पल भर न हुआ जीवन प्यारा!
पल भर न हुआ जीवन प्यारा!
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- पूजा के मंदिर में झाँका,
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- अर्चन की चाहों को आँका,
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- जग ने अपराधिनि ठहराया,
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- आजीवन खुल न सकी कारा!
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- पल भर न हुआ जीवन प्यारा!
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- मधु के घट रक्खे दूर-दूर,
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- जब छूना चाहा हुए चूर,
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- जग अंतराल से पिला सका
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- मुझको केवल विष की धारा!
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- पल भर न हुआ जीवन प्यारा!
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खेल ज्वाला से किया है!
खेल ज्वाला से किया है!
शून्यता जब नयन छाई, हृदय में तृष्णा समाई,
समझ कर पीयूष मैंने
गरल ही अब तक पिया है।
स्वप्न-उपवन में चहक कर, पींजरे में जा, बहक कर-
जग भला क्या जान सकता,
मूल्य मैंने क्या दिया है?
इस अंधेरे देश में पल, पागलों के वेश में चल,
शून्य के ही साथ मैंने
वेदना-विनिमय किया है !
प्यार का पाकर निमन्त्रण, मैं गई,कितना प्रवंचन!
समझ कर वरदान मैंने,
शाप ही अब तक लिया है!
खेल ज्वाला से किया है!
मानस मंदिर में प्रिय तुम
मानस-मंदिर में प्रिय तुम,
निशिदिन निवास करते हो।
पर उसकी जीर्ण दशा का
कुछ ध्यान नहीं रखते हो।
इतने बेसुध हो तुम जब,
कैसे हो मुझ को आशा !
तुम पूरी कभी करोगे
मेरे मन की अभिलाषा !
मधु ऋतु की हँसती घड़ियाँ ये
मधु ऋतु की हँसती घड़ियाँ ये,
जीवन-पतझर में क्यों लाए ?
ये मस्ती की फुलझड़ियाँ ले,
मेरे खंडहर में क्यों आए ?
छेड़ी क्यों तुमने सूने में
वंशी-ध्वनि मीठी, क्यों आए ?
जिसको सुन पागल-विकल हुआ
यह मन मेरा, तुम क्यों आए ?
रोदन के एकाकी जग में,
पल एक हँसाने क्यों आए ?
नाता इस पीड़ामय उर से,
तुम हाय ! जोड़ने क्यों आए ?
उस गीली स्मिति की छवि नयनों
में तुम उलझाने क्यों आए ?
मधु का प्याला आँखों में भर
पल-पल छलकाने क्यों आए ?
तुम पूर्ण अपरिचित मग चलते,
चिर परिचित बन कर क्यों आए ?
हे पथी, कहो, जाना ही था
तो रुकने पल भर क्यों आए ?
हम बाल गुपाल
हम बाल गुपाल सभी मिलकर
दुनिया को नई बनाएँगे।जो अभी नींद में सोए हैं,
जो अंधकार में खोए हैं,
कल उनको हमीं जगाएँगे।जो नींवें अब तक भरी नहीं,
जो फुलवारी है हरी नहीं,
कल उनको हमीं बसाएँगे।जो शीश सदा से झुके हुए,
जो कदम आज हैं रुके हुए,
कल उनको हमीं उठाएँगे।जो अंकुर डरें उभरने से,
जो पौधे डरें सँवरने से,
कल उन्हें हमीं लहराएँगे।हम छोटे आज, बढ़ेंगे कल,
धरती से गगन, चढ़ेंगे कल
हम ऊँचा देश उठाएँगे।
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