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Aneeta-kapoor.JPG

नहीं चाहिए

अब
तुम्हारे झूठे आश्वासन
मेरे घर के आँगन में फूल नहीं खिला सकते
चाँद नहीं उगा सकते
मेरे घर की दीवार की ईंट भी नहीं बन सकते
अब
तुम्हारे वो सपने
मुझे सतरंगी इंद्रधनुष नहीं दिखा सकते
जिसका न शुरू मालूम है न कोई अंत
अब
तुम मुझे काँच के बुत की तरह
अपने अंदर सजाकर तोड़ नहीं सकते
मैंने तुम्हारे अंदर के अँधेरों को
सूँघ लिया है
टटोल लिया है
उस सच को भी
अपनी सार्थकता को
अपने निजत्व को भी
जान लिया है अपने अर्थों को भी
मुझे पता है अब तुम नहीं लौटोगे
मुझे इस रूप में नहीं सहोगे
तुम्हें तो आदत है
सदियों से चीर हरण करने की
अग्नि परीक्षा लेते रहने की
खूँटे से बँधी मेमनी अब मैं नहीं
बहुत दिखा दिया तुमने
और देख लिया मैंने
मेरे हिस्से के सूरज को
अपनी हथेलियों की ओट से
छुपाए रखा तुमने
मैं तुम्हारे अहं के लाक्षागृह में
खंडित इतिहास की कोई मूर्त्ति नहीं हूँ
नहीं चाहिए मुझे अपनी आँखों पर
तुम्हारा चश्मा
अब मैं अपना कोई छोर तुम्हें नहीं पकड़ाऊँगी
मैंने भी अब
सीख लिया है
शिव के धनुष को
तोड़ना

उम्र को कैद करना चाहती हूँ 

घरौंदा कैसे बनता है
यह तो मुझे बचपन से ही मालूम था
पर रूप अलग था
बचपन में घरौंदा रेत से बनाया
अगर टूटा, बिखरा
फिर समेटा, फिर बनाया
कोई दुख न था…..
जवानी में घरौंदा प्रेम का बनाया
परिवार और बच्चों से बसाया
घरौंदे का रूप बढ़ाया
यह भी रूठा, यह भी बिखरा
पर संस्कार की कड़ियों से
फिर-फिर जोड़ा
कोई मलाल न था……
अब एक घरौंदा बुढ़ापे का भी होगा
सहमी हूँ, सोच में हूँ
न्यूक्लियर परिवारों का चलन
पता नहीं घरौंदे का रूप क्या होगा?
इसीलिए
कुछ स्वार्थी हूँ
मैं,
उम्र को कैद कर लेना चाहती हूँ…

हम दोनों मौन हैं 

हम दोनों मौन हैं
बस इतना याद है
दो हथेलियों का साथ है
एक हथेली मेरी और
एक तुम्हारी है
हम दोनों मौन हैं
चाँद मेरी तरह पिघल रहा है
नींद में जैसे फिर चल रहा है
मेरी खुली आँखों में ख़्वाब हैं
तेरी खुली आँखों में अलाव है
मगर हम दोनों फिर भी मौन हैं

चाँद-सी रातें

औरत जब बच्ची थी
चाँद के अक्स को थाली में देख
रोटी समझ कर खाने को मचलती रही

बच्ची जब जवान हुई
चाँद को देख सँजोने लगी सपने
भावनाएँ मचलने लगीं
कभी चाँद को माथे का टीका बनाती
तो कभी चेहरे को देखती
कहीं दाग तो नहीं
चाँद जैसा साजन ढूँढती
साजन मिला
कभी वो साजन को चाँद बोलती
कभी साजन लड़की को चाँद-सा बोलता

लड़की जब माँ बनी
चाँद को चंदा मामा बताकर
बच्चे को लोरियाँ सुनाती
दुलारती चाँद-सा

बच्चे बड़े होते रहे
माँ औरत होने का एहसास भूलती गयी
सिर्फ माँ हो गयी
चाँद को देखना भूल सी गयी
कभी याद आता भी, झाँकती तो पाती
काली रातें
निगल गयी अजगर-सी
उसके होने को
निगल गयी हैं सारे सपने
चाँद-सी रातें।

बेनाम राहें

कभी तो गुजरा कीजिए
मेरी जिंदगी की बेनाम राहों से
इन्हे भी ताकि
कोई एक नाम मिल सके

बेशर्म 

कितना बेशर्म सा
नंगा सा
यह वक़्त
छूते ही फिसल जाता है
एक दिन और आगे
चला जाता है

अटका बादल

मन कहीं नहीं भटका है
ऊपर एक बादल अटका है
जो तुझ को छू कर आया है
मेरे मन के आँगन में बरसा है
चाँद कहीं नहीं भटका है
दिल के आसमाँ में लटका है
तेरे मन को छू कर आया है
मेरे तन के आँगन में चमका है

वक्त का अकबर

नहीं सुन पाती अब
तेरी खामोशियों की दीवारों पर
लिखे शब्द
चुनवा दिया है
मेरे अहसाहों को
वक्त के अकबर ने
नज़रों की ईंटों से
और मैं
एक और अनारकली
बन गयी हूँ मैं

एक डरपोक औरत का प्रश्न 

सृष्टि के विशाल होने से
क्या अंतर पड़ता है
मेरी तो बालकनी है
पूरा विश्व घूमता है
आँख की धुरी तक
हलचल जीवन की
कोलाहल जीवन में
मेरा तो अपना हृदय है
जो घूमता है चक्र की तरह
वहीं घूमना मेरी हलचल है
आवाज़
शोर उस चक्र का
मेरे लिए कोलाहल है
समय जो बहने वाला
नदी की तरह
रूका हुआ है मेरे लिए
चेतना की झनझनाहट
असीम दुख का केंद्र बिन्दु
अँधेरा
निर्जीव विस्तार
निस्त्ब्ध्ता
स्वरहीन
रुकना, विराम नहीं
गति की थकान को मिटाना है
अतीत और भविष्य
वर्तमान के बिन्दु की नोक पर
बिन्दु एक दुख
दुख एक स्थिरता
झटका लगताई है
केमरे के लेंस जैसा
विस्फोट होता है
आकाश में धुआँ ही धुआँ
धुएँ की बाहें
समेटती हैं चिंगारियाँ
चिंगारियाँ रूक गयी है
भरा है उसमे
असंतोष
अतृप्ति
आशंका
एक बिन्दु चमकता है
चमन में उमंग, जीवन में सब कुछ है
भावना है, और है एक
वास्तविकता
प्रश्न चिह्न बन कर

खजुराहो 

आकाश की निरभ्रता में
अपना भव्य शिखर उठाए
तुम एक अट्टालिका जैसे
इन्द्रजाल की तरह
सम्मोहित करते
खुद में
एक
पूरा खजुराहो हो
अजब सी आनंद की
अनुभूति से भर देते हो

आँखों की सड़क

मेरी आँखों की सड़क पर
जब तुम चलकर आते थे
कोलतार मखमली गलीचा बन जाता था
मेरी आँखों की सड़क से जब
तुम्हें वापस जाते देखती थी
वही सड़क रेगिस्तान बन जाती थी
तुम फिर जब-जब वापस नहीं आते थे
रगिस्तान की रेत आँख की किरकिरी बन जाती थी
आँखों ने सपनों से रिश्ता तोड़ लिया था
फिर मुझे नींद नहीं आती थी

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