इस तरह कर गया दिल को मेरे वीराँ कोई
इस तरह कर गया दिल को मेरे वीराँ कोई
न तमन्ना कोई बाक़ी है न अरमाँ कोई
हर कली में है तेरे हुस्न-ए-दिल-आरा की नुमूद
अब के दामन ही बचेगा न गिरेबाँ कोई
मय-चकाँ लब नज़र आवारा निगाहें गुस्ताख़
यूँ मेरे पहलू से उट्ठा है ग़ज़ल-ख़्वाँ कोई
ज़ुल्फ़ बरहम है दिल आशुफ़्ता सबा आवारा
ख़्वाब-ए-हस्ती सा नहीं ख़्वाब परेशाँ कोई
नग़मा-ए-दर्द से हो जाता है आलम मामूर
इस तरह छेड़ता है तार-ए-रग-ए-जाँ कोई
मोहब्बत किस क़दर यास-आफ़रीं मालूम होती है
मोहब्बत किस क़दर यास-आफ़रीं मालूम होती है
तेरे होटों की हर जुम्बिश नहीं मालूम होती है
ये किस आस्ताँ पर मुझ को ज़ौक़-ए-सज्दा ले आया
कि आप अपनी ज़बीं अपनी ज़बीं मालूम होती है
मोहब्बत तेरे जलवे कितने रंगा-रंग जलवे हैं
कहीं मससूस होती है कहीं मालूम होती है
जवानी मिट गई लेकिन ख़लिश दर्द-ए-मोहब्बत की
जहाँ मालूम होती थी वहीं मालूम होती है
उम्मीद-ए-वस्ल ने धोके दिए हैं इस क़दर ‘हसरत’
कि उस काफ़िर की हाँ भी अब नहीं मालूम होती है
या रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो क्या होता
या रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो क्या होता
जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता
इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
या ग़म न दिया होता या दिल न दिया होता
ना-काम तमन्ना दिल इस सोच में रहता है
यूँ होता तो क्या होता यूँ होता तो क्या होता
उम्मीद तो बँध जाती तस्कीन तो हो जाती
वादा न वफ़ा कतरे वादा तो क्या होता
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता