हंस कहाँ मिलिहैं अब तो बर
हंस कहाँ मिलिहैं अब तो बर भक्ति के भाव वे पूरब वारे ।
तीरथ मे छहरात न शांति सदाँ घहरात हैँ लोभ नगारे ।
मँदिर के दृढ़ जाल तनाय तहाँ बहु ब्याध पुजारी निहारे ।
फाँसत कामिनी कंचन की चिरियाँ धरि मूरति के बर चारे ।
हंस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।