आप आयेंगें जान आयेगी
आप आयेंगे जान आयेगी
पंछियों में उड़ान आयेगी
ये कलम आप की बदौलत ही
ले के’ खुशियाँ महान आयेगी
जिंदगी खुशनसीब है उसकी
ले मुहब्बत की खान आयेगी
ख़्वाब आँखों मे डूब जायेंगे
जब नदी की उफान आयेगी
रुख करेगी इधर मसर्रत तो
साथ ले कर जहान आयेगी
प्रीति मचलेगी जब निगाहों में
तब बड़ी आन बान आयेगी
होगी मायूस जब जमाने से
तब खुशी इस मकान आयेगी
स्वप्न आँखों मे सजाते रह गये हम
स्वप्न आँखों मे सजाते रह गये हम
दीप सुधियों के जलाते रह गये हम
सरहदों पर जो गया हो दीर्घजीवी
देवताओं को मनाते रह गये हम
फूँक डाले दुश्मनों ने घर हमारे
और बस बातें बनाते रह गये हम
जो हमारी अस्मिता से खेलते हैं
क्यों उन्हें आँखें दिखाते रह गये हम
डर रहे मासूम सुन बम के धमाके
हो निडर यह ही सिखाते रह गए हम
राम रम में विष्णु व्हिस्की में बताते
सर झुका कर मुस्कुराते रह गये हम
जूझते आतंकियों से वीर सैनिक
उन पे ही पत्थर चलाते रह गये हम
वीर कितने किस तरह जानें गंवाते
बस गणित इस का लगाते रह गये हम
जिंदगी से जो गये क्या बात उन की
याद में आँसू बहाते रह गये हम
उन्हें लगी न क्यूँ खबर न पूछिये हम से
उन्हें लगी न क्यों खबर न पूछिये हम से
न आये लौट वो कह कर न पूछिये हम से
न मंजिलों का पता है न कुछ खबर अपनी
लगे हैं राह के चक्कर न पूछिये हम से
लगी है आग जो दिल मे सुलग रहे हैं हम
चलाता कौन है नश्तर न पूछिये हम से
किये थे वादे जो सब तोड़ क्यों दिये पल में
गये क्यूँ रूठ के दिलवर न पूछिये हम से
न जाने कौन उठाने लगा है दीवारें
बिखर गया क्यूँ मेरा घर न पूछिये हम से
बरसता आसमान है उमड़ रहीं लहरें
सता रहा क्यों समन्दर न पूछिये हम से
निभायी हम ने वफ़ाएँ हैं बड़ी शिद्दत से
हुआ वो बेवफ़ा अक्सर न पूछिये हम से
दिलों में दूरियाँ हों और न हो हमदर्दी
क्यों टूटते रहे पत्थर न पूछिये हम से
हमारे उन के बीच तो न थी पर्देदारी
लगाई किस ने है नज़र न पूछिये हम से
बहुत दिनों तक समझ न पाये करम वही हम को खल रहा है
बहुत दिनों तक समझ न पाये करम वही हम को खल रहा है
किये अनाचार हैं हम ने जो भी उसी से भूतल ये जल रहा है
चटक रहा है गला हमारा दिखे न पानी की बूंद कोई
शज़र न कोई मिली न छाया बहुत पसीना निकल रहा है
तटस्थ हम हो गए हैं इतने कि देख कर रक्त की नदी भी
हैं गिन रहे सैनिकों की लाशें न खून अपना उबल रहा है
न तुम से थी कोई दुश्मनी ही नही था तुम से हमारा रिश्ता
हमारा खूं गिर के सरहदों पे तुम्हारे लोहू से मिल रहा है
हमारे दिल मे धड़क रही है तुम्हारे दिल की ही कोई धड़कन
तुम्हारी साँसों का दीप है जो हमारी साँसों में जल रहा है
तुम्हारे ख्वाबों की महफिलों में हमारी भी है गुजर जरा सी
तुम्हारी यादों का हुस्ने गुलशन हमारी यादों में पल रहा है
जलाये तुमने ही आशियाने उसाँस बन कर भटकतीं आहें
तुम्हारा ही कोई टूटा अरमाँ बहार का दिल मसल रहा है
मिलाया जो था नदी में आँसू उसी से है ऐसी बाढ़ आयी
बरस रहा है जो इतना पानी न बादलों से संभल रहा है
जहाँ गिरे अश्क़ आशिकों के वहाँ वहाँ हो रही ज़ियारत
जहाँ गिरे क़तरे खून के हैं कोई पैग़म्बर टहल रहा है
अँधेरों से निकलना चाहते हैं
अँधेरों से निकलना चाहते हैं
सदा बन दीप जलना चाहते हैं
रपट जाते कदम हैं रास्ते पर
फिसल कर फिर सँभलना चाहते हैं
निगाहों ने तुम्हे ले कर जो देखे
यनहीँ ख्वाबों में ढलना चाहते हैं
अंधेरे जब घिरे हर ओर हों तब
शमा बन कर पिघलना चाहते हैं
हवा देने लगी है थपकियाँ अब
कली से फूल बनना चाहते हैं
हमें समझो न तुम अपना भले ही
तुम्हारे साथ रहना चाहते हैं
मुसीबत तो कभी भी घेर लेती
समय के साथ चलना चाहते हैं
साथिया और मत सता हम को
साथिया और मत सता हम को
इश्क़ में जाने क्या हुआ हम को
जाने क्यों है ख़ुदा भी रूठ गया
अब तेरा ही है आसरा हम को
दे वफ़ाओं का तू हमें न सिला
राह में पर न दे गिरा हम को
कह न पाये लबों से हम जो भी
है नज़र ने दिया बता हम को
हम तो खुद को ही भुला बैठे हैं
अब हमारा ही दे पता हम को
तू कहे जो वो सच हमारा है
तेरा मंजूर फैसला हम को
हम भटकने लगे हैं बे मक़सद
राह कोई तो दे दिखा हम को
किताबे इश्क़ में ये कब लिखा है
किताबे इश्क में ये कब लिखा है
मुहब्बत में वफ़ा का सिलसिला है
करे राहे मुहब्बत में वफ़ा जो
उसे पागल का ही रुतबा मिला है
मिलाते ही नज़र मुँह फेर लेना
यही तो हुस्न वालों की अदा है
रहो बस दूर उल्फ़त की खता से
किसी को चैन कब इस ने दिया है
बहाना अश्क़ औ बेचैन रहना
यही तो इश्क़ वालों की सज़ा है
भटकते ही रहें मायूस हो कर
ग़मे फुरकत में आँसू ही पिया है
हो मिर्ज़ा साहिबा या हीर लैला
किया इस इश्क़ ने किस का भला है
टूट जाये जो कभी प्यार वो रिश्ता ही नहीं
टूट जाये जो कभी प्यार वो रिश्ता ही नहीं
मर के भी जिंदा रहे ऐसा तो देखा ही नहीं
की न कश्ती है हवाले कभी जो मौज उठी
कितने तूफ़ान छुपे हैं कभी जाना ही नहीं
जब भी नजरें उठीं बस साथ मे तन्हाई रही
तू भी तो साथ था मेरे कभी समझा ही नहीं
बारहा है तलाश में फ़लक पे घूम लिया
अपनी किस्मत का मगर कोई सितारा ही नहीं
जो भी चाहे जरा आईने से ये पूछ तो ले
सच ही बोलेगा कभी झूठ वो कहता ही नहीं
आरजू मर गयी दिल की जमीन सूख गयी
तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं
दिल के दरवाजे खुले रक्खे दिनों रात मगर
जाने क्या तुझ को हुआ तू कभी आया ही नहीं