तम में कोई नरभक्षी है
यह सूरज है,
चित्र फलक तक !
पेड़ गए
भीतर बंगलों में,
सिर्फ प्रदूषण
है क़त्लों में !
यह है आग
कि जिससे बचना
मुश्किल है अब
उच्च फलक तक !
शहर नहीं
केवल राहें हैं,
धुआँ-धुँध है
अफ़वाहें है,
तम में
कोई नरभक्षी है,
घूर रहा
जो मुझको अपलक !
सुन्दरता
केवल फ़रेब है,
मन बाँधे जो
पाऽजेब है !
सब डूबे
उसके सम्मोहन,
अपनी खुशियाँ
सिर्फ ललक तक !
यह सूरज है
चित्र-फलक तक !
चुप रहो मत
कुछ कहो मत,
किन्तु ऐसे चुप रहो मत !
दर्द है
तो कुछ कराहो,
दुःखी हो
आँसू बहाओ,
क्षोभ है, चीख़ो !
मगर तुम इस तरह
भीतर दहो मत !
मौन क़ातिल के लिए
बल
शोर उसकी भीति
पाग़ल
भीड़ का
आक्रोश बन उभरो
कि जो है मौत !
लेकिन यों अकेले
तुम सलीबों को सहो मत !
कुछ कहो मत,
किन्तु ऐसे चुप रहो मत !