मुझको रोज़ाना नए ख़्वाब दिखाने वाले
मुझको रोज़ाना नए ख़्वाब दिखाने वाले।
बेवफ़ा कहते हैं तुझको ये ज़माने वाले।
तू सलामत रहे मंज़िल पे पहुंचकर अपनी,
बीच राहों में मुझे छोड़ के जाने वाले।
अब न पहले सी शरारत न शराफ़त ही रही,
रूठने वाले रहे अब न मनाने वाले।
ये नयापन मुझे अच्छा नहीं लगता उनका,
कोई लौटा दे मेरे दोस्त पुराने वाले।
दौरे-हाज़िर में ज़रा रहना ख़याल अपना दोस्त,
गेरने वाले बहुत कम हैं उठाने वाले।
सैंकड़ों दोस्तों से लाख भले वो दुश्मन,
ख़ामियां मेरी मिरे सामने लाने वाले।
चाहे दौलत न हो पर प्यार बड़ा होता है,
होते हैं दिल के बहुत अच्छे ‘मवाने’ वाले।
ढूंढती है तुम्हें इस दौर की हर इक औरत,
हो कहां, द्रौपदी की लाज बचाने वाले।
हम बताएंगे तुझे प्यार किसे कहते हैं,
तू कभी सामने आ ख़्वाब में आने वाले।
हर दिन हो महब्बत का हर रात महब्बत की
हर दिन हो महब्बत का हर रात महब्बत की,
ताउम्र ख़ुदाया हो बरसात महब्बत की।
नफ़रत के सिवा जिनको कुछ भी न नज़र आए,
क्या जान सकेंगे वो फिर बात महब्बत की।
जीने का सलीक़ा और अंदाज़ सिखाती है,
सौ जीत से बेहतर है इक मात महब्बत की।
ऐ इश्क़ के दुश्मन तुम कितनी भी करो कोशिश,
लेकिन न मिटा पाओगे ज़ात महब्बत की।
ख़ुशबख़्त हो तुम ‘अम्बर’ जो रोग लगा ऐसा,
हर शख़्स नहीं पाता सौग़ात महब्बत की।
तेरा अफ़साना छेड़ कर कोई
तेरा अफ़साना छेड़ कर कोई
आज जागेगा रात भर कोई।
ऐसे वो दिल को तोड़ देता है
दिल न हो जैसे हो समर कोई।
रात होते ही मेरे पहलू में,
टूटकर जाता है बिखर कोई।
चंद लम्हों में तोड़ सब रिश्ते,
दे गया दर्दे-उम्रभर कोई।
इश्क़ करता नहीं हूँ मैं तुमसे,
कह के पछताया उम्रभर कोई।
मैं वफ़ा करके बा-वफ़ा ठहरा,
बेवफ़ा हो गया मगर कोई।
काट कर पेट जोड़े गा पैसे,
तब खरीदेगा एक घर कोई।
तेरे आने की आस में ‘अम्बर’,
देखता होगा रहगुज़र कोई ।
एक ख़्वाहिश है बस ज़माने की
एक ख़्वाहिश है बस ज़माने की।
तेरी आँखों में डूब जाने की।
साथ जब तुम निभा नहीं पाते,
क्या ज़रूरत थी दिल लगाने की।
आज जब आस छोड़ दी मैं ने,
तुम को फ़ुर्सत मिली है आने की।
तेरी हर चाल मैं समझता हूँ,
तुझ को आदत है दिल दुखाने की।
हम तो ख़ाना-ब-दोश हैं लोगों,
हम से मत पूछिए ठिकाने की।
आइना सामने रखा होगा
आइना सामने रखा होगा
उस का चेहरा मगर झुका होगा
कैसे पाला है बेटे को मैं ने
भूल जाएगा जब बड़ा होगा
शाइ’री जाम और तन्हाई
हिज्र की शब में और क्या होगा
एक अर्से से सुनते आए हैं
जल्द ही देश का भला होगा
था न मा’लूम साथ रह कर भी
दरमियान इतना फ़ासला होगा
ये मोहब्बत का खेल है जानाँ
इस की हर चाल में मज़ा होगा
देख हालात मुफ़लिसों के यहाँ
मैं नहीं मानता ख़ुदा होगा
होंगी जिस घर में बेटियाँ यारो
उस का माहौल ख़ुशनुमा होगा
सुब्ह के तीन बज गए ‘अम्बर’
उठ जा ‘राहुल’ भी उठ गया होगा
दीप को आफ़ताब कर डाला
दीप को आफ़ताब कर डाला
आपने क्या जनाब कर डाला।
अपने लब से गिलास को छूकर
तूने पानी शराब कर डाला।
करके रोशन जहाँ को सूरज ने
आसमां बेनक़ाब कर डाला।
दर्द जब उसने जानना चाहा
मैंने चेहरा किताब कर डाला।
बन के बाँदी तुम्हारे चरणों की
मैंने तुमको नवाब कर डाला।
मैंने उस बेवफ़ा के चक्कर में
ज़िन्दगी को ख़राब कर डाला
बिन बताये हमें काम क्या कर दिया
बिन बताये हमें काम क्या कर दिया
दिल लगाना खुदा अब सज़ा कर दिया।
जिंदगी भर करी थी वफ़ा पर वफ़ा
इस वफ़ा ने उसे बेवफ़ा कर दिया।
कुछ न आये नज़र अब तो तेरे सिवा
यूं निग़ाहों ने तेरी नशा कर दिया।
मंज़िलें भी न आई नज़र दूर तक
कैसी राहों में मुझको खड़ा कर दिया।
हम तो इंसान सीधे थे अच्छे भले
पूज कर उसने हमको खुदा कर दिया।
इस जहां से जब उजाले मिट गए
इस जहां से जब उजाले मिट गए,
दोषियों के दोष काले मिट गए।
क्यों जहां में बढ़ रही हैं नफ़रतें,
क्या मोहब्बत करने वाले मिट गए।
ख़ुद थे अपनी जान के दुश्मन हमीं
आस्तीं में साँप पाले मिट गए।
देंगे हम जान इस तिरंगे पर
देंगे हम जान इस तिरंगे पर,
अपना ईमान इस तिरंगे पर।
मेरे तो खून का है हर कतरा,
आज कुरबान इस तिरंगे पर।
राम रहमान और गुरुनानक,
सबका सम्मान इस तिरंगे पर।
हमको विश्वास सबसे बढ़ कर है,
देश की आन इस तिरंगे पर।
मेरा बस एक ख्वाब है अम्बर,
होऊं कुरबान इस तिरंगे पर।
अपनी आंखों को चार कर लेना
अपनी आंखों को चार कर लेना,
कितना मुश्किल है प्यार कर लेना।
एक दिन लौटकर मैं आऊंगा,
हो सके इंतजार कर लेना।
मिलने कुछ देर से पहुंचने पर,
तेरा नख़रे हज़ार कर लेना।
आपने किस से सीखा है जानां,
प्यार में जीत हार कर लेना।
लड़कियों हो सवाले-इज़्ज़त तो,
फूल से ख़ुद को ख़ार कर लेना।
प्यार अब खेल बन चुका ‘अम्बर’
सब पे मत ऐतबार कर लेना।
वो मिरे साथ यूँ रहा जैसे
वो मिरे साथ यूँ रहा जैसे
काटता हो कोई सज़ा जैसे।
साथ तेरा मुझे मिला जैसे
पा लिया कोई देवता जैसे।
आज सर्दी का पहला दिन था लगा
आसमां नीचे आ गया जैसे।
फिरते हैं वो वफ़ा-वफ़ा करते
खो गई हो कहीं वफ़ा जैसे।
ऐसे कहता है जी न पाऊंगा
वो मिरे बिन नहीं रहा जैसे।
काश मैं भी भुला सकूँ उसको
उसने मुझको भुला दिया जैसे।
हम तो बनकर रदीफ़ साथ रहे
और वो बदले क़ाफ़िया जैसे।
हमको यूँ डांटते हैं वो ‘अम्बर’
उनसे होती नहीं ख़ता जैसे।
पीला नीला कि लाल होली में
पीला नीला कि लाल होली में
बरसे रंगे-जमाल होली में।
रंगने को तेरे गाल होली में
भेज देंगे गुलाल होली में।
राधा के पीछे पीछे डोले है
पूरे दिन नंदलाल होली में।
रंग उसको लगा के मानूँगा
आन का है सवाल होली में।
रात दिन सुब्हो-शाम आता है
आपका ही ख़याल होली में।
हो गया जो भी यार होना था
अब न कर तू मलाल होली में।
आज मौक़ा है फिर मिले न मिले
उसको भी रंग डाल होली में।
मन न जाये मचल किसी गुल पे
खुद को ‘अम्बर’ संभाल होली में।