Skip to content

भले ही मैं तुझे मय कह चुका हूँ 

भले ही मैं तुझे मय कह चुका हूँ,
हक़ीक़त में तो मैं तेरा नशा हूँ!

लकीरों में तेरी कितना लिखा हूँ,
सितारों से मैं ख़ुद भी पूछता हूँ!

भले तुझको मयस्सर हो चुका हूँ,
मैं अपनी ज़ात में भी लापता हूँ!

तुझे भी, और फ़लक भी छू रहा हूँ,
कभी सूरज, कभी मैं चाँद-सा हूँ!

ये धरती है मेरे पहलू की मिट्टी,
मैं इसमें ख़्वाहिशों को बो चुका हूँ!

बरसते बादलों में अश्क मेरे,
मैं ख़ुद सारी रुतों का आइना हूँ!

कोई नग़मा मुझे ख़ुद में समेटे,
मैं रंग-ओ-बू मिलाना चाहता हूँ!

तू मेरी बुस‍अतें महफ़ूज़ कर ले,
मैं अब आलम-सा ख़ुद में फैलता हूँ!

मेरे नज़दीक अब कोई नहीं है,
बुलंदी को ख़ुदी की, पा चुका हूँ!

कहाँ रूमी गई आवाज़ मेरी,
जिसे आवाज़ मैं देता रहा हूँ!

कोई सपना सलोना चाहता है

कोई सपना सलोना चाहता है,
लिपटकर मुझसे रोना चाहता है!

तू मेरा चैन खोना चाहता है,
तो क्या बेचैन होना चाहता है!

उसे माँ चाँद दिखलाने लगी है,
मगर बच्चा खिलौना चाहता है!

मैं नीली छत के नीचे ख़ुश हुआ तो
वो बारिश में भिगोना चाहता है!

मुझे जो फूल-सा मन दे दिया है,
बता किस में पिरोना चाहता है!

बनाना चाहता है मुझको कश्ती,
वो ख़ुद पानी का होना चाहता है!

मैं उसका बोझ हल्का कर रहा हूँ,
मगर वो दुख को ढोना चाहता है!

कभी दिखता है, छुपता है कभी तू,
तो तू क्या चाँद होना चाहता है!

हुआ रूमी मेरा एहसास बेघर
ये मिट्टी का बिछौना चाहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.