यार का मुझको इस सबब डर है
यार का मुझको इस सबब डर है
शोख, ज़ालिम है, और सितम्गर है
देख सर्वे -चमन तेरे क़द को
ख़जिलो-पाबगिल है, बे-बर है
हक़ में आशिक के तुझ लबाँ का बचन
क़ंद है, नैशकर है, शक्कर है
क्यों के सबसे तुझे छुपा न रखूँ
जान है, दिल है, दिल का अंतर है
मारने को रक़ीब के ’हातिम’
शेर है, बबर है, घनत्तर है
शब्दार्थ :
सर्वे-चमन = बाग के फल
ख़जिलो पाबगिल = मिट्टी में गड़ा हुआ या लज्जित
बे-बर = बिना फल
कंद = मिस्री की डली
नैशकर = गन्ना
अंतर = आत्मा
आबे-हयात जाके किसू ने पिया तो क्या
आबे-हयात जाके किसू ने पिया तो क्या
मानिंदे ख़िज्र जग में अकेला जिया तो क्या
शीरी-लबाँ सों संग-दिलों को असर नहीं
फ़रहाद काम कोहनी का किया तो क्या
जलना लगन में शमा-सिफ़्त सख्त्त काम है
परवाना जूँ शिताब अबस जी दिया तो क्या
नासूर की सिफ़त है, न होगा कभी वो बंद
जर्राह ज़ख़्म इश्क़ का आकर सिया तो क्या
मुहताजगी सों मुझको नहीं एकदम फ़राग
हक़ ने जहाँ में नाम को ’हातिम’ किया तो क्या!
शब्दार्थ :
संग-दिल + पत्थर जैसा दिल रखने वाले
कोहनी = पहाड़ खोदना
शिताब = जल्दी
अबस = बेकार
फ़राग = छुटकारा
ख़ाल उसके ने दिल लिया मेरा
ख़ाल उसके ने दिल लिया मेरा
तिल में उसने लहू पिया मेरा
जान बेदर्द को मिला क्यों था
आगे आया मेरे किया मेरा
उसके कूचे में मुझको फिरता देख
रश्क खाती है, आसिया मेरा
नहीं शमा-ओ-चिराग़ की हाजत
दिल है मुझे बज़्म का दिया मेरा
ज़िन्दगी दर्दे-सर हुई ’हातिम’
कब मिलेगा मुझे पिया मेरा?
शब्दार्थ :
ख़ाल = तिल
रश्क = ईर्ष्या
आसिया = चक्की