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बाबूराम शर्मा ‘विभाकर’की रचनाएँ

भुलक्कड़ राम

दिल्ली के रहने वाले
अजब भुलक्कड़ राम जी,
खाना खाना भूल गए
करते हैं आराम जी!

जब उनको फिर भूख लगी
हलवे का लें नाम जी,
पूछा इक हलवाई से-
क्या है इसका दाम जी?
हलवाई ने टोक दिया
लेकन उनक नाम जी,
बिन पैसे हलवा कैसे
वाह, भुलक्कड़ राम जी!

दूध पेस्ट रगड़ा माथे
समझा उसको बाम जी,
अंट-शंट कामों को यूँ
करें भुलक्कड़ राम जी!
मामा आए मिलने को
पूछा क्या है काम जी,
कौन कहाँ के हो जी तुम,
कर लो ‘राम-राम’ जी!

रिश्ते को भी भूल गए
बड़े भुलक्कड़ राम जी,
‘भूल भुलक्कड़’ का सबसे
पाते यह इनाम जी।

-साभार: नंदन, दिसंबर, 1997, 40

मिस बिल्ली

मिस बिल्ली जी छाता लेकर निकलीं करने सैर,
ऊँची एड़ी के जूतों के कारण फिसला पैर।
तभी अचानक काला कुत्ता दीखा उनको आता,
डर के मारे भगीं छोड़ बेचारी अपना छाता।

दादी माँ

मम्मी की फटकारों से
हमें बचाती दादी माँ।
कितने प्यारे वादे करती-
और निभाती दादी माँ।
पापा ने क्या कहा-सुना,
सब समझाती दादी-माँ!
चुन्नू-मुन्नू कहाँ गए,
हाँक लगाती दादी माँ।
ऐनक माथे पर फिर भी
शोर मचाती दादी माँ।
‘हाय राम! मैं भूल गई’-
हमें हँसाती दादी माँ।
गरमा-गरम जलेबी ला,
हमें खिलाती दादी माँ।
कभी शाम को अच्छी सी
कथा सुनाती दादी माँ,
खूब डाँट दे पापा को,
भौहें चढ़ाती दादी माँ।
हम भी गुमसुम हो जाएँ,
रोब जमाती दादी माँ!

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