त्रिपथगा-1
निकल स्वर्ग से
पृथ्वी पर नीचे
प्रवाहमयी
जाना पताल
तीन तलों का
घर जिसका
घर भी ऎसा
जिसमें आना
जाना जिससे
पाहुन जैसे
पर रहना जब तक
रहना ऎसे
जैसे रहती
जल में मीन।
त्रिपथगा-2
हिम जल वाष्प
एक जीवन में
जीवन तीन
एक रुकता
एक चलता
एक उड़ता
एक दूजे को
देता जीवन
एक दूजे में
होता लीन।
त्रिपथगा-3
उतर गर्भ से आया
नत मस्तक
ठोस धरातल
फिर पग पृथ्वी पर
फिर चला और नीचे
नीचे
वह अंत चरम
उससे भी पहले
एक जीवन में जीवन तीन
अवरोह किया
आरोह लिया
उड़ा फूल कभी अति
प्रसन्न
इति आदि सब देखी
और मध्य भी देखा
देखा सबने
हो तल्लीन !
यह पथ-1
सुनो रुको
देखो इस ओर
यह स्वर है जीवन की गाड़ी के
हहरा कर चलते जाने का
यह देखो यह
उड़ती धूल
यह छिपकर
पदचापों का
अपने को ही
ढाँक-मूँदकर
इतराते छलते जाने का
यह टहनी पर पत्तों के
आने-जाने का
सतत प्रवाह
और उगे एक दिन
फिर आने को
रह-रह कर झरते जाने का।
यह पथ-2
सुनो थाम लो
कसकर पकड़ो
इस क्षण को ही
खींचो लम्बा
अनुभव जो अपने छूने से
सरक दूर हो जाते हैं
कल आने की कहकर जाते
कुछ समय विवश
कुछ हम ही ऎसे
न रखो भरोसा जाते पर
फिर से आने का।
यह पथ-3
यह विचार की पगडंडी
यह सोचों का लंगड़ा रथ
यह घुमाव से लहरदार
नाहक ही होता लम्बा पथ
सहयात्री ये कब से साथ
हर बार मगर ले
रूप नया
कितनी बार करो स्वागत
कितनी बार नया जान
इस स्वांग भरे अनजाने का।
बहुत हुआ-1
कभी न कहना
बहुत हुआ
जो जितना हो जाता है
वह सदा मध्य है
कुछ होने से
कुछ होने का
सदा शेष रह जाता है
कभी न होता
बहुत हुआ।
बहुत हुआ-2
घंटी बजती है
शाला में
तब होता है
पाठ शुरू
घर जाने की
घंटी बजती
क्या पूर्ण पाठ
तब होता है
एक घंटी
घर के पाठ शुरू
एक घंटी घर से
बाहर के
शुरू ख़त्म के
इन पाठों से
कोई न सीखा
बहुत हुआ।
बहुत हुआ-3
नमक खींच लाते
सागर से
पृथ्वी से
जल
और मेघ्ह से
सभी व्यतीत होता
और निर्मित
जो सहज टपक पड़ता
नेत्रों से
वह फल तन के
महावृक्ष का
कभी खुटा न
कभी रुका
कभी न सूखा
बहुत हुआ।
आन बनी-1
कहीं फुसफुसा कानों में
सुन सका कोई न
बात छुपी
पर गंध छुपेगी
कैसे वह
जो उठी, प्रसरी
पता चली।
आन बनी-2
अनुभव का
अनुभव
भी अनुभव
न होने का भी अनुभव
विद्वता अलबेली देती
यह अपनी ही
उतावली।
आन बनी-3
वह पल छिन का
सुख
था या त्रास
अनमोल जिन्हें
जाना घड़ियाँ
वे जा कर भी
गईं नहीं
अपने पर ही
आन बनी।
कम है
और मुझे दो रस थोड़ा
अभी इसमें मधुरा
कम है
और अभी ललाई दो
और तनिक दो तो तीव्र
और बढ़ाओ आंच कि यह
जीवन जल
उबला कम है
और करो बौछार रंगों की
और मलो अबीर
बदन पर
कह सकें सभी है तो यह
रंगदार
भले साफ
उजला कम है
यह जल का ही चमत्कार
या यह है ही प्यास अजब
यह हर पल
बढ़ती जाती
वह जितना
उतना कम है।