ज़रूरी पत्रों का खोना
कितने हिंसक होते हैं वे जरूरी पत्र
जो गुम हो जाते हैं हाथों में आने से पहले
जिस तरह जरूरी पत्रों का गुमना
कोई आश्चर्य या अद्भुत अर्थ नहीं रखता
उसी तरह हमारी यंत्रणा भी कोई मायने नहीं रखती उनके लिए
सिर्फ चन्द जरूरी पत्र ही गुम नहीं हो जाते हमारे जीवन से
कुछ दूसरी जरूरी चीजें भी गुम हो जाती हैं
बची रह जाती हैं सड़ांध पैदा करने वाली
इच्छाएँ और उत्तेजनाएँ
रोज कितनी ही विशाल योजनाएँ हमें चकाचौंध करती हैं
सरकारी फरमानों से निकल कर सारी योजनाएँ
गुम हो जाती हैँ आर्थिक संकटों के बीच
गुमने के नाम पर सिर्फ जरूरी पत्र ही नहीं गुमते
हमारे जीवन से हमारे समय से
गुम जाते हैं शब्द
गुम जाते हैं लेटरबाक्स
गुम जाते हैं पेड़
गुम जाते हैं खनिज
गुम जाते हैं पिता
गुम जाते हैं लोगबाग
वे सुन नहीं सकते
वे सुन नहीं सकते
हालाँकि वे सुनना चाहते हैं
पेड़ों और हवाओं के गीत
दरियाओं का संगीत
आबी परिंदों की आवाजें
शहंशाह आलम की कविता
कोशिश करें तो
वे सुन सकते हैं
सुनने की सारी चीजें
इसलिए कि वे बहरे नहीं हैं
हमीं ने उन्हें
बहरा किया हुआ है अन्तकाल से।
काठमांडू मैं गया कलकत्ता मैं घूमा
सबसे अनूठा प्रेम मैंने किया
सबसे अनोखी इच्छा मैंने की
भय को मैंने भगाया
शत्रुओं को चेतावनी मैंने दी
गहरे मौन को स्वर मैंने दिया
तोतों को मैंने पुकारा
अदृश्य को दृश्य मैंने किया
सबसे सुंदर कविता
सबसे सुंदर कोलाज
सबसे सुंदर शरीर
सबसे सुंदर चाकू
सबसे सुंदर जादू
मैंने ही तुम्हें दिया
इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति मैंने की
दर्शकों के बीच सबसे बढ़िया अभिनय मैंने किया
चुम्बन के निशान मैंने छोडे
मृत्यु को जीवन में मैंने बदला
काठमांडू मैं गया
कलकत्ता मैं घूमा
तुम्हारी हठ में मैं रहा
भोर के नभ में मैं रहा
नीले उस शंख में मैं रहा
तुम्हारे प्रेमारम्भ में
तुम्हारी स्मृतियों में
तुम्हारे शब्दों वाक्यों छंदों में
तुम्हारे देवताओं में मैं रहा
नदियों झीलों में
फुटपाथ चायखानों में
स्त्रियों के गीतों में
मैं ही दिखा
खीरा
कितना दिलचस्प रहा होगा
कितना अद्भुत
जब बकरियाँ चराते हुए
किसी चरवाहे ने
पतंग उडाते हुए
किसी पतंगबाज ने
पहली दफ़ा
खाया होगा
स्वदा होगा इसे
और रह गए होंगे
विस्मित
खीरे ने सार्थक किया होगा उन्हें
और उन्होंने खीरे को
ऐसे ही शुरू हुई होगी जन्म-कथा खीरे की
उन्हीं दिनों उन्हीं मनुष्यों में पृथ्वी पर
अपने प्राचीन-अतिप्राचीन रूप में
लाजवाब बना हुआ है खीरा
एक रहस्य की तरह बना हुआ है
अभी भी
जबकि इसे खाने के लिए
किसी अभ्यास
किसी प्रेमारम्भ की ज़रूरत नहीं पड़ती
एक दुनिया-सी बसी हुई है
क्या-क्या नहीं है इसके भीतर
इसके बाहर और अन्दर प्रदूषित कुछ भी नहीं है
न इसके किसी कालखंड में
न इसकी किसी शताब्दी में
जबकि यह समय आपसदारी का
सिद्ध हो रहा है
और यह विचारयोग्य है
विचारयोग्य यह भी है
कि आज उसने खीरा खिलाया
बड़े ही प्रेम से
बड़े ही मनोयोग से
जो गालियाँ खिलाया करता था रोज़
अभी पिछले ही पखवारे माउथ ओर्गन से
और लहरों पर हाथ मारकर
अमर धुनें निकालने वाली लड़की ने
किसी महाशोक में
अन्न-जल का त्याग कर दिया था
तब मैंने उसे हरा-ताज़ा खीरा ही दिया था
इसलिए कि खीरे में अन्न भी है
और जल भी
यह कतई अद्भुत नहीं है
कि खीरा आपको उतना ही प्रिय है
जितना कि मुझे
मैं भी कहूंगा
मैं भी कहूंगा, वंदे मातरम
जैसे कि कहती हैं लता मंगेश्कर
जैसे कि कहते हैं ए.आर. रहमान
किसी गृहमंत्री
किसी सरसंघ चालक
किसी पार्टी अध्यक्ष
के कहने से नहीं कहूंगा मैं
वंदे मातरम!
हत्या के इस समय में
मालूम नहीं किधर से चाकू आया
और कैसे घुसा उसके पेट में
कोई अंधेरे झुरमुट में था छिपा
सूंघ लेता है हत्यारा मुझे भी शायद
चश्मदीद गवाह समझ कर
हत्या और मृत्यु के इस समय में
मैं चाहता हूँ खींच निकालूँ
हत्यारे को झाड़ी के पीछे से
धार्मिक विचारों को लेकर
वो साधु थे और कहाँ-कहाँ से
नहीं आए थे
वो मौलवी थे और न मालूम
कितने धूल-धक्कड़ खाकर इकट्ठे हुए थे
दोनों ने कहा बिल्कुल निरापद
न्यायाधीश की तरह :
धर्मयुद्ध की समप्ति के बाद
हमीं तो बचेंगे
हमीं तो भोगेंगे
तमाम आसाइशें
धर्मयुद्ध में मारे जाएंगे
सारे भक्तगण
तोड़ा गया न जाने क्या-क्या
तोड़ा गया न जाने क्या-क्या
न जाने क्या-क्या पाने के लिए
ईश्वर के जन्मस्थान को पाने के लिए
तोड़े गए बार-बार ईश्वर
और तोड़े जाने की मांगों के साथ
इतिहास को पाने के लिए
इतिहास तोड़ा गया निरंतर
यही होना था
स्त्री को पाने के लिए तोड़ी गई स्त्री
इस पूरे दृश्य-फ़लक पर
प्रजा को पाने के लिए
तोड़ी गई प्रजा
देवताओं का भय दिखाकर
बर्फ़ को पाने के लिए
बर्फ़ तोड़ी गई
पूरी उत्तेजना के साथ
जंगल को पाने के लिए जंगल
पहाड़ को पाने के लिए तोड़े गए पहाड़
पिता को पाने के लिए
तोड़े गए पिता पूरी क्रूरता से
लालटेन, बल्ब, ट्यूबलाइट
मेरा हारमोनियम, मेरा स्वर
सब कुछ को तोड़ा तुमने
सप्तॠषिओं की पीठ पर चढकर
अब तुम पूरी पृथ्वी को पाने के लिए
अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए
कर रहे हो जीवन के अंत की घोषणा
तोड़ रहे हो पक्षियों के पंख
जनतंत्र का शोकगीत
ये बड़ा भारी आयोजन था
उनके द्वारा
भव्य और अंतर्राष्ट्रीय भी
इसलिए कि इस महाआयोजन में
जनतंत्र को हराया जाना था
भारी बहुमत से
मित्रो, निकलो अब इस घर से
अब यहाँ न ‘जन’ है, न ‘जनतंत्र’
सब कुछ बचा रहेगा
सब कुछ बचा रहेगा
तीनों लोक
दसों दिशाएं
ऊपर चिडियाँ
नीचे वनस्पतियाँ
महानंदा और मेघना
छाया और धूप
जिस वृक्ष को काटा जाएगा
वह फिर खड़ा हो जाएगा
जिस स्त्री को शाप दिया जाएगा
वह शापमुक्त हो जाएगी
जो नदी सूख गयी है
वह याद की जाएगी
किसी गाथा
किसी किंवदंती में ।
इस तरह हमारी शक्ल
पैदा होने वाली कोई भी चीज़
एक बार ही पैदा होती है
चाहे वह वृक्ष हो
चाहे वह शब्द हो
चाहे वह चिड़िया हो, चींटी हो
चाहे वह बाघ हो, आदमी हो
चाहे वह ग़ोरकन हो, दर्ज़ी हो
चाहे वह कीड़ा हो
या हो प्रेम
चित्रांकन-हेम ज्योतिका
प्रेम लफ़्ज़ भी एक बार ही पैदा होता है
आख़िरी जंग एक ही बार छेड़ी जाती है
अच्छा विकेट और अच्छा कैच
एक ही बार लिया जाता है
अच्छा संगीत भी बार-बार सुनने को नहीं मिलता
आश्चर्य एक बार ही जन्म लेता है हमारे भीतर
क्रोध भी एक बार ही आता है हमको
अच्छे गणितज्ञ, अच्छे मौसम, अच्छे वैज्ञानिक, अच्छे प्रकाशक
हर दफ़ा पैदा नहीं होते
अच्छी फ़िल्म भी एक बार बन पाती है
हलवाहे की कविता बार-बार लिखी नहीं जाती
किसी का जादू एक बार ही चलता है हम पर
अपनी तरह का दिन गुज़ारना एक बार हाथ लगता है
वाल्दैन हमें एक बार ही मिलते हैं
ख़ूबसूरत अदा बार-बार नहीं हो पाती हमसे
तवील हँसी एक बार ही हँसी जाती है
अच्छा हरीफ़ भी एक बार ही मिलता है
जिस तरह अच्छा हरीफ़ एक बार मिलता है
अच्छी शायरी भी एक बार हो पाती है
उस्ताद शायर, उस्ताद संपादक, उस्ताद तकनीशियन
एक-दो ही हो पाते हैं
हमारे अंदर उमंग भी एक बार ही जनमती है
बारबार-बारबार
पैदा नहीं होती हैं अच्छी चीज़ें
अच्छी प्रजातियाँ
अच्छे इंसान और अच्छे दृश्य
इस तरह हमारी शक्ल भी एक बार ही
बदलती है, और
चमत्कृत होते रहते हैं हम अंत तक.
अगर तुम पूछो
अगर तुम पूछो
कि आदमी को
किस चीज़ से
ज़्यादा खौफ़ खाना चाहिए
शोर से कि सन्नाटे से
मैं कहूँगा शोर से
इसलिए कि
शोर हम दोनों को पसंद नहीं है
अगर तुम पूछो
कि तुम जो कुछ रोज़ हॉस्पिटल में रहीं
तो मैं तुम में उलझा रहा कि अपनी नज़्म में
मैं कहूँगा नज़्म में, जिसे लिखकर
तुम्हारे नाम करना चाहता था
अगर तुम पूछो
कि मुझे बारिश के दिन अच्छे लगते हैं
कि सर्दियों के
मैं कहूँगा दोनों
क्योंकि दोनों ही मौसमों में
हमारे दुश्मन हमसे ईर्ष्या करते हैं
कोई महंगा तोहफ़ा ख़रीदने से अच्छा है
हम कबाड़िया की बात मान लें
और नज़्मों की कुछ किताबें ख़रीद लें
अगर तुम पूछो
कि नज़्मों की किताबें ख़रीदने से
बेहतर क्या हो जाएगा
मैं कहूँगा
नज़्मों की किताबों की वजह से
तन्हा-तन्हा
उदास-उदास
हमारे दिन हम गुज़ार सकेंगे.
डराता है यह समय
आग का दरिया है मेरे यार, अपना यह समय
सपने में आते हैं भयानक डायनासोर
नहीं पढ़ा हमने कोई ऐसा विज्ञापन न देखा
जिसमें गारंटी दी गई हो पुरसुकून समय की
चित्रांकन-हेम ज्योतिका
और यह कि कटने से बच जाएँगे दरख़्त
बिछड़ने से बच जाएगा बच्चा
भादों का पानी नहीं घुसेगा कमज़ोर मकानों में
मस्तक पर नहीं पड़ेंगी भय की सलवटें
और यह कि नहीं बढ़ेंगे हत्यारे हमारी तरफ़
पूरी नींद तक डराता है यह समय
मछलियाँ, चिड़ियाँ और मनुष्य
बुरा करता रहता है सबका
हमारी गर्म सांसों पर बिछ जाती है बर्फ़
गर्भवती स्त्रियाँ अपनी देह में हर्ष महसूस नहीं करतीं
एक अरसा हुआ
ख़ालू मेरे लौटकर आए नहीं घर
बुरा नहीं किया था मेरी ख़ाला ने किसी का
न ख़ौफ़ज़दा किया था वसंत ऋतु को
मधुमक्खी के छत्ते को बचाकर रखा था
शक्कर बचाकर रखा था, और
बचाकर रखा था दरवाज़े के बाहर पुरानी खटोली
इस सबसे निश्चिंत कि वित्तमंत्री माथापच्चियों में लगे रहे हैं
हमेशा हमसे लहू माँगता रहा है यह समय
हमेशा हमारी इच्छाओं के विरुद्ध जाता रहा है यह समय
रिसालों और अख़बारों के पन्नों में
छाया यह समय हाकिमे-वक़्त के साथ है
अनाज से भरा है जिनका घर उनके साथ है
टटोलो मेरे यार, कहाँ है अच्छा समय
और अच्छे शब्द कहाँ हैं
कहाँ हैं अच्छे लोकवाद्य
क़ातिलों की टोली गा रही है समवेत :
यह समय इतना ख़राब नहीं है
जितना की बयान कर रहा है यह लड़का
कुम्हार अकेला शख्स होता है
जब तक एक भी कुम्हार है
इस पूरी पृथ्वी पर
और मिट्टी आकार ले रही है
समझो कि मंगलकामनाएं की जा रही हैं
कितना अच्छा लगता है
जबकि मंगलकामनाएं की जा रही हैं
और इस बदमिजाज़ व खुर्राट औरत-सी
सदी में भी
कुम्हार काम भर मिट्टी ला रहा है
कुम्हार जिस समय बीड़ी पीता है
बीवी उसकी आग तैयार करती है
इतिहासकार इतिहास के बारे में
चिंतित होते हैं
श्रेष्ठजन अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने में
भिड़े होते हैं
अंधकार चीरने हेतु
अपने को तैयार कर रहा होता है कवि
कुम्हार अकेला शख्स होता है
जो पैदल-पुलिस के साथ
शिकारी कुत्तों की भीड़ देखकर
न तो बौखलाता है
न ही उत्तेजित होता है
हालांकि उसको पता है
उसके बनाए बर्तन
खिलौने कैमरामैन पुरुष-समूह अंतरिक्षयात्री
अबाबील व दूसरी चिड़िया
सब-सब
मौके की तलाश में हैं
किसी अन्य ग्रह पर चले जाने के लिए
कुम्हार अकेला शख्स होता है
जो नेपथ्य में बैठी उद्घोषिका से कहता है
हम मिट्टी से और मिट्टी के रंगवाली
पृथ्वी से प्रेम करते रहेंगे ।
न देवता न ईश्वर
मेरी इच्छा है
तुम्हें दूँ झमाझम बरसात
तुम्हें दूँ इतना जल
ताकि तुम्हें
‘जट-जटिन’ नहीं खेलना पड़े
ताकि तुम
जी भर प्यास बुझा सको
कपड़े धो सको
नहा सको
नाव पर या नदी किनारे बैठकर
मछलियाँ पकड़ सको
मेरी इच्छा है
तुम्हें-साफ-स्वच्छ नगर दूँ
कुशल अभियंता
गुणवत्ता अमात्य-महामात्य
निष्पक्ष पत्रकार
ईमानदार आरक्षी
अच्छे सैनिक
अच्छे शिक्षक
अच्छे ग्रह-नक्षत्र
उत्सव पर्व हर्ष गर्व
संघर्ष-गाथाएँ आदि सब दूँ
चूहों चीटियों को नायाब बिल दूँ
दूँ चिड़ियों को सुरक्षित वृक्ष
समुद्र को उसके नष्ट हो चुके जीव-जन्तु
तुम्हें रहने को घर दूँ
और तीली दूँ माचिस की
इस बेहद अन्धेरी दुनिया में
करने को छेद
भेदने को अन्धेरा
तुम जो चाहो
हो जाएं उपस्थित तुम्हारे समक्ष
तुम सोचो
मृत सोचो
मृत आँखों में आ जाए जान
किवाड़ों खिड़कियों के
बाहर के दृश्य सारे
हो जाएँ सुन्दर
आंगन में और छतों पर
उतरें सूर्य और चंद्र
अपनी पूरी दिव्यता के साथ
आंगन और छतों से भाग जाएँ दुख ताकि
मेरी इच्छा है
तुम्हें सौपूँ
कवि
संगीतकार
चित्रकार
अभिनेता और अभिनेत्री
समूची धरती और समूचा आकाश
सोमालिया और इराक
बनारस और कोहिमा
महानंदा और मेघना
सुपात्र और कुपात्र
ज़रुरी और ग़ैरज़रूरी चीज़ें
खपरैल और फूस घर
अगल और बगल
सब कुछ सब कुछ सौंपूँ तुम्हें ही
न यक्ष-यक्षिणी
न जोगी-जोगन
न ऋषि-मुनि
न देवता न ईश्वर
…बल्कि
एक सच्चा और अच्छा मनुष्य
यदि तुम चाहो
तो सौंप दूँ
छू-मंतर
अभी-अभी तो पत्ते झड़ते पेड़ के नीचे
खड़ी थी वह लड़की
अब खड़ी है खिलती सरसों के बीच
बारिश
बहुत देर तक भीगती है झींसी में
पानी की बूंदों में
वह कुछ बोलती नहीं है सिर्फ़ नहाती है
बारिश में नहाते हुए
तोते के पंख से भी हल्का महसूस करती है
वह अपनी आत्मा को
जब रंगों की बात चलती है
जब रंगों की बात चलती है
बहुत बुरे रंग में भी तुम ख़ास कुछ
ढूंढ़ लेती हो
तुमने बतलाया कि ऎसा हमारे
प्रेम की वज़ह से होता है
मैं तुम्हारी पसन्द के रंगों वाले
कपड़े और जूते पहन कर
कुमार गंधर्व के आडियो कैसेट खरीदने
रविवार की शाम को निकलता हूँ घर से
मैं जहाँ पर काम करता हूँ
वहाँ ऎसे रास्ते होकर पहुँचता हूँ
जिस रास्ते में
तुम्हारी पसन्द के रंग दिखते हैं
और जिस रास्ते के लोग
अच्छे रंगों के मुंतज़िर रहते हैं हमेशा
मैं जिस किराए के मकान में रहता हूँ
उसमें सिर्फ़ एक कील ठोकने की इजाज़त है
मैंने इस एक कील पर तुम्हारी तस्वीर टांग दी है
तुम यही चाहती थीं
जबकि तुमने मेरी तस्वीर रखने से
साफ़ इंकार कर दिया था
जितनी हवाएँ और दूसरी चीज़ें
जीने के लिए ज़रूरी होती हैं
तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद के रंग भी
ज़रुरी हो गए हैं
पावस के दिनों में हम दूर-दराज़ के
इलाक़े साथ-साथ घूमे थे
कश्तियों का सफ़र किया था
रथ पर बैठने से तुम डरती थीं
मैं चाकू से डरता था
अब मुझे चाकू से डर नहीं लगता
इसलिए कि
अपनी पसंद के रंगों को बचाए रखने के लिए
आदमी को चाकू से न