पौडर लगाये अंग
पौडर लगाये अंग गालों पर पिंक किये
कठिन परखना है गोरी हैं कि काली हैं।
क्रीम को चुपर चमकाये चेहरे हैं चारु,
कौन जान पाये अधबैसी हैं कि बाली हैं।
बातों में सप्रेम धन्यवाद किन्तु अन्तर का,
क्या पता है शील से भरी हैं या कि खाली हैं।
‘वचनेश` इनको बनाना घरवाली यार,
सोच समझ के ये टेढ़ी माँग वाली हैं।
घर सास के आगे
घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
उपजेगी द्विजाति में रावण से
उपजेगी द्विजाति में रावण से मदनान्ध अघी नर-नारि-रखा।
रिपु होंगे सभी निज भाइयों के धन धान्यहिं छीने के आप-चखा।
यदि पास तलाक हुई तो सुनो हमने ‘वचनेश` भविष्य लखा।
फिर होंगी नहीं यहाँ सीता सती मड़रायेंगी देश में सूपनखा।।