रमा सा चरित्र हो, दमके जीवन सारा
मिटे कालिमा मानव मन से, स्निग्ध स्नेह इसमें भर दो
मरुस्थल से सूने जीवन को, नीर प्रेम से तर दो
नील गगन में श्याम मेघ बन, झर -झर नित झरो
महक उठे जननी का आँचल ऐसे रंग भरो
देश धर्म् हित शोर्य दिखावे, प्रतिदिन वर्दी खाकी
मिटे आंतरिक दवेष भावना, रहे ना कटुता बाकी
जन-जन के मस्तक पर दमके, देश प्रेम की लाली
गंगा यमुना सरयू गाये, गाथा गौरवशाली
सुरभित करने को जग कानन बन गुलाब बिखरो
महक उठे जननी का आंचल ऐसे रंग भरो
ओ मानस के चतुर चितेरे ऐसे चित्र बनादे
कभी ना छूटे दाग प्रीत का, ऐसा रंग लगादे
मस्तक पर गौरव का कुमकुम, हाथों मेहंदी श्रम की
देश प्रेम में हो सरोबार, टूटे चूड़ियाँ भ्रम की
सत्य धर्म की उड़े पताका कटुता दूर करो
महक उठे जननी का आँचल ऐसे रंग भरो
समय बड़ा बलवान
कभी नवाजे बल से धन से
देता रुतवे का साज – सामान
धन में रम के भूले जब मानुष
खुद ही खुद की पहचान
दे पटखनी मिलाये मिटटी में
कर देता है यह हलकान
समय बड़ा बलवान रे भैया
समय बड़ा बलवान
समय से कोई बच ना पाया
पीछे भागे हरपल इसका साया
हो जाए कब कुछ का कुछ
पहेली अजब कोई बूझ ना पाया
कभी उदित कभी अस्त
भाग्य विधाता समय तटस्थ
परिवर्तन का पाठ पढाए ये “सपना”
रखे ना किसी संग जान – पहचान
समय बड़ा बलवान रे भैया
समय बड़ा बलवान

ब्रज होली गीत

बड़ी जोर को सखी ऊ नचैय्या

बड़ी जोर को सखी ऊ नचैय्या
मैं करूँ ता ता थैया बिरज में
कभी छल से कभी अपने बल से
कभी इतते कभी घेरे उतते
डारे होरी को ऐसो फगैय्या
मोरे पीछे पड़ो रे ततैय्या
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
बदरी सो सखी कारो कारो
प्रेम पगी मोपे नजर ऊ डारो
कपटी नैनन को तीर चलैय्या
पकडे धोखे से मोरी कलैय्या
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
लाज शर्म वाय कछु ही ना आवे
गोपियन संग ऊ तो रास रचावे
डारे ऐसी उनके गलबहियां
मारे शर्म के मैं मर जईंयां
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
तन रोके और मन ललचावे
मोरे ह्रदय ऐसी प्रीत जगावे
बसे मनवा सखी मन बसैय्या
कैसे कहूँ री ऊ मेरो सैंय्या
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
बड़ी जोर को सखी ऊ नचैय्या
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में

मत कर मोसे जोर-जोरी पिया

मत कर मोसे जोर-जोरी पिया
आयो फाग महीना होरी खेल पिया
रंग दे मोहे अपने ही रंग में
बिजुरी सी कोंधे रे अंग-अंग में
भर प्रेम को रंग पिचकारी
भिगो दे चनिया चोली पिया
आयो फाग महिना होरी खेल पिया
घन सो कारो घनशयाम पिया
है चाँद चकोरी सी जोड़ी पिया
सुन बंशी मैं झूम – झूम झूमूं
बाबरिया बन इत -उत घूमूं
तू मेरो प्राण मैं शरीर पिया
आयो फाग महीना होरी खेल पिया
कैसी नेह डोर तूने बांधे रे पिया
मन नाचे मयूरा ,धक-धक करे जिया
मृग से तेरे नैना तिरछे तिरछे
डारें जादू अपनी ओर खींचें
मैं दौड़ी औं अँखियाँ मींचे पिया
आयो फाग महीना होरी खेल पिया

ढोल शहनाई मजीरा बाजत

ढोल शहनाई मजीरा बाजत
बरसाने की होली में
अबीर गुलाल झरे है झर – झर
ज्यों बदरा बरसे होली में
न जइयो कान्हा बरसाने
राधा घेर लई है टोली में
गोपी संग राधा नथ पहनावे
बनाई नार तोहे होली में
लट्ठ मार तेरी देह छिलावे
मिलके सगरी टोली में
न जइयो कान्हा बरसाने
राधा घेर लई है टोली में
मोर मुकुट पीताम्बर छिनई
चुनरी औढावल होली में
मुरली छीन पकड़ पहनाई
चनिया चोली होली में
न जइयो कान्हा बरसाने
राधा घेर लई है होली में

मौको है आज तो

मौको है आज तो
हुल्लड़ और हास को
छोड़ेंगे ना कोइकू
आयो है दिन फाग को
‘मुठ्ठी में रंग लियो
जो ऊ मिलो पकड़ लियो
पोत पोत मोंह बाको
बंदर सो लाल कियो
रूठा मटकी ना करो जी
क्षमा करो आज तो
छोड़ेंगे ना कोइकू
आयो है दिन फाग को
गाम गाम धुंध मचो
हर दिल में रास रचो
भंग को है गोलमाल
अपनों सो कौन बचो
प्रेम ते करो हल
प्रश्न जात पात को
बाजुन मैं भर लेयो
बंधन वैराग को
छोड़ेंगे न कोइकू
आयो है दिन फाग को
मौको है आज तो
हुल्लड़ और हास को

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