मदारी
जल्दी चलो, मदारी आया,
संग बहुत सी चीजें लाया।
डमरू अब है लगा बजाने,
भीड़ जोड़कर खेल जमाने।
देखो साँप नेवला कैसे
लड़ते, बड़े मल्ल हों जैसे।
बिच्छू जैसे काले काले,
लिए हाथ में डंकों वाले।
देखो, रुपये लगा बनाने,
जादू अपना अजब दिखाने।
देखो, उड़ा रहा है अंडा,
लिए हाथ मंे केवल डंडा।
बड़े-बड़े लोहे के गोले,
जो हैं नहीं जरा भी पोले।
उसने मुँह से अभी निकाले,
काँटों के संग काले-काले।
खेल किए हैं उसने जैसे,
पैसे भी पाए हैं वैसे।
उसका काम हमें बतलाता,
पापी पेट न क्या करवाता?
-साभार: दूध-बताशा, मई 1937