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अनीता मिश्रा सिद्धि की रचनाएँ

बहुत कुछ कहना है 

वो पल हमे दो ना
बहुत कुछ कहना है
सुनोगे मेरी बात
या हँसी उड़ाओगे मेरी
पागल तो नहीँ कहोगे।

सुनो ना जानती हूँ
व्यस्त हो
बहुत काम है तुम्हे
फिर भी भीगना चाहती हूँ
वो पहली बारिश में
मौन अहसासों के बीच
तुम्हारे साथ।

साझा करना चाहती हूँ
सारे दर्द जो तुम
बताते नहीँ लेकिन
मैं ढूढं लेती हूँ
गहरी ख़ामोश-सी आँखों में

वो पल हमें दो ना।

बहुत छली हूँ 

बहुत छली हूँ,
अब नहीं छलना।
ऐ! मेरे मन,
अब नहीं डरना।

संत्रासों के घेरे में
रिश्तों के अंधेरों में
संदेहों के डेरे में
स्वार्थों के फेरे में
बहुत जिया है,
अब तक डर कर।
अब आगे न जीना।
ऐ! मेरे मन
अब नहीं डरना।

तिल-तिल जलना
राख-सा बिखरना
भरे नाक में जब धुआँ सा
साँस-साँस को फिर तरसना
पोर-पोर हर दर्द को सहना
बहुत सहा है,
अब नहीं सहना।
ऐ! मेरे मन
अब, नहीं डरना॥

आशा की जंजीरों में
किस्मत लिखी लकीरों मे
न जिन्दा, न मुर्दा सी
दिखती इन तस्वीरों में।
रोज भाग्य के घने थपेड़े
बहुत अधिक उलझी हूँ मैं।
अब नहीं और उलझना।
ऐ! मेरे मन
अब नहीं डरना।

मुहब्बत की तू अब कहानी बदल दे

मुहब्बत की तू अब कहानी बदल दे
अगर हो सके तो निशानी बदल दे।

सदा वक़्त कब एक जैसा रहा है
मिला वक़्त तो हुक्मरानी बदल दे

नहीं काम आये जो अपने वतन के
वो कमज़र्फ अब तो जवानी बदल दे।

हमें आपसे अब शिकायत नहीं है,
मगर शर्त आदत पुरानी बदल दे।

तरसती जमीं एक कतरा को अब तो
बचा जल ज़रा जिंदगानी बदल दे।

जो किस्मत में लिख्खी जुदाई ये तेरी
अनिता तो अब हर निशानी बदल दे

आप अपना ग़म छिपाना सीखिये

आप अपना ग़म छिपाना सीखिये।
सोच कर रिश्ता बनाना सीखिए.

मार डालेगी सियासत ये तुम्हें
अब तो इससे बाज आना सीखिए.

ज़ख्म भी हँसने लगेंगे कर यकीं
दर्द में बस मुस्कराना सीखिये

लोग शातिर हैं उड़ाएँगे हँसी
राज अपने भी छिपाना सीखिए.

आदमी मर जायेगा घुटकर यहाँ,
गीत कोई गुनगुनाना सीखिए.

इश्क़ में बाजी अनीता हारती,
आप पहले दिल लगाना सीखिए.

कहाँ हूँ माँ 

अम्मा तेरी आंचल मे,
या बाबा के गोद मे,
आयी तो तेरी ही मर्जी से माँ
तूने जन्म दिया, अपने ही प्रतिरुप को,
पर ये दुख कैसा सभी के चेहरेपे,
किसी ने खुशी ना मनायी?
बेटी जन्मी इसलिये
सब सोच में है बिना दहेज,
इसकी शादी कैसे होगी।
अभी तो दुनिया भी नहीं देखा,
पर ये अवसाद अभी से,
तु तो जननी है, तेरा आंचल तो मेरा है।
भाई का हिस्सा
हमे मत देना,
कुछ भी खा लूँगी।
देख माँ मैं भी पढूगीं, डाo बनुगीं,
मै दूसरो को पढ़ा कर, पढ़ लूँगी
तु मुझे अपना तो मां,
तेरे साये में पलना चाहतीं हूँ
तेरे आंचल मे, या बाबा के गोद में खेलना चाहती हूँ।
मां तु जो बीमार रह्ती है,
दिन भर पिसती है घर में काम केबोझ से,
तेरी देख-भाल कर, दवा करुन्गीं मां!
मै सबको मना लुन्गी, तुम मेरा साथ तो दो माँ।

तुम नहीं सुधरोगे 

सोचा आज अपने दिल
की कह ही डालूँ
तंग आ गयी हूँ
रोज-रोज के
खीच-खीच से
तुम हो कि मानते नहीँ
मैं हूँ कि उलझ ही जाती हूँ तुमसे,

घर को बस कबाड़
खाना बना डालते हो
जूते कहीं, चप्पल उल्टी
मेज पर चाय के कप
अखबार के
पन्ने बिखरे
क्यों करते हो ऐसा तुम?
छोड़कर चले जाते हो
ऑफिस
मैं दिन भर पिसती हूँ,
तौलिया, कपड़े तमाम
चीज करीने
से रखती हूँ
तुम आओगे थके तो
सब सही मिलेगा तुम्हे।
पर क्या मेरे बारे में सोचते हो?
मैं कब खुश रहूँगी
नहीं ना जानती हूँ
तुम कभी नहीं सुधरोगे,
आखिर थक हार कर
नये सिरे से फिर कुछ सोचने लगती हूँ।

मुझे नाम की अब ज़रूरत नहीं है

मुझे नाम की अब ज़रूरत नहीं है
किसी से कोई भी शिकायत नहीं है

खरीदूँ में सम्मान पैसे के बूते
कलम को ये बिल्कुल इजाजत नहीं है

करूँ वंदना शारदे मातु हरदम
बगैर आपके कोई ताक़त नहीं है

लगा बोलियाँ बिक रहा इल्म देखो
बची कोई इसकी वसीयत नहीं है

ग़ज़ल भी कहूँ छंद भी गुनगुनाऊँ
इनायत मिली और चाहत नहीं है

अगर हो सके बाँट ले दर्द सबके
बड़ी कोई इससे ज़ियारत नहीं है

चुभे हैं जो ख़ंजर निकालो न सिद्धि
हमे राहतों की भी आदत नहीं है

किन्नर

वाह रे प्रभु तेरी माया।
माँ-कोख भी
शर्मिंदा किया
जन्म देकर हमे।
किसी ने ना बधाई दी,
ना किसी ने देखा,
एक घृणा की नजर
ही बनी मेरी ये जिंदगी।

त्रिशंकु बन अधर में
लटका रहा
ले गये उठाकर
अपने जाति में मुझे
अपनों से दूर हुए.

ताली बजाना
स्वांग रचना
जीवन यापन
के लिए पैसे कमाना
ये ही रही बन्दगी मेरी।

नर ना नारी कैसा
अभिशप्त ये जीवन
जी करता
भगवन तेरी कृपा
पर भी ताली बजाऊँ
अपने मन के दुखों की
प्यास बुझाऊँ।

माँगता हूँ अब अधिकार अपना
जीवन-जीने का सपना
हमे भी इज्जत की रोटी
है कहानी,
मेहनत कर सबको दिखानी।

अब नहीं होता हास्य-ड्रामा,
आता है आँखों में पानी
हम देते सबको आशिष,
तब हमें मिलता बख्शीश।

ये जीवन है तो हमे भी सम्मान मिले,
एक नया जीवन का आसमान मिले
सबके साथ हमे भी रहने का अरमान मिले।
कोई तो हाथ बढ़ाओ,
कोई तो हमे उठाओ

एक नई आवाज दो,
हमे भी हमारा समाज दो।
हमे भी हमारा समाज दो।

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