आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
दिल में हज़ार ज़ख्म थे जो न उन्हें दिखा सके
घर में जो इक चराग़ था तुम ने उसे बुझा दिया
कोई कभी चराग़ हम घर में न फिर जला सके
शिकवा नहीं है अर्ज़ है मुमकिन अगर हो आप से
दीजे मुझ को ग़म जरूर दिल जो मिरा उठा सके
वक़्त क़रीब आ गया हाल अजीब हो गया
ऐसे में तेरा नाम हम फिर भी न लब पे ला सके
उस ने भुला के आप को नजरों से भी गिरा दिया
‘नासिर’-ए-ख़स्ता-हाल फिर क्यूँ न उसे भुला सके
ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए
ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए
इस मेरी तबाही में तिरा नाम न आए
ये दर्द है हम-दम उसी ज़ालिम की निशानी
दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए
काँधे पे उठाए हैं सितम राह-ए-वफा के
शिकवा मुझे तुम से है कि दो-गाम न आए
लगता है कि फैलेगी शब-ए-ग़म की सियाही
आँसू मिरी पलकों पे सर-ए-शाम न आए
मैं बैठ के पीता रहूँ बस तेरी नज़र से
हाथों में कभी मेरे कोई जाम न आए
बैठा हूँ दिया घर का जो ‘नासिर’ में जला के
ऐसा न हो फिर वो दिल-ए-ना-काम में आए
हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू
हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू
गिर के दामन पे बने थे जो सितारे आँसू
लाल ओ गौहर के खज़ाने हैं ये सारे आँसू
कोई आँखों से चुरा ले न तुम्हारे आँसू
उन की आँखों में जो आएँ तो सितारे आँसू
मेरी आँखों में अगर हूँ तो बिचारे आँसू
दामन-ए-सब्र भी हाथों से मिरे छूट गया
अब तो आ पहुँचे हैं पलकों के किनारे आँसू
आप लिल्लाह मिरी फिक्र न कीजे हरगिज़
आ गए हैं यूँही बस शौक़ के मारे आँसू
दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया
हम तो समझे थे बनेंगे ये सहारे आँसू
तू तो कहता था न रोएँगे कभी तेरे लिए
आज क्यूँ आ गए पलकों के किनारे आँसू
आज तक हम को क़लक़ है उसी रूसवाई का
बह गए थे जो बिछड़ने पे हमारे आँसू
मेरे ठहरे हुए अश्कों की हकीकत समझो
कर रहे हैं किसी तूफाँ के इशारे आँसू
आज अश्कों पे मिरे तुम को हँसी आती है
तुम तो कहते थे कभी इन को सितारे आँसू
इस क़दर गम भी न दे कुछ न रहे पास मिरे
ऐसा लगता है कि बह जाएँगे सारे आँसु
दिल के जलने का अगर अब भी ये अंदाज़ रहा
फिर तो बन जाएँगे एक दिन ये शरारे आँसू
तुम को रिम-झिम का नज़ारा जो लगा है अब तक
हम ने जलते हुए आँखों से गुज़ारे आँसू
मेरे होंटो को तो जुम्बिश भी न होगी लेकिन
शिद्दत-ए-ग़म से जो घबरा के पुकारे आँसू
मेरी फरीयाद सुनी है न वो दिल मोम हुआ
यूँही बह बह के मिरे आज ये हारे आँसू
उन को ‘नासिर’ कभी आँखों से न गिरने देगा
मेरी आँखों में इन्हें लगते हैं प्यारे आँसू
इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं
इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं
फूलों की तमन्ना थी मगर ख़ार मिले है
अनमोल जो इंसाँ था वो कौड़ीं में बिका है
दुनिया के कई ऐसे भी बाज़ार मिल है
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाजा
वो कौन हैं फूलों के जिन्हें हार मिले हैं
मालिक ये दिया आज हवाओं से बचाना
मौसम है अजब आँधी के आसार मिले हैं
दुनिया में फ़क़त एक ज़ुलेखा ही नहीं थी
हर यूसुफ-ए-सानी के ख़रीदार मिले हैं
अब उन के न मिलने की शिकायत का गिला है
हम जब भी मिले ख़ुद से तो बेज़ार मिले हैं
‘नासिर’ ये तमन्ना थी मोहब्बत से मिलेंगे
वो जब भी मिले बर-सर-ए-पैकार मिले हैं
इश्क़ कर के देख ली जो बे-बसी देखी न थी
इश्क़ कर के देख ली जो बे-बसी देखी न थी
इस क़दर उलझन में पहले जिंदगी देखी नी थी
ये तमाशा भी अजब है उनके उठ जाने के बाद
मैं ने दिल में इस से पहले तीरगी देखी न थी
आप क्या आए कि रूख़्सत सब अँधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी
आप से आँखें मिली थीं फिर न जाने क्या हुआ
लोग कहते हैं कि ऐसी-बे-ख़ुदी देखी न थी
मुझ को रूख़्सत कर रहे हैं वो अजब अंदाज़ से
आँख में आँसू लबों पर ये हँसी देखी न थी
किस क़दर ख़ुश हूँ मैं ‘नासिर’ उन को पा लेने के बाद
ऐसा लगता है कभी ऐसी ख़ुशी देखी न थी
जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा
जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा
दीवाना ले के जान का नज़राना आएगा
तुझ को भुला के लूँगा मैं ख़ुद से भी इंतिक़ाम
जब मेरे हाथ में कोई पैमाना आएगा
आसान किस क़दर है समझ लो मिरा पता
बस्ती के बाद पहला जो वीराना आएगा
उस की गली में सर की भी लाज़िम है एहतियात
पत्थर उठा कि हाथ में दीवाना आएगा
‘नासिर’ जो पत्थरों से नवाज़ा गया हूँ मैं
मरने के बाद फूलों का नज़राना आएगा
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है
पत्थरों आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो
मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है
अब मिरी दीद की दुनिया भी तमाशाई है
तू ने क्या मुझ को मोहब्बत में बना रक्खा है
पी जा अय्याम की तल्ख़ी को भी हँस कर ‘नासिर’
ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है
कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है
कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है
वो एक शख़्स जो सचमुच ख़ुदाओं जैसा है
हमारी शम-ए-तमन्ना भी जल के ख़ाक हुई
हमारे शोलों का आलम चिताओं जैसा है
वो बस गया है जो आ कर हमारी साँसों में
जभी तो लहजा हमारा दुआओं जैसा है
तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रूख़्सत
हमारे शहर का मंज़र भी गाँव जैसा है
वो एक शख़्स जो हम से है अजनबी अब तक
ख़ुलूस उस का मगर आश्नाओं जैसा है
हमारे ग़म में वो जुल्फें बिखर गईं ‘नासिर’
जभी तो आज का मौसम भी छाँव जैसा है
मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
मेरी मद-होशी मिरे जाम से आगे न बढ़ी
दिल की हसरत दिल-ए-नाम-काम से आगे न बढ़ी
ज़िंदगी मौत के पैग़ाम से आगे न बढ़ी
वो गए घर के चराग़ों को बुझा कर मेरे
फिर मुलाक़ात मिरी शाम से आगे न बढ़ी
रह गई घुट के तमन्ना यूँही दिल में ऐ दोस्त
गुफ़्तुगू अपनी तिरे नाम से आगे न बढ़ी
वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे ‘नासिर’
ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढ़ी