फुटकर शे’र
तबीयत ही दर्द-आश्ना हो गई।
दवा का न करना दवा हो गया॥
यूँ याद आओगे हमें इसला[1] खबर न थी।
यूँ भूल जाओगे हमें वहमों-गुमाँ न था॥
आह! किसने मुझे दुनिया से मिटाना चाहा।
आह! उसने, जिसे मैं हासिले-दुनिया जाना॥
ज़ाहिर है कि बेकस हूँ, साबित है कि बेबस हूँ।
जो ज़ुल्म किया होगा, बरदाश्त किया होगा॥
उम्मीदे-सुखूँ रुख़सत, तस्कीने-दरूँ रुख़सत।
अब दर्द की बारी है, अब दर्द मज़ा देगा॥
कभी दिन-रात रंगीं सुहबतें थीं।
अब आँखें है, लहू है, और मैं हूँ॥
तेरा गुलशन वोह गुलशन, जिसपै जन्नत की फ़िज़ा सदके़।
मेरा ख़िरमन[2] वह ख़िरमन जिस पर अंगारे बरसते हैं॥
अब आँखों के आगे वोह जलवे कहाँ?
अब आँखें उठाने से क्या फ़ायदा?
अब फ़रेबे-महर्बानी[3] रायगाँ[4]।
ज़िन्दगी भर को नसीहत हो गई॥
जब हमें बज़्म में आने की इजाज़त न रही।
फिर यह क्यों पुरसिशे-हालात है? यह भी न सही॥
अब हालेदिल न पूछ, कि ताबे-बयाँ कहाँ?
अब महर्बां न हो कि ज़रूरत नहीं रही॥
तेरा बारे-गिराने-महर्बानी कौन उठा सकता?
तेरा नामेहरबाँ होना कमाले-महर्बानी है॥
सितमशआ़र! सता, लेकिन इस क़दर न सता।
कि शुक्र शक्ले-शिकायात अख़्तयार करे॥
ख़ुदा के वास्ते आ और इससे पहले आ।
कि यास चारये-तकलीफ़े-इन्तेज़ार करे॥
हाय! वो राहत कि जब तक दिल कहीं आया न था।
हाय! वो साअ़त कि जब तुमसे शनासाई हुई॥
मेरा शौके़सज़ा का ख़ौफ़नाक अंजाम तो देखो।
किसी का जुर्म हो अपनी ख़ता मालूम होती है॥
समझता हूँ कि तुम बेदादगर हो!
मगर फिर दाद लेनी है तुम्हीं से॥
इक गदाये-राह को[5] नाहक़ न छेड़।
जा, फ़क़ीरों से मज़ाक अच्छा नहीं॥
तेरा अदील[6] कोई तेरे सिवा न होगा।
तुझ-सा कहाँ से लाऊँ, तुझ-सा हुआ न होगा॥
मंज़िल की जुस्तजू से पहले किसे ख़बर थी?
रस्तों के बीच होंगे और रहनुमा न होगा॥
हक़ बना, बातिल बना, नाक़िस बना, कामिल बना।
जो बनाना हो बना, लेकिन किसी क़ाबिल बना॥
ज़बाँ तक शिकवये-महरूमिये-दीदार आना था।
ख़िताब आया कि “जा, और ताक़ते-दीदार पैदा कर”॥
गैर फ़ानी खुशी अता कर दी।
ऐ ग़मेदोस्त! तेरी उम्रदराज़॥
उठो दर्द की जुस्तजू करके देखें।
तलाशे-सकूने तबीयत कहाँ तक?
दीदार की तलब के तरीक़ों से बेख़बर।
दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग॥
निशाने-राह हाथ आया तो किससे? सिर्फ़ उल्फ़त से।
कमाले रहबरी पाया तो किससे? सिर्फ़ रहज़न से॥
आओ, फिर मौक़ा है, कुछ इसरार की बातें करें?
सूरते-मन्सूर बहकें, दार की बातें करें॥
बयाने-राज़ेदिल की ख़्वाहिशें और वोह भी मिम्बर पर?
खबर भी है? यह बातें दार पर कहने की बातें हैं॥
कोई दोनों जहाँ से हाथ उठा बैठा तो क्या परवाह?
तुम इन मोलों भी सस्ते हो, तुम इन दामों भी अरज़ाँ हो॥
दिल और तेरे ख़याल से राहत न पा सके।
शायद मेरे नसीब में राहत नहीं रही॥
इसे भी ख़ुश नज़र आया, उसे भी ख़ुश नज़र आया।
तेरे ग़म में ब-हाले शादमाँ कर दी बसर मैंने॥
मुनासिब हो तो अब परदा उठाकर।
हमारा शक बदल डालो यक़ीं से॥
बेख़बर! कारेख़बर मुश्किल नहीं।
बेख़बर हो जा, ख़बर हो जाएगी॥
जो वोह मिलता नहीं है आप खो जा।
कि इक यह भी तरीक़े-जुस्तजू है॥
तेरे होते मेरी हस्ती का क्या ज़िक्र?
यही कहना बजा है “मैं नहीं हूँ”॥
आज वोह दिन है कि इक साक़ी के दस्ते-ख़ास से।
पी और इतनी पी कि मैं हक़दारे-कौसर हो गया॥
याराए-जुहदो-ताबदिरअ़ कुछ तलब न कर।
तौफ़ीक़ हो तो सिर्फ़ मजाले-गुनाह माँग॥
जो अहले-हरम दरपये-दुश्मनी हैं।
तो परवा नहीं, आस्ताँ और भी हैं॥
आ, मगर इस क़दर क़रीब न आ।
कि तमाशा मुहाल हो जाये॥
जब रुख़े-मक़सद से इक परदा उठा।
और ला-तादाद परदे पड़ गये॥
अचानक नज़ले-बला हो गया।
यकायक तेरा सामना हो गया॥
इन्सान की बदबख़्ती अन्दाज़ से बाहर है।
कम्बख़्त ख़ुदा होकर बन्दा नज़र आता है॥
बन्दापरवर! मैं वोह बन्दा हूँ कि बहरे-बन्दगी।
जिसके आगे सर झुका दूँगा ख़ुदा हो जाएगा॥
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