घाघ की रचनाएँ
दोहे सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर। परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर॥1॥ शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों… Read More »घाघ की रचनाएँ
दोहे सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर। परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर॥1॥ शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों… Read More »घाघ की रचनाएँ