नाव काग़ज़ की लहर पर छोड़ दो
नाव काग़ज़ की लहर पर छोड़ दो
बाक़ी बातें ईश्वर पर छोड़ दो
ज़ख़्म उसके पास अपना भेजकर
दर्द चिट्ठी के असर पर छोड़ दो
साथ देने के लिए कह दो मगर
साथ देना हमसफ़र पर छोड़ दो
आदमी के अस्ल की पहचान को
ख़ुद उसी के जानवर पर छोड़ दो
तुमको जो मालूम है करके बयां
झूठ-सच जज की नज़र पर छोड़ दो
सब नहीं पर कुछ मसायल तो मियां
सात फेरों के सफ़र पर छोड़ दो
जंग जब तक टल सके ये फै़सला
किन्तु, लेकिन, पर, मगर पर छोड़ दो
आदमी को आदमी से प्यार है
आदमी को आदमी से प्यार है
आजकल ये सोचना बेकार है
ज़िंदगी को ये कहाँ से मिल गया
छल-कपट तो मौत का हथियार है
हार जायेगा बेचारा उम्र से
बात बच्चे की भले दमदार है
झोपड़ी हो या महल हो हर जगह
आईने का एक ही किरदार है
मानने को मान लें कुछ भी मगर
कौन मौसम से बड़ा अय्यार है
कै़द है जो मसलहत की बाँह में
उस रफ़ाक़त से मुझे इन्कार है
कह दो ख़ुश्बू से रहे औक़ात में
ख़ार का भी फूल पर अधिकार है
आजकल किरदार की क़ीमत नहीं
आजकल किरदार की क़ीमत नहीं
मैं तुम्हारी राय से सहमत नहीं
एक मुँह से बात दो करते हो तुम
और कहते हो मेरी इज़्ज़त नहीं
गिर चुका है वाक़ई अब वो बहुत
आदमी पर ये ग़लत तोहमत नहीं
वो तुम्हें पहचानता है, ठीक है
फिर भी अच्छी साँप की सोहबत नहीं
उम्र लग जाती है पाने में इसे
एक दिन का खेल ये शोहरत नहीं
दिल तुम्हारा किस तरह से चल रहा
साँस लेने की अगर फ़ुरसत नहीं
चाँद बिल्कुल पास था उसके मगर
‘कल्पना’ के साथ थी क़िस्मत नहीं
शोहरतों में आप जैसे हम नहीं
शोहरतों में आप जैसे हम नहीं
वरना तारे चाँद से कुछ कम नहीं
लुत्फ़ ले लो ज़िंदगी में जब मिले
रोज़ मिलती चाँदनी, शबनम नहीं
फ़र्क़ मुझमें और तुझ में लाज़मी
पाँचों उँगली कीं ख़ुदा ने सम नहीं
कुछ तो होगी ही वजह वरना कभी
आँखें होती हैं किसी की नम नहीं
पूछना तो चाहिए उससे हमें
माना इससे दूर होता ग़म नहीं
घिर चुका है वो यक़ीनन ख़्वाब में
नींद आती है उसे एकदम नहीं
आज या कल टूटना ही है उसे
कोई भी रहता हमेशा भ्रम नहीं
बात मुझको आपकी कड़वी लगी
बात मुझको आपकी कड़वी लगी
किन्तु सच है इसलिए अच्छी लगी
हो सके तो दूसरी कुछ दीजिए
ये चुनौती तो मुझे हल्की लगी
लोग समझे आग ठंडी हो गयी
कुछ पलों को जब उसे झपकी लगी
ख़ुद-ब-ख़ुद ही दर्द ग़ायब हो गया
घाव को जब चूमने मक्खी लगी
क्या हुआ गर मुफ़लिसी को आज भी
मुर्ग़ जैसी घास की सब्ज़ी लगी
माँजकर बर्तन दबाया पैर जब
सास जी को तब बहू अच्छी लगी
भूल कैसे जायें हम वो रात जो
और रातों से हमें लम्बी लगी
जब तलक जान पर नहीं आता
जब तलक जान पर नहीं आता
ख़तरा-ख़तरा नज़र नहीं आता
जाने क्यों राह में बिना भटके
रास्ते पर सफ़र नहीं आता
आदमी में बग़ैर ख़ुद चाहे
सोहबतों का असर नहीं आता
हार से मत डरो बिना हारे
जीतने का हुनर नहीं आता
ऐसा किस काम का सहारा है
काम जो वक़्त पर नहीं आता
टूट जाओगे सच-वफ़ा में तुम
दर्द सहना अगर नहीं आता
क़द्र हर एक लम्हे की करिये
गुज़रा पल लौटकर नहीं आता
हल कोई मसअला नहीं होगा
हल कोई मसअला नहीं होगा
जब तलक हौसला नहीं होगा
कोशिशें कीजिए तो फिर दिल से
दूर कैसे गिला नहीं होगा
दूरियों की वजह से मत कहिये
पास का सिलसिला नहीं होगा
दिन निकलने दें, रात में दिन का
ठीक से फैसला नहीं होगा
बेवजह कोई काम मत कीजे
रेत में बुलबुला नहीं होगा
कौन कहता है दौर-ए-हाज़िर में
नेकियों से भला नहीं होगा
भूख वो लोग कैसे समझेंगे
पेट जिनका जला नहीं होगा
वक़्त जल्दी बुरा नहीं जाता
वक़्त जल्दी बुरा नहीं जाता
पर समय से डरा नहीं जाता
दर्द देता है देर तक वो ग़म
जो ख़ुशी से सहा नहीं जाता
नाव कैसे चलेगी जब तुमसे
चित्र में जल भरा नहीं जाता
ख़ुद की भी कुछ ख़बर न हो इतना
बेख़बर भी रहा नहीं जाता
ये तो मेरा है अपना आने दो
ख़त किसी का पढ़ा नहीं जाता
सच पे चल के ही मैंने सीखा है
हर जगह सच कहा नहीं जाता
ये हमारा यक़ीन है कोई
काम बेजा भला नहीं जाता
जब भी जीवन में हार जाना तुम
जब भी जीवन में हार जाना तुम
सार गीता का गुनगुनाना तुम
हार का ग़म लगे सताने जब
अपनी भूलों पे खिलखिलाना तुम
दूर दुनिया से जो तुम्हें कर दें
ऐसी बातें नहीं बढ़ाना तुम
नीतियाँ दोहरी हैं नहीं अच्छी
जीने का इक नियम बनाना तुम
बोझ जीवन पे चाहे जितना हो
हौसला अपना मत घटाना तुम
वक़्त कैसा भी सामने आये
अपना किरदार मत गिराना तुम
तुमको कोई कमी नहीं होगी
बस बुजु़र्गों को मत भुलाना तुम
कुछ भी तू कर ले यार पैसे से
कुछ भी तू कर ले यार पैसे से
गै़र मुमकिन है प्यार पैसे से
फिर गया है दिमाग़ क्या तेरा
चाहता है बहार पैसे से
शुक्र है उसकी लाखों की दुनिया
बच गयी मेरे चार पैसे से
जुर्म मिट्टी का क्यों कहा जाये
बिक गया जब कुम्हार पैसे से
कौन समझाये इन ग़रीबों को
बोलता है अनार पैसे से
मत करो मेरी उनसे तुलना जो
सिर्फ़ हैं शानदार पैसे से
साफ़ रखना हिसाब रिश्तों में
वरना होगी दरार पैसे से
ख़ूबियाँ देखिए सिकन्दर की
ख़ूबियाँ देखिए सिकन्दर की
बात तब कीजिए मुक़द्दर की
तुमको कुछ भी परख नहीं है क्या
तुलना हीरे से होगी पत्थर की
पाप का हर घड़ा वो फोड़ेगा
वक़्त को बस तलाश अवसर की
दोस्ती, दुश्मनी या शादी हो
बात अच्छी है बस बराबर की
जब तलक वक़्त साथ देता है
आँखें खुलती नहीं सितमगर की
दूर अब वो समय नहीं है जब
धरती पूछेगी ज़ात अम्बर की
घर भरा कैसे हम कहें उसका
जब कमी उसमें ढाई अक्षर की
नफ़रतें देख प्यारी आँखों में
नफ़रतें देख प्यारी आँखों में
आ गये अश्क सारी आँखों में
शुक्र है फिर से लौट आई है
जीत की चाह हारी आँखों में
हम कहीं भी रहें मगर हरदम
रहते हैं वो हमारी आँखों में
मुद्दतें हो गयीं मगर अब भी
यादें बचपन की तारी आँखों में
जाने किस ढंग से लोग रखते हैं
दुश्मनी दिल में यारी आँखों में
फूल, काँटा दिखाई देता है
क्या हुआ है तुम्हारी आँखों में
चैन कैसे हो दिल में सोचो जब
छायी बेटी कुँवारी आँखों में
कौन उस आदमी के घर जाये
कौन उस आदमी के घर जाये
अपने वादे से जो मुकर जाये
रास्ते और हैं कई लेकिन
काश वो बात से सुधर जाये
आपने ख़ुद उसे बुलाया है
मौत अब बोलिए किधर जाये
आग तो बुझ गयी मगर उसकी
राख भी देखिए जिधर जाये
उसकी अपनी भी एक इज़्ज़त है
यूँ ही तूफ़ान क्यों ठहर जाये
रस्म वो ज़िंदगी की है कैसे
जो निभाने में कोई मर जाये
दर्द बढ़ने का डर नहीं मुझको
रात बस ठीक से गुज़र जाये
रात-दिन आह ही कमाते हैं
रात-दिन आह ही कमाते हैं
आप बच्चों को क्या खिलाते हैं
भूल क्या आपसे नहीं होती
डाँट नौकर को जो पिलाते हैं
फ़िक्र अपनी करें हमें छोड़ें
हम जो कहते हैं वो निभाते हैं
साथ औरों का दें तो हम समझें
बोझ अपना तो सब उठाते हैं
दख़्ल मत दीजिए नमक-घी में
मर्द तो घर नहीं चलाते हैं
आपको शर्म क्यों नही आती
कंस को देवता बताते हैं
दिल भला कैसे वो मिलायेंगे
हाथ जो दूर से हिलाते हैं
भूल जायेगा वो भुलाएँ तो
भूल जायेगा वो भुलाएँ तो
दिल किसी और से लगाएँ तो
नफ़रतें ख़ुद पनाह माँगेंगी
प्यार के बोल गुनगुनाएँ तो
आज क्या रोज़ ही ग़ज़ल होगी
आप वो कैफ़ियत बनाएँ तो
वो भी कुछ देगा आपको पहले
उस गिरे शख़्स को उठाएँ तो
मौत को कौन टाल सकता है
डूबते को मगर बचाएँ तो
शेर हैं आपके बहुत उम्दा
फिर भी उस्ताद को दिखाएँ तो
पूछ अपना सवाल जल्दी से
पूछ अपना सवाल जल्दी से
ख़त्म कर दे मलाल जल्दी से
प्यार की ओढ़ ले रिदा पागल
फेंक नफ़रत की शाल जल्दी से
साँप आता है रोज़ घर तेरे
नेवला एक पाल जल्दी से
जाने कब कौन काम आ जाये
दौड़ उसको सँभाल जल्दी से
क़र्ज़ को पालना नहीं अच्छा
इस मुसीबत को टाल जल्दी से
ये बढ़ी तो तबाह कर देगी
काट दे ज़िद की डाल जल्दी से
गै़र मुमकिन है भूलना कोई
पीढ़ियों का ख़याल जल्दी से
आन पर लोग जान देते हैं
आन पर लोग जान देते हैं
आप दौलत पे ध्यान देते हैं
डूबे हैं आप ख़ुद तमाशे में
हमको गीता का ज्ञान देते हैं
बात बासी उन्हें खटकती है
रोज़ ताज़ा बयान देते हैं
कौन से दिन को वो कहें अच्छा
साल भर जो लगान देते हैं
फ़ायदा हम ही ले नहीं पाते
वो तो सबको अज़ान देते हैं
उनको किस चीज़ की कमी है जो
सबकी ख़ुशियों पे ध्यान देते हैं
अब ये दिल आपका हुआ मेरा
जाइये हम ज़बान देते हैं
कोई भूखा न कोई बेघर हो
कोई भूखा न कोई बेघर हो
काश हर आदमी बराबर हो
कल पे कुछ टालने से बेहतर है
आज ही सारी बात खुलकर हो
वक़्त तो हो गया चलो देखें
आज मुमकिन है चाँद छत पर हो
वो मदद आपकी करे कैसे
एक ही जिसके पास चादर हो
कर रहे हो तमाशा क्यों बाहर
घर चलो घर की बात अन्दर हो
साथ उस शख़्स का नहीं अच्छा
कथनी-करनी में जिसकी अन्तर हो
वो ग़ज़ल तो किसी से ले लेगा
कैसे औरों के दम पे शायर हो
सारी दुनिया भुलाए बैठे हैं
सारी दुनिया भुलाए बैठे हैं
आप किसमें समाए बैठे हैं
बोझ दिल पर बढ़ाए बैठे हैं
बेसबब मुँह फुलाए बैठे हैं
फ़िक्र किस बात की करें बेटे
बाप सब तो बनाए बैठे हैं
उनको अब भी तलाश है उसकी
जो जुए में गँवाए बैठे हैं
राज़ कुछ है ज़रूर नेता जी
आज धूनी रमाए बैठे हैं
हाथ हिलाते हुए न घर जाना
आस बच्चे लगाए बैठे हैं
आप कुछ सोचिए नहीं जब तक
आपके सर के साये बैठे हैं
कह दो खुल के अगर शिकायत है
कह दो खुल के अगर शिकायत है
मुँह छुपाने की क्या ज़रूरत है
बात जो भी हो साफ़ ही कहना
गोल बातों से मुझको नफ़रत है
झूठ के दिन बहुत नहीं होते
कल भी थी अब भी ये सदाक़त है
क़त्ल को हादसा बना डाला
ये भला कौन सी महारत है
आज जो काम कर दे रिश्वत से
समझो कि उसमें कुछ शराफ़त है
मिट्टी हरदम दिमाग़ में रखना
ज़िंदगी की यही हक़ीक़त है
यूँ ही मज़बूत वो नहीं आख़िर
ताज की नींव में मोहब्बत है
कुछ करो, कुछ बचा ही रहता है
कुछ करो, कुछ बचा ही रहता है
बोझ सर का बना ही रहता है
कोई कितना बड़ा हो पर, उससे
जो बड़ा है बड़ा ही रहता है
क्या अजब चीज़ है ये पैसा भी
जिसके देखो घटा ही रहता है
दिल नहीं जां भी तुम उसे दे दो
बेवफ़ा-बेवफ़ा ही रहता है
लाख घी-दूध से नहा ले वो
कोयला, कोयला ही रहता है
दिन बुरा कुछ करें तो उसमें भी
आदमी का भला ही रहता है
क्या ज़रूरत है दुःख में रोने की
यार सुख-दुःख लगा ही रहता है
मुझको लगता है क्यों अजब तन्हा
मुझको लगता है क्यों अजब तन्हा
जबकि संसार में हैं सब तन्हा
वो भी मजबूर आज है वरना
छोड़ा उसने था घर को कब तन्हा
कह दो इन अनगिनत ख़ुदाओं से
कल भी था आज भी है रब तन्हा
बस मुझे ही नहीं मुसीबत में
भारी लगती है सबको शब तन्हा
आज सब कुछ बदल गया लेकिन
मौत का है वही सबब तन्हा
क्या तुम्हें देती है ये तन्हाई
रहते हो जब भी देखो तब तन्हा
मेरी ग़ज़लों से बात तुम करना
ख़ुद को महसूस करना जब तन्हा
मौत से भागता नहीं कोई
मौत से भागता नहीं कोई
पर उसे चाहता नहीं कोई
आज सोचो जबाब कल देना
सबसे कुछ माँगता नहीं कोई
देखकर कुछ को, मत कहो सबको
आजकल पतिव्रता नहीं कोई
तुम सदा घूमते ही रहते हो
घर में क्या डाँटता नहीं कोई
हल तो हर मसअले का मुमकिन है
दिल में बस ठानता नहीं कोई
काम सब आदमी से होते तो
राम को मानता नहीं कोई
ऐसा जीना भी कोई जीना है
तुमको पहचानता नहीं कोई
ढूँढ रहा नादान दूसरा
ढूँढ रहा नादान दूसरा
घर जैसा स्थान दूसरा
कोशिश मत कर नामुमकिन है
लिख पाना क़ुरआन दूसरा
सच्चाई है बेहद मुश्किल
चुन लो कुछ उन्वान दूसरा
सोचो कितनी मुश्किल होती
होता गर भगवान दूसरा
क़िस्मत आड़े आई वरना
दिल में था अरमान दूसरा
आख़िर कब तक देगी दुनिया
लड़की को सम्मान दूसरा
ख़ुद पर करो भरोसा तुम पर
कब तक देगा ध्यान दूसरा
कुछ मत सोचो कल क्या होगा
कुछ मत सोचो कल क्या होगा
जो भी होगा अच्छा होगा
माज़ी छोड़ो हाल सँवारो
मुस्तक़बिल ख़ुद बढ़िया होगा
साहिल क्या जाने बेचारा
सागर कितना गहरा होगा
शक्ल देखकर कहना मुश्किल
कौन आदमी कैसा होगा
नामुमकिन है वहाँ तरक़्क़ी
जहाँ हमेशा झगड़ा होगा
तुम बस पेड़ लगाते जाओ
हरा खीझकर सहरा होगा
बेफ़िक्री ख़ुद कहती तुम पर
अभी बाप का साया होगा
सब सुधरेगा लेकिन कब तक
सब सुधरेगा लेकिन कब तक
युग बदलेगा लेकिन कब तक
माना मुफ़लिस के बच्चे का
मन तरसेगा लेकिन कब तक
पेट दिया तो हल भी उसका
वो बख़्शेगा लेकिन कब तक
चलो पूछ लें रहबर मुश्किल
हल कर देगा लेकिन कब तक
अभी उम्र है अभी तुम्हारा
दिल मचलेगा लेकिन कब तक
चलो मान लें बिगड़ा उसका
पग सँभलेगा लेकिन कब तक
प्यासे जब तक हैं धरती से
जल निकलेगा लेकिन कब तक
देख रहा है वो तो सब कुछ
देख रहा है वो तो सब कुछ
देखो कब करता है रब कुछ
सबका कैसे पेट भरेगा
आबादी है एक अरब कुछ
चारागर यूँ नहीं बोलता
कर सकता है वो ही अब कुछ
विधवा ने सिन्दूर ख़रीदा
होगा इसका भी मतलब कुछ
बात बदलने से बेहतर है
पहले सोचें कहिए तब कुछ
सब थे लेकिन, बिना तुम्हारे
उस दिन मुझको लगा अजब कुछ
घड़ी अचानक बंद हो गयी
बिना किसी से कहे सबब कुछ
यूँ ही आशिक़ नहीं जहां में
एक अरब के एक अरब कुछ
रोक रहा दिल वरना अब भी
चाह रहे हैं कहना लब कुछ
जलना या जल जाना अच्छा
जलना या जल जाना अच्छा
शम्अ या परवाना अच्छा
आ जाते तुम वही बहुत था
मत लाते नज़राना अच्छा
झूठ बोलकर ये क्या कहना
मैंने किया बहाना अच्छा
साथ एक का देने से है
दोनों को समझाना अच्छा
माना आज बुरा है लेकिन
कब ये रहा ज़माना अच्छा
खोज ठीक से बेटे यूँ ही
मिलता नहीं ख़ज़ाना अच्छा
बेनामी फूलों का जग में
खिलने से मुरझाना अच्छा
दरवाज़े के बाहर भी है
दरवाज़े के बाहर भी है
डर तो घर के अन्दर भी है
धीमे-धीमे बोलो ख़तरा
दीवारों के भीतर भी है
अश्क नहीं हल करते हैं कुछ
मैंने देखा रोकर भी है
शायद ही ये माने कोई
ख़ामी मेरे अन्दर भी है
मजबूरी में चुप है वरना
थकता घर का नौकर भी है
ऊपर जाओ पर मत भूलो
कोई तुमसे ऊपर भी है
कोई माने चाहे न माने
कुछ न कुछ तो ईश्वर भी है
करना मुश्किल सैर दूर तक
करना मुश्किल सैर दूर तक
ख़तरा लिए बग़ैर दूर तक
अपने-अपने ही होते हैं
साथ न देंगे ग़ैर दूर तक
होनी तो हो गयी मगर अब
जाने मत दे बैर दूर तक
मँहगा पड़ सकता है तुझको
मछली सा मत तैर दूर तक
दिल में हिम्मत है तो ख़ुद ही
ले जायेंगे पैर दूर तक
किसे चढ़ाएँ फूल आजकल
किसे चढ़ाएँ फूल आजकल
पीपल हुए बबूल आजकल
लुत्फ़ सियासत में ही है अब
बाक़ी काम फ़ुज़ूल आजकल
गाँवों को बदनाम करो मत
कहाँ नहीं है धूल आजकल
कोई क्या कर लेगा उसका
दिन उसके अनुकूल आजकल
सोच-समझकर कुछ तय करना
निभते नहीं उसूल आजकल
यूँ ही बच्चे नहीं देखते
सपने ऊल जलूल आजकल
गाँव मेरा मशहूर नहीं है
गाँव मेरा मशहूर नहीं है
तो क्या उसमें नूर नहीं है
साथ बुलन्दी देगी उसका
जब तक वो मग़रूर नहीं है
वो भी कोई घर है जिसमें
दुनिया का दस्तूर नहीं है
सरल नहीं है इसे समझना
थकता क्यों मज़दूर नहीं है
भूल जाइये बात पुरानी
औरत अब मजबूर नहीं है
ख़फ़ा रहो या ख़ुश तुम मुझको
ग़लत बात मंज़ूर नहीं है
मैं नाहक़ ही थका-थका हूँ
मंज़िल तो कुछ दूर नहीं है
आँगन सबको प्यारा, कैसे
आँगन सबको प्यारा, कैसे
घर का हो बँटवारा कैसे
दीपक छोड़ो, सोचो होगा
चूल्हे में उजियारा कैसे
नालायक़ ही, है तो बेटा
बेटी बने सहारा कैसे
बदन गर्म है बेहद लेकिन
घर बैठे मछुआरा कैसे
सबसे जीता, पर अपनों से
देश हमारा हारा कैसे
मुझसे नहीं स्वयं से पूछो
मैं हो गया तुम्हारा कैसे
रोज़ बदलता है घर फिर भी
ख़ुश रहता बंजारा कैसे
जिसको सबने अच्छा समझा
जिसको सबने अच्छा समझा
उत्तर था वह सोचा समझा
मुझसे कितनी भूल हुई जो
तोते को बस तोता समझा
क्या कहती हैं बूढ़ी आँखें
घर में केवल पोता समझा
हैरत है अधखिले फूल को
माली ने भी काँटा समझा
भरा अभी कश्कोल नहीं है
रात हुई तब अंधा समझा
कोशिश औरों ने भी की, पर
ग़म बहरे का गूँगा समझा
शायद मैंने ठीक किया जो
दुनिया को बस दुनिया समझा
प्यार हमेशा लड़कर जीता
प्यार हमेशा लड़कर जीता
लेकिन हद के अन्दर जीता
वापस तो आ नहीं सका, पर
अपनी जंग कबूतर जीता
लाखों हाथों के सवाल को
पल भर में कम्प्यूटर जीता
दिन भर की मुश्किल को शब में
मैक़श ने मय पीकर जीता
मेरी दिन भर की थकान को
बच्चा केवल हँसकर जीता
ख़ूबसूरती से अक्सर ही
सुख का खेल मुक़द्दर जीता
मोती तो गहराई में है
मोती तो गहराई में है
तुलसी की चौपाई में है
ज़रा सँभलकर हाथ मिलाना
पैर कँवल का काई में है
किस पर करें यक़ीन आजकल
हर कोई चतुराई में है
सच्चाई से सुख से जीना
मुश्किल इस मँहगाई में है
नींद मुझे आ जाये कैसे
ख़्वाब मेरा कठिनाई में है
लगभग रिश्तेदारी-सा अब
रिश्ता भाई-भाई में है
लफ़्ज़ों में कह पाना मुश्किल
कितना दर्द जुदाई में है
घर में घुस कर डपट गयी थी
घर में घुस कर डपट गयी थी
मौत शान से निपट गयी थी
बेचारी लुट गयी वहाँ भी
जहाँ लिखाने रपट गयी थी
मुझको मैली कर दो कहने
गंगा किसके निकट गयी थी
कुंभ नहाकर पुण्य कमाने
बड़ी भीड़ बेटिकट गयी थी
होनी ही थी भंग तपस्या
नागिन मुनि से लिपट गयी थी
सारे दिन की मेहनत शब में
फिर चूल्हे में सिमट गयी थी
जाने कैसा भाई है वो
जाने कैसा भाई है वो
भाई की कठिनाई है वो
आख़िर कब तक यही कहें सब
बचपन से दंगाई है वो
दूल्हे को जो कार मिली है
लालच की लम्बाई है वो
दुनिया जिसको लाठी कहती
अंधे की बीनाई है वो
गीता सिर्फ़ नहीं है पुस्तक
जीवन की सच्चाई है वो
इतनी जल्दी नहीं रुकेगी
मेहनत की जमुहाई है वो
‘हरि’ हम जिसको मक़्ता कहते
मतले की अँगड़ाई है वो
ग़म से जब घबराओगे तुम
ग़म से जब घबराओगे तुम
तब कैसे जी पाओगे तुम
औरों के गर रहे भरोसे
तो जल्दी थक जाओगे तुम
आज नहीं कल कहकर कब तक
बच्चों को बहलाओगे तुम
बदले दिन फिर रंग बदलेंगे
दिन पे जो इठलाओगे तुम
कितने दिन तक झूठ बोलकर
दुनिया को भरमाओगे तुम
भूले जो एहसान किसी का
तो बेहद पछताओगे तुम
लिख तो डाला लेकिन कैसे
‘हरि’ को ख़त पहुँचाओगे तुम
अपनों की जब शह पायेगा
अपनों की जब शह पायेगा
गै़र तभी कुछ कह पायेगा
आँखों में जो नहीं समाया
दिल में कैसे रह पायेगा
महल ख़्वाब का चाल समय की
आख़िर कब तक सह पायेगा
नाव रोक दे तू लहरों के
साथ कहाँ तक बह पायेगा
जगहें भरना अलग बात है
किसकी कौन जगह पायेगा
दिल से दिल का तार मिलेगा
दिल से दिल का तार मिलेगा
तभी प्रेम का सार मिलेगा
सीधे सादे को कलियुग में
उल्टा ही व्यवहार मिलेगा
क़िस्मत से ही अपने घर सा
बेटी को परिवार मिलेगा
सच्चा है गर तो भूखा ही
इस युग में फ़नकार मिलेगा
अगर सियासत यही रही तो
हर क़ाबिल बेकार मिलेगा
नेकी करके यह मत सोचो
बदले में उपकार मिलेगा
चलो पुलिस से रामलला का
पूछें कब दीदार मिलेगा
बड़ा कठिन है यारी करना
बड़ा कठिन है यारी करना
सबसे दुनियादारी करना
रिश्वत लेने का मतलब है
रोज़ी से ग़द्दारी करना
सरल नहीं है कठिन समय में
बातें प्यारी-प्यारी करना
आसानी से नामुमकिन है
जीवन को मेयारी करना
सबके बस की बात नहीं है
गु़र्बत में ख़ुद्दारी करना
कमी बड़ों की साबित करता
बच्चांे का मक्कारी करना
मुमकिन है कुछ देर लगे, पर
फलता है बेगारी करना
रिश्ते बिगड़ जायेंगे घर में
वादा मत सरकारी करना
गाँधी बनकर बेहद मुश्किल
इस युग में सरदारी करना
धरती जब पथराव करेगी
धरती जब पथराव करेगी
आसमान में घाव करेगी
झगड़ा साक़ी-मैक़श का है
मय क्यों बीच-बचाव करेगी
हम तुम जुड़ना चाहेंगे तो
दुनिया क्या अलगाव करेगी
घर से भूखी दुआ गयी है
कैसे दवा प्रभाव करेगी
बात-बात में शक की आदत
रिश्तों मंे उलझाव करेगी
बेटा प्यार करेगा घर से
तब ही बहू लगाव करेगी
जो ख़ुद बच्ची है वो कैसे
बच्चे का बहलाव करेगी
अश्क पीजिए वर्ना ग़ुर्बत
पैदा और तनाव करेगी
रिश्ता निर्धन और धनी में
रिश्ता निर्धन और धनी में
कैसे होगा तनातनी में
जाने कैसे लोग पुराने
जीते थे कम आमदनी में
देखो कब तक इस दहेज से
दुल्हन मरेंगी आगज़नी में
दौलत कितनी भी हो लेकिन
बड़ी आह है महाजनी में
वह क्या रहबर होगा जिसका
बचपन गुज़रा राहज़नी में
ख़ुद को लूटो तब हम समझें
माहिर हो तुम नक़बज़नी में
एक अजब सा सुख मिलता है
अपने घर की बालकनी में
काँटे ही मत देखो उसमें
गुण भी कुछ हैं नागफनी में
अभी जाइये मत महफ़िल से
अभी जाइये मत महफ़िल से
महफ़िल सजती है मुश्किल से
क़ुदरत सबका नहीं सजाती
गोरा मुखड़ा काले तिल से
जब निकलेगा विष निकलेगा
अमृत नहीं निकलता बिल से
जीवन धीमा हो जायेगा
करें दोस्ती मत क़ाहिल से
खेल नहीं है उसे ढूँढ़ना
कस्तूरी को ढूँढ़े दिल से
कुछ तो मेरा साथ दीजिए
लौट आइयेगा साहिल से
पैर बड़ों के छूकर निकलें
हाथ मिलेंगे ख़ुद मंज़िल से
एक ही पीड़ा हर लब की है
एक ही पीड़ा हर लब की है
सारी दुनिया मतलब की है
अपना तो बस नेक इरादा
आगे मर्ज़ी उस रब की है
आज ख़ुदा बस रोटी दे दे
दाल बची कुछ कल शब की है
हम क्यों मानें उर्दू भाषा
केवल मुस्लिम मज़हब की है
तिलक लगाओ चाहे चूमो
मिट्टी पावन मकतब की है
दरवाज़ा क्या जाने घर में
किसकी आमद जब-तब की है
चाँद भले है आसमान का
खिली चाँदनी हम सब की है
काँटों से मुँह मोड़ रहे हो
काँटों से मुँह मोड़ रहे हो
क्यों गुल का दिल तोड़ रहे हो
सच्चाई है तुम्हें पता जब
तब क्यों उसे झिंझोड़ रहे हो
कहते हो तक़दीर बुरी है
बैठे बंजर गोड़ रहे हो
ख़ुश्बू होती तो ख़ुद आती
नाहक़ फूल मरोड़ रहे हो
अश्क नहीं गिरते हैं यूँ ही
बेजा पलक निचोड़ रहे हो
किस जानिब का दिल रखने को
बाक़ी सिम्तें छोड़ रहे हो
‘हरि’ से नज़र बचाकर आख़िर
किससे नाता जोड़ रहे हो
बात किसी ने ख़ूब कही है
बात किसी ने ख़ूब कही है
उसके घर भी एक बही है
दुनिया बदल गयी है लेकिन
वहाँ आज भी बात वही है
स्वर्ग देखना है तो मरिये
क़ुदरत का दस्तूर यही है
गाँव देखकर लगा नगर में
सपना काहे दूध-दही है
काश समझ लें बच्चे ख़ुद ही
माँ उनसे क्या माँग रही है
तुमको मेरी चाह नहीं
तुमको मेरी चाह नहीं
तो क्या कहीं पनाह नहीं
किस पुस्तक में लिक्खा है
मुफ़लिस का अल्लाह नहीं
वक़्त सिखाता सिर्फ़ सबक़
देता कभी सलाह नहीं
उतरे पानी में क्यों जब
गहराई की थाह नहीं
परेशान हो सकता है
सच्चा कभी तबाह नहीं
कुर्सी औरों को दो जब
दे सकते तनख़्वाह नहीं
करना ही है असर उसे
बेजा जाती आह नहीं
भटका शायद मैं ही था
मुश्किल कोई राह नहीं
मक्खी पड़ी मलाई में
मक्खी पड़ी मलाई में
हैं दोनों कठिनाई में
बहुत फ़ासला ठीक नहीं
शादी और सगाई में
दिल में थी वो सदा मगर
ग़ज़ल हुई तन्हाई में
नहीं मिलेगा क्यों मोती
जाओ तो गहराई में
कैसे उसको आग कहूँ
जो है दियासलाई में
कहें ग़ैर को क्या अपने
जब मेरी रुसवाई में
घर में ख़ुश सब कैसे हों
आख़िर एक कमाई में
हे प्रभु! जिसको बेटी दो
हे प्रभु! जिसको बेटी दो
उसके घर में धन भी दो
ख़ुदा सभी की सुनता है
तुम भी अपनी अर्ज़ी दो
मदद करो या नहीं मगर
राय हमेशा अच्छी दो
जान हँसी की चीज़ नहीं
ख़बर कभी मत झूठी दो
ये भी कोई सौदा है
आसमान लो धरती दो
बच्चे तो स्कूल गये
बच्चे तो स्कूल गये
घर से कहाँ उसूल गये
आज सभी पर हँसते हो
अपना कल तुम भूल गये
आख़िर क्या है उसमें जो
तुम बहुतों से फूल गये
अब लगता है बिना वजह
वो फाँसी पर झूल गये
सिर्फ़ तुम्हारी दावत थी
घर भर वहाँ फ़ुज़ूल गये
स्वागत हुआ अमीरों का
रौंदे मुफ़लिस फूल गये
उसके ऊपर मरते हैं
उसके ऊपर मरते हैं
आप और क्या करते हैं
करते हैं जब भूल बड़े
बच्चे आहें भरते हैं
कब तक कोई राह तके
जब वो रोज़ मुकरते हैं
अक्सर तेज़ हवाओं में
हल्के दर्द उभरते हैं
शायद वो ये भूल गये
सबके ग्राफ़ उतरते हैं
जहाँ दिखावा होता है
रिश्ते वहीं बिखरते हैं
गै़र नसीहत देते हैं
अपने तभी सुधरते हैं
क्या अनमोल जवानी है
जब दिल में वीरानी है
कल तक थी जो उनकी अब
मेरी राम कहानी है
शायद तुमने ठीक कहा
दुनिया बड़ी सयानी है
ख़ामोशी अब ठीक नहीं
सर के ऊपर पानी है
ख़ुश्बू ली गुल फेंक दिया
ये तो बेईमानी है
नेकी कर दरिया में डाल
इसमें बड़ा मआनी है
उस अनाथ से कौन कहे
बेटा ये नादानी है
बच्चे अपना घर लूटें
ये कैसी मनमानी है
चेहरा उतरेगा ही जब
दिल में बेईमानी है
अच्छा ही है मुझे भरम है
अच्छा ही है मुझे भरम है
ख़तरा सच कहने में कम है
बड़ा कठिन है उसे मिटाना
तले चरागों के जो तम है
देखो औरों को तब कहना
सबसे भारी मेरा ग़म है
पहले कुछ खोने की सोचो
कुछ पाने का यही नियम है
बहका रहा पादरी सबको
मुल्ला भी पंडित के सम है
कैसे करें यक़ीन आजकल
चीज़ क़ीमती लाज-शरम है
कभी-कभी लगता है क़िस्मत
केवल झूठों की हमदम है
नाहक़ नहीं ज़माना कहता
कच्चे धागों में भी दम है
दुश्मन को लाचार क्या करे
दुश्मन को लाचार क्या करे
ज़ंग लगी तलवार क्या करे
नामुमकिन ख़ुश करना सबको
सोच रहा सरदार क्या करे
दिल दुनिया का रक्खे कोई
तो अपना संसार क्या करे
इस क़ुदरत पर बस किसका है
तूफ़ां में पतवार क्या करे
पैरों ने इन्कार कर दिया
पायल अब झन्कार क्या करे
झगड़ा भाई-भाई का है
हल मुंसिफ़, सरकार क्या करे
रोज़-रोज़ ही मरकर नाहक़
एक काम सौ बार क्या करे
ज्यों-ज्यों सूरज निखर रहा है
ज्यों-ज्यों सूरज निखर रहा है
अँधियारे को अखर रहा है
पता नहीं क्यों सच कहकर वो
सच सहने से मुकर रहा है
थक तो गया सपेरा लेकिन
जोश साँप का उतर रहा है
सिर्फ़ एक ही ज़िद से सारे
घर का सपना बिखर रहा है
दुल्हन माला डाल चुकी, पर
दूल्हा उँगली कुतर रहा है
लाज ग़ज़ल की रखने में फिर
दर्द क़लम का उभर रहा है
तड़प रही है प्यासी धरती
अब्र घुमड़कर सँवर रहा है
आयेगी ही वो थकान में
आयेगी ही वो थकान में
जल की रानी थी उड़ान में
आसां होता तो हर कोई
सैर लगाता आसमान में
अक्सर दग़ा वही देते हैं
बसते हैं जो दिल-ओ-जान में
नाहक़ नहीं क़दम महलों के
पड़ते छप्पर के मकान में
खलनायक धन रहा हमेशा
महल-झोपड़ी के मिलान में
रिश्तेदार अमीर आये हैं
मुफ़लिस का घर इम्तहान में
अंधे को रोटी दो भाई
आटा मत दो उसे दान में
कुछ तो लिख लो, नामुमकिन है
रख पाना हर बात ध्यान में
हँसी-ख़ुशी के गीत रहे दिन
हँसी-ख़ुशी के गीत रहे दिन
किसके हरदम मीत रहे दिन
वो क्या सपने देखे जिसके
जैसे-तैसे बीत रहे दिन
रात आख़िरी बतलाएगी
किसके बड़े पुनीत रहे दिन
ओछे गीतों से बेहतर है
बिना गीत-संगीत रहे दिन
पता नहीं क्यों इस जाड़े में
रातों से भी शीत रहे दिन
शब तुम कैसे जीतोगे जब
दीप जलाकर जीत रहे दिन
झूठा है जो यह कहता है
मेरे सभी अजीत रहे दिन
दुःखी भले इन्सान रहेंगे
दुःखी भले इन्सान रहेंगे
जब तक बेईमान रहेंगे
घबराओ मत एक रात ही
बस घर में मेहमान रहेंगे
गाँवों में यूँ नगर बसे तो
कहाँ पेड़-मैदान रहेंगे
थम जायेंगे मगर हमेशा
चर्चा में तूफ़ान रहेंगे
सफ़र रहेगा आसां जब तक
दिल में कुछ अरमान रहेंगे
बेटी सुन्दर नहीं बनेगी
बेटी सुन्दर नहीं बनेगी
केवल पढ़कर नहीं बनेगी
लम्हों में मुद्दत की बिगड़ी
दुनिया बेहतर नहीं बनेगी
शायद सीधी उँगली से अब
बात कहीं पर नहीं बनेगी
साथ निभाना अलग बात है
सड़क-गली घर नहीं बनेगी
बादल चाहे जितना बरसें
नदी समन्दर नहीं बनेगी
या रब कैसे इतनी आई
या रब कैसे इतनी आई
दुनिया में ख़ुदग़र्ज़ी आई
पता नहीं क्यों जयचन्दों को
रास हमेशा दिल्ली आई
रात में तो जाने दो उसको
सारे दिन तो बिजली आई
आज मुझे एहसास हुआ कल
क्यों रस्ते में बिल्ली आई
बँटना सबने माना घर में
लेकिन आड़े खिड़की आई
हर कोई है परेशान तो
ख़बर कहाँ से अच्छी आई
मंज़र दिन का देख रात में
मंज़र दिन का देख रात में
सूरज उलझा ख़यालात में
सिर्फ़ जमीं ही नहीं आज है
आसमान भी मुश्किलात में
देखो मत हर जगह तमाशा
फँस जाओगे वारदात में
शादी है या बरबादी ये
दूल्हा दस में दुल्हन सात में
नाहक़ ही हम उलझन में थे
ग़ज़ल हो गयी बात-बात में
जीवन नीरस हो जाता गर
होते सुख ही सुख हयात में
दब जाते हैं हर सवाल ख़ुद
नोन-तेल के सवालात में
काँटा ही है शख़्स तीसरा
दो लोगों की मुलाक़ात में
कब तक देगा धोखा मुझको
कब तक देगा धोखा मुझको
रोज़ अधूरा सपना मुझको
सुख तूने क्यों दिया मुझे जब
देनी न थी सुविधा मुझको
हिम्मत जीने की देता है
यार तुम्हारा रोज़ा मुझको
राह सत्य की बतलाती हैं
सीता एवं गीता मुझको
काश हमेशा माँ की ममता
मिले बाप का साया मुझको
ख़ुदा उन्हें दे जीवन वर्ना
कौन कहेगा बेटा मुझको
जब से ज़िम्मेदारी आई
लगता सब कुछ अच्छा मुझको
मुझे रूलाया ख़ुद भी रोया
तब जाकर वह समझा मुझको
ज़ख़्म किसी का हरा मत करें
ज़ख़्म किसी का हरा मत करें
रोज़ वही माजरा मत करें
सबसे अमृत की ख़्वाहिश में
जीवन को विषभरा मत करें
बीते कल की हर घटना को
यादों में छरहरा मत करें
घड़ा घुटन से मर जायेगा
पानी मुँह तक भरा मत करें
करके फेरबदल नुक़्ते़ में
पेश तर्क दूसरा मत करें
खरा बोलिये लेकिन अपने
लहजे को तो खरा मत करें
रब से डरिये लेकिन उसके
इम्तहान से डरा मत करें
ख़ुदा एक है रोज़ भरम में
नया-नया आसरा मत करें
मुश्किल है मरहला आपका
मुश्किल है मरहला आपका
करे ईश्वर भला आपका
ईद आने दें तब देखेंगे
नफ़रत का फ़ैसला आपका
किसको ग़रज़ पड़ी है देखे
किससे क्यों सिलसिला आपका
कैसे कोई यक़ीं करेगा
गला छाछ से जला आपका
शायद ग़लत गवाही देकर
बैठ गया है गला आपका
औरों के चक्कर में शायद
पिछड़ रहा क़ाफ़िला आपका
आप कहाँ हैं ‘अनवर’ साहब
बदल गया अब ज़िला आपका
बड़े-बड़े बेकार हो गये
बड़े-बड़े बेकार हो गये
होनी में लाचार हो गये
मुसीबतों में साथी मेरे
घर के कुछ उपकार हो गये
ऐसा क्या कर बैठे जो तुम
मरने को तैयार हो गये
फूलों की आपसी कलह में
काँटे भी दमदार हो गये
ज़ख़्म कौन अब किसका पोंछें
दामन-दामन ख़ार हो गये
रौनक़ आई तब महफ़िल में
ख़ाली जब बाज़ार हो गये
क़लम हाथ में लेते दिल के
ज़ाहिर ख़ुद उद्गार हो गये
रूप सजाकर रखना मुश्किल
रूप सजाकर रखना मुश्किल
लाज बचाकर रखना मुश्किल
मछली को दरिया के अन्दर
महल बनाकर रखना मुश्किल
दरवाज़ा है टूटा घर का
राज़ बचाकर रखना मुश्किल
शम्अ देखो परवानों पर
रोक लगाकर रखना मुश्किल
ज़ुल्म छोड़ दो बहुत दिनों तक
आह दबाकर रखना मुश्किल
नामुमकिन तो नहीं भले ही
जाम उठाकर रखना मुश्किल
धूप आ गयी अब सूरज से
आँख मिलाकर रखना मुश्किल
घर में सब सामान हो गया
घर में सब सामान हो गया
तो क्या सब आसान हो गया
चारों धाम बचे तो कैसे
पूरा हर अरमान हो गया
पेड़ कटा है चबूतरे का
आँगन क्यों वीरान हो गया
मेरी मेहनत गयी नशे में
आज दान नुक़सान हो गया
चावल कितना महकेगा जब
एक माह में धान हो गया
नादानी की और किसी ने
दिल मेरा नादान हो गया
आख़िर किसने कहा आपसे
वापस मेरा बान हो गया
बस में होता तो हर इन्सां
बस में होता तो हर इन्सां
होता सबसे सुन्दर इन्सां
सब कुछ घर में ही मिल जाता
तो क्या करता बाहर इन्सां
दौर-ए-हाज़िर में मिलता है
मतलब में ही हँसकर इन्सां
गिरने से वो घबराता तो
चलता ही क्यों उड़कर इन्सां
जाने कब से ढूँढ़ रहा है
झूठ-ओ-सच का अन्तर इन्सां
ख़ुद यह कहना ठीक नहीं है
हम हैं तुमसे बेहतर इन्सां
सब करने में अक्सर खोता
कुछ करने का अवसर इन्सां
दिल से कोशिश करे अगर तो
जी सकता है मरकर इन्सां
हक़ पर चलकर दुःख होता है
हक़ पर चलकर दुःख होता है
सच में अक्सर दुःख होता है
जंगल की तहज़ीब देखकर
घर के अन्दर दुःख होता है
ग़ैरत जो खा जाये ऐसे
सुख से बेहतर दुःख होता है
सब जायज़ है जहाँ वहाँ भी
हद के बाहर दुःख होता है
कितना दुःखद है सुख से मेरे
भाई के घर दुःख होता है
दिल को हम दें लाख तसल्ली
मगर हार पर दुःख होता है
कौन ख़ुशी से गया वहाँ तक
दूर जहाँ हर दुःख होता है
दूर रक्खे ख़ुदा ज़लालत से
दूर रक्खे ख़ुदा ज़लालत से
चाहे कम ही नवाजे़ दौलत से
छोड़िये वो भी कोई रौनक़ है
लोग देखें जिसे हिक़ारत से
और कुछ दीजिए भिखारी को
पेट भरता नहीं नसीहत से
ज़िंदगी लौटती नहीं जा के
इसको रक्खो बड़ी हिफ़ाज़त से
कुछ बड़े आदमी इसी से हैं
क्योंकि हैं दूर आदमीयत से
एक के बल पे सिर्फ़ चलता है
बढ़ता है घर सभी की मेहनत से
आदमी यूँ बड़ा नहीं होता
होता है ये बड़ों की सोहबत से
जो नहीं है उसी की चाहत है
जो नहीं है उसी की चाहत है
नाम शायद इसी का फ़ितरत है
जैसी नीयत है वैसी बरकत है
ये कहावत नहीं हक़ीक़त है
हाथ ख़ाली है दिल में गै़रत है
ये तो मुझपे ख़ुदा की रहमत है
हम परेशान तो रहेंगे ही
हम अमल जब ख़िलाफ़-ए-क़ुदरत है
दिल से माँ-बाप की दुआ ले लो
ज़िंदगी की इसी में राहत है
आदमी को है डर आदमी का
आदमी को है डर आदमी का
कैसे होगा गुज़र आदमी का
अस्ल में वो किसी का नहीं है
आदमी जो है हर आदमी का
साफ़ नीयत नहीं है अगर तो
बेजा हर फ़न, हुनर आदमी का
और कोशिश करो खुलते-खुलते
खुलता है पूरा पर आदमी का
भूख से कम नहीं जानलेवा
ज़िल्लतों में बसर आदमी का
ग़ैर मुमकिन किसी के हुनर से
होना अपना असर आदमी का
रोक सकती नहीं कोई मुश्किल
हक़ पे गर है सफ़र आदमी का
न सही आज तो कल मिलेगा
न सही आज तो कल मिलेगा
मीठा ही सब्र का फल मिलेगा
वक़्त के मत सवालों में उलझो
वक़्त पे उनका ख़ुद हल मिलेगा
क्या अजब है ये दस्तूर-ए-क़ुदरत
साँप से लड़ के संदल मिलेगा
सोचिए वरना जल की जगह पर
गंगा-यमुना से काजल मिलेगा
यूँ ही जंगल मंे बस्ती बसी तो
बस्ती-बस्ती में जंगल मिलेगा
अपनों के ही सहारे से घर में
बाहरी लोगों को बल मिलेगा
भूल जाओ कि मिस्ल-ए-पयम्बर
आदमी अब मुकम्मल मिलेगा
सुनते-सुनते झूठ जब बेबस हुआ
सुनते-सुनते झूठ जब बेबस हुआ
तब उसे सच कहने का साहस हुआ
लम्स उसका क्या करे जाने ख़ुदा
मैं जिसे बस देखकर पारस हुआ
सारी दुनिया उसके बस में हो गयी
जब से उसका अपने दिल पे बस हुआ
इस क़दर वो पुरकशिश आवाज़ थी
कि मुख़ातिब मैं उधर बरबस हुआ
आज अपने ही बुरे एख़लाक़ से
आख़िरश वो आदमी बेकस हुआ
फ़िक्र करते हम अगर नुक़सान की
फ़िक्र करते हम अगर नुक़सान की
तो दिशा चुनते नहीं ईमान की
ज़िंदगी अपनी हमें अच्छी लगी
मौत भी देना ख़ुदा सम्मान की
छुप नहीं सकतीं सदा, ये और है
दब गयीं बातें अभी शैतान की
ग़लतियाँ जब आपने कीं ही नहीं
तो क़सम क्यों खा रहे भगवान की
ठीक ही शायद बुज़ुर्गों ने कहा
दोस्ती अच्छी नहीं नादान की
देखता ख़ुद को नहीं है आदमी
ढूँढता है बस कमी इन्सान की
शख़्स मैं आदी ज़लालत का नहीं
शख़्स मैं आदी ज़लालत का नहीं
दौर ये वरना शराफ़त का नहीं
लाख कुछ हो, है नहीं तहज़ीब तो
पास उसके कुछ विरासत का नहीं
चाहता मैं ही नहीं तन्हा उसे
कौन ख़्वाहिशमंद शोहरत का नहीं
बेचकर ख़ूँ पेट भरके कुछ करो
भीख का धन्धा तो इज़्ज़त का नहीं
हुस्न दौलत के बिना बेकार है
हक़ ग़रीबों को नज़ाकत का नहीं
एक आप ही दुःखी नहीं हैं जीवन में
एक आप ही दुःखी नहीं हैं जीवन में
कम-ओ-बेश हर शख़्स आज है उलझन में
आज नहीं तो कल देंगे दुःख औरों को
बिला वजह के फूल खिले गर उपवन में
कमरे में तो सबका आना मुश्किल है
चलो साथ सब खाना खाएँ आँगन में
गंगा जल से हाथ मिला तब पता चला
सोना कितना था सोने के कंगन में
तन्हा जीवन जीने वाले क्या जानें
कितना सुख है घर-बच्चों की अनबन मंे
अजब बात है छप्पर ख़तरे में जिसका
खेत उसी के नाच रहे हैं सावन में
‘हरि’ चरणों में आज मुझे ही जाना है
हर गुल ये ही सोच रहा है गुलशन में
दिन-ब-दिन दूरी बढ़ा के सादगी से आदमी
दिन-ब-दिन दूरी बढ़ा के सादगी से आदमी
दूर होता जा रहा है आदमी से आदमी
जीना-मरना है ख़ुदा जब सिर्फ़ तेरे हाथ, तो
ख़ुद ही कैसे मर रहा है ख़ुदकुशी से आदमी
रंग पल-पल में बदलकर, कर रहा है ख़ुद ही साफ़
मिल रहा है गिरगिटों की ज़िंदगी से आदमी
कशमकश में है गरानी में भरे वो पेट घर का
या करे ख़ुश देवता को शुद्ध घी से आदमी
राज वो कर पाएगा कैसे शराफ़त से कि जब
ताज हासिल कर रहा है सरकशी से आदमी
जानता है ये तरीक़ा सिर्फ़ धोखा है मगर
दूर करता है ग़मों को मयक़शी से आदमी
क़ैद शीशे के मकां में करके शायद ख़ौफ से
भेद जल का चाहता है जलपरी से आदमी
आप और हम क्या मिलें ये सिलसिला अच्छा नहीं
आप और हम क्या मिलें ये सिलसिला अच्छा नहीं
फोन पर ही तय करें हर मसअला अच्छा नहीं
गुफ़्तगू से दूर कर लें दूरियाँ मिल-बैठ कर
ज़िंदगी में देर तक कोई गिला अच्छा नहीं
साफ गोई ज़िंदगी में है बहुत अच्छी मगर
याद रक्खें हर किसी से दिल खुला अच्छा नहीं
आपको अच्छा लगे चाहे बुरा है सच यही
आपका सिक्का चला, पर था ढला अच्छा नहीं
कर भला तो हो भला की नीति पर चलिए मगर
अजनबी को घर में देना दाख़िला अच्छा नहीं
माना उसकी हक़ बयानी दिल में चुभती मगर
आईने को तोड़ने का फ़ैसला अच्छा नहीं
शोर करते गन्दगी भी रोज़ घर में वो मगर
तोड़ देना पंक्षियों का घोंसला अच्छा नहीं
क्या मुनासिब है बुराई माना कि इस दौर में
दुनिया देती है भलाई का सिला अच्छा नहीं
अब सहा जाता नहीं पर कौन मुंसिफ़ से कहे
रोज़ कल पर टाल देना फ़ैसला अच्छा नहीं