कुत्ते तभी भौंकते हैं
रामू जेठ बहू से बोले, मत हो बेटी बोर
कुत्ते तभी भौंकते हैं जब दिखें गली में चोर
वफ़ादार होते हैं कुत्ते, नर हैं नमक हराम
मिली जिसे कुत्ते की उपमा, चमका उसका नाम
दिल्ली क्या, पूरी दुनिया में मचा हुआ है शोर
हैं कुत्ते की दुम जैसे ही, टेढ़े सभी सवाल
जो जबाव दे सके, कौन है वह माई का लाल
देख रहे टकटकी लगा, सब स्वीडन की ओर
प्रजातंत्र का प्रहरी कुत्ता, करता नहीं शिकार
रूखा-सूखा टुकड़ा खाकर लेटे पाँव पसार
बँगलों के बुलडॉग यहाँ सब देखे आदमख़ोर
कुत्ते के बजाय कुरते का बैरी, यह नाचीज़
मुहावरों के मर्मज्ञों को, इतनी नहीं तमीज़
पढ़ने को नित नई पोथियाँ, रहे ढोर के ढोर
दिल्ली के कुछ लोगों पर था चोरी का आरोप
खोजी कुत्ता लगा सूँघने अचकन पगड़ी टोप
जकड़ लिया कुत्ते ने मंत्री की धोती का छोर
तो शामी केंचुआ कह उठा, ‘हूँ अजगर’ का बाप
ऐसी पटकी दी पिल्ले ने, चित्त हुआ चुपचाप
साँपों का कर चुके सफाया हरियाणा के मोर।
दाता एक राम
साधू, संत, फकीर, औलिया, दानवीर, भिखमंगे
दो रोटी के लिए रात-दिन नाचें होकर नंगे
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- घाट-घाट घूमे, निहारी सारी दुनिया
- दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !
राजा, रंक, सेठ, संन्यासी, बूढ़े और नवासे
सब कुर्सी के लिए फेंकते उल्टे-सीधे पासे
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- द्रौपदी अकेली, जुआरी सारी दुनिया
- दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !
कहीं न बुझती प्यास प्यार की, प्राण कंठ में अटके
घर की गोरी क्लब में नाचे, पिया सड़क पर भटके
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- शादीशुदा होके, कुँआरी सारी दुनिया
- दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !
पंचतत्व की बीन सुरीली, मनवा एक सँपेरा
जब टेरा, पापी मनवा ने, राग स्वार्थ का टेरा
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- संबंधी हैं साँप, पिटारी सारी दुनिया
- दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !
मॉर्डन रसिया
असली माखन कहाँ आजकल ‘शार्टेज’ है भारी
चरबी वारौ ‘बटर’ मिलैगो फ्रिज में, हे बनवारी
आधी टिकिया मुख लिपटाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
मटकी रीती पड़ी दही की, बड़ी अजब लाचारी,
सपरेटा कौ दही मिलैगो कप में, हे बनवारी
छोटी चम्मच भर कै खाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
नंदन वन के पेड़ कट गए, बने पार्क सरकारी
‘ट्विस्ट’ करत गोपियाँ मिलैंगी जिनमें, हे बनवारी
‘‘संडे’ के दिन रास रचाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
जमना-तट सुनसान, मौन है बाँसुरिया बेचारी
गूँजत मधुर गिटार मिलैगो ब्रज में, हे बनवारी
फिल्मी डिस्को ट्यून सुनाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
सुखे ब्रज के ताल, गोपियाँ ‘स्विमिंग-पूल’ बलिहारी
पहने ‘बेदिंग सूट’ मिलैंगी जल में, हे बनवारी
उनके कपड़े चुस्त चुराय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
‘रॉकेट’ बन उड़ गई चाँद पर रंग-भरी पिचकारी
गोपिन गोबर लिए मिलैंगी कर में, हे बनवारी
मुखड़ौ होली पै लिपवाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
सूनौ पनघट, फूटी गगरी, मेम बनी ब्रजनारी
जूड़ौ गुंबद-छाप मिलौंगो सिर पै, हे बनवारी
दरसन कर कै, प्यास बुझाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
ग़ज़ल हो गई
लफ़्ज़ तोड़े मरोड़े ग़ज़ल हो गई
सर रदीफ़ों के फोड़े ग़ज़ल हो गई
लीद करके अदीबों की महफि़ल में कल
हिनहिनाए जो घोड़े ग़ज़ल हो गई
ले के माइक गधा इक लगा रेंकने
हाथ पब्लिक ने जोड़े गज़ल हो गई
पंख चींटी के निकले बनी शाइरा
आन लिपटे मकोड़े ग़ज़ल हो गई
शारदा स्तुति
वर दे, वर दे, मातु शारदे
कवि-सम्मेलन धुऑंधार दे
‘रस’ की बात लगे जब नीकी
घर में जमे दोस्त नज़दीकी
कैसे चाय पिलाएँ फीकी
चीनी की बोरियाँ चार दे
‘छन्द’ पिट गया रबड़छन्द से
मूर्ख भिड़ गया अक्लमंद से
एक बूंद घी की सुगंध से
स्मरण शक्ति मेरी निखार दे
‘अलंकार’ पर चढ़ा मुलम्मा
आया कैसा वक्त निकम्मा
रूठ गई राजू की अम्मा
उसका तू पारा उतार दे
नए ‘रूपकों’ पर क्या झूमें
लिए कनस्तर कब तक घूमें
लगने को राशन की ‘क्यू’ में
लल्ली-लल्लों की क़तार दे
थोथे ‘बिम्ब’ बजें नूपुर-से
आह क्यों नहीं उपजे उर से
तनख़ा मिली, उड़ गई फुर-से
दस का इक पत्ता उधार दे
टंगी खूटियों पर ‘उपमाएँ’
लिखें, चुटकुलों पर कविताएँ
पैने व्यंग्यकार पिट जाएँ
पढ़ कर ऐसा मंत्र मार दे
हँसें कहाँ तक ही-ही-हू-हा
‘मिल्क-बूथ’ ने हमको दूहा
सीलबन्द बोतल में चूहा
ऐसा टॉनिक बार-बार दे
दारोग़ा जी
डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं
कवि हूँ मैं मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी
काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है
मेरी मजबूरी पे पसीजिए दारोग़ा जी
ज्यादा माल-मत्ता मेरी जेब में नहीं है अभी
पाँच का पड़ा है नोट लीजिए दारोग़ा जी
पौन बोतल तो मेरे पेट में उतर गई
पौवा ही बचा है इसे पीजिए दारोग़ा जी
मन मस्त हुआ
आदि से अनूप हूँ मैं, तेरा ही स्वरूप हूँ मैं
मेरी भी कथाएँ हैं अनन्त मेरे राम जी
लागी वो लगन तुझसे कि मन मस्त हुआ
दृग में समा गया दिगन्त मेरे राम जी
सपनों में आ के कल बोले मेरी बुढ़िया से
बाल-ब्रह्मचारी हनुमन्त मेरे राम जी
लेता है धरा पे अवतार जाके सदियों में
‘अल्हड़’ सरीखा कोई सन्त मेरे राम जी
समय का फेर
कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर
कैसा विकट समय का फेर
कहलाते हम- बीकानेरी
कभी न देखा- बीकानेर
जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में
है जो रेवाड़ी के पास
पर हरियाणा के यारों ने
कभी न हमको डाली घास
हास्य-व्यंग्य के कवियों में
लासानी समझे जाते हैं
हरियाणवी पूत हैं-
राजस्थानी समझे जाते हैं
हफ़्तों उनसे मिले हो गए
हफ़्तों उनसे मिले हो गए
विरह में पिलपिले हो गए।
सदके जूड़ों की ऊँचाईयाँ
सर कई मंजिलें हो गए।
डाकिए से ‘लव’ उनका हुआ
खत हमारे ‘डिले’ हो गए।
परसों शादी हुई, कल तलाक
क्या अजब सिलसिले हो गए।
उनके वादों के ऊँचे महल
क्या हवाई किले हो गए।
नौकरी रेडियो की मिली
गीत उनके ‘रिले’ हो गए।
हाशिये पर छपी जब ग़ज़ल
दूर शिकवे-गिले हो गए।