मुनाफ़ा मुश्तरक है और ख़सारे एक जैसे हैं
मुनाफ़ा मुश्तरक है और ख़सारे एक जैसे हैं
कि हम दोनों की क़िस्मत के सितारे एक जैसे हैं
मैं एक छोटा सा अफ़सर हूँ वो इक मोटा सा मिल-ओनर
मगर दोनों के इन्कम गोश्वारे एक जैसे हें
हर इक बेगम अगरचे मुनफ़रिद है अपनी सज-धज में
मगर जितने भी शौहर हैं बिचारे एक जैसे हैं
वो थाना हो शिफा-ख़ाना हो या फिर डाक-ख़ाना हो
रिफ़ाह-ए-आम के सारे इदारे एक जैसे हैं
कोई ख़ुश-ज़ौक़ ही ‘शाहिद’ ये नुक्ता जान सकता है
कि मेरे शेर और नख़रे तुम्हारे एक जैसे हैं