शकुन्त माथुर की रचनाएँ
दोपहरी गरमी की दोपहरी में तपे हुए नभ के नीचे काली सड़कें तारकोल की अँगारे-सी जली पड़ी थीं छाँह जली थी पेड़ों की भी पत्ते… Read More »शकुन्त माथुर की रचनाएँ
दोपहरी गरमी की दोपहरी में तपे हुए नभ के नीचे काली सड़कें तारकोल की अँगारे-सी जली पड़ी थीं छाँह जली थी पेड़ों की भी पत्ते… Read More »शकुन्त माथुर की रचनाएँ