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अमिताभ रंजन झा ‘प्रवासी’ की रचनाएँ

मेरे सपनों का भारत 

हर चेहरे पर मुस्कान हो, हर हाथों को काम हो।
गगन चुम्बी स्वाभिमान हो, हर भारतवासी कीर्तिमान हो।।

वाणी में मिठास हो, सफलताओ की प्यास हो।
आलस्य को अवकाश हो, अनगिनत प्रयास हो।।

कृषि का विकास हो, मंजिले आकाश हो।
अज्ञानता का नाश हो, हृदय में प्रकाश हो।।

आतंक का संहार हो, अहिंसा का व्यवहार हो।
सबको सबसे प्यार हो, ऐसे संस्कार हो।।

अन्न का भंडार हो, नित्य नए आविष्कार हो।
शिक्षा का संचार हो, प्रगति का विचार हो।।

ज्ञान का सम्मान हो, विज्ञान का उत्थान हो।
रोगों की रोकथाम हो, भ्रष्टाचार का न निशान हो।।

मुख पर मोहक हर्ष हो और भीषण संघर्ष हो।
सद्भाव का व्यवहार हो, किन्तु पराजय अस्वीकार हो।।

नित्य नूतन प्रयोग हो, संसाधनों का सदुपयोग हो।
खोयी प्रतिष्टा पुनर्जित करे, लक्ष्य नए निर्धारित करे।।

हर भारतीय आगे बढे, हरसंभव यत्न करे।
सौ बार हो विफल, एक और प्रयत्न करे।।

मिल के ये ले शपथ, चलेंगे हम प्रगति पथ।
फिर ये स्वप्न साकार हो और ऐसा चमत्कार हो।।

जीवन एक रंग अनेक

कभी ख़ुशी की हो हरयाली
कभी संकट की बदरी काली
कभी शर्म की होती लाली!
कोयल कूके दे सन्देश
हर पल रख इरादा नेक
जीवन एक रंग अनेक!

कभी चोट से होते नीला
कभी रोग से पड़ते पीला
कभी आशा का होत उजाला!
राज हिमालय दे उपदेश
कभी न मानव मस्तक टेक
जीवन एक रंग अनेक!

प्रीत का होता रंग गुलाबी
नारंगी होता बैरागी
भूरी होती विरह-तन्हाई!
शांति का होता रंग सफ़ेद
आँखें खोल मन से देख
जीवन एक रंग अनेक!

क्रोध का चेहरा होता लाल
ईर्ष्या होती स्याह रंग की
काला होता द्वेष-क्लेश!
नवजीवन का करें श्रीगणेश
सारी बुराई मन से फ़ेंक
जीवन एक रंग अनेक!

कभी कभी पूरी सतरंगी
कभी कभी बिलकुल बेरंगी
जीवन है ये रंग बिरंगी!
जीता जा तू रंग हरेक
जोर से बोलो हो के एक
जीवन एक रंग अनेक!

बदले पल-पल रूप और भेष
जीवन रंगो का समावेश
जो समझा वह हुआ धनेश!
होली रंग-पर्व है विशेष
आओ मनाये हो के एक
जीवन एक रंग अनेक!

माँ

नौ महीने उदर में समाये रक्खा,
लहू से सींचा नाभी से लगाये रक्खा,
अपनी धड़कन से दिल मेरा जगाये रक्खा,
मीठे सपनो में मुझको बसाये रक्खा।

इतना छोटा हूँ कि हथेली में समा जाता,
अंगूठा चूसू बस और कुछ भी नहीं आता,
छोड़ो हँसना अभी तो मैं रो भी नहीं पाता,
माँ आँखे खोलू तो जी मेरा घबराता।

तेरी गोदी में सीखूंगा मैं खिलखिलाकर हँसना,
ऊँगली तेरी पकड़ कर एक दिन है चलना,
माँ मुझ पर कभी भी नाराज ना होना,
गिर भी जाऊ तो सिखाना संभलना।

अपनी आँचल में मुझको छुपाये रखना,
सर अपना मेरे माथे पर टिकाये रखना,
दुनिया कि निगाहों से बचाए रखना,
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना।

मेरे बालों में उंगलिया फिराते रहना,
मेरे चेहरे को हाथों से थपथपाते रहना,
मेरी आँखों पर चुम्बन लुटाते रहना,
गालों से गालों को लगाये रखना।

माँ मुझको आँचल में छुपाये रखना।
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना।

पिता 

पिता बना तो जाना काम नहीं आसान
हर पिता को मेरा शत-शत है प्रणाम।

हर पल मन में एक लगन सदा खुश रहे संतान
पल पल अमृत उसे मिले सो ख़ुद करते विषपान।

टूटे चप्पल पावों में अपने तन पर वस्त्र पुरान
नव वस्त्र बच्चों को मिले जन्मदिवस, होली, रमजान।

अपने इक्षा को परे रख जोड़े पुस्तक का दाम
हो अथक अनगिनत प्रयास दिन रात वह करते काम।

शिक्षा, शक्ति, संस्कार आपसे आज चलू जो सीना तान
मस्तक ऊँचा आपके कारण है सफल पिता का प्रमाण।

क्षमा प्रार्थी हूँ जो भूल हुयी अनजान
त्याग, धर्म की मूर्ति पिता हैं कितने महान।

पिता बना तो जाना ये काम नहीं आसान
प्रिय पिताजी आपको मेरा शत-शत है प्रणाम।

गांव

गांव की हवेली का हर राज पुराना है।
रौशन था जो आँगन आज वीराना है।।

मीठी-सी यादे हैं, रोने का बहाना है।
छोड़ा हमने देस, रोटी जो कमाना है।।

गांवों के बीते दिन, अब नया जमाना है।
अजनबी शहरों में हर शख्श अनजाना है।।

नेकी, सादगी, संतोष बात बचकाना है।
दौलत, शोहरत, ताक़त सफलता का पैमाना है।।

रह जाये न पीछे दौड़ लगाना है।
ठोकर खा के जो गिरे संभल कर उठ जाना है।।

सब दाव लगाकर क़िस्मत आज़माना है।
हार नहीं सकते मुंह जो दिखाना है।।

खुद को भुलाना है, मुखौटा लगाना है।
यूँही मुस्कुरा कर हर दर्द छुपाना है।।

पर मन में एक लगन, घर वापस जाना है।
हाथों में ले मिटटी माथे पर लगाना है।।

दिन हफ्ते रुक कर दिल को बहलाना है।
भारी मन फिर से उसी शहर में आना है।।

हवा, हरयाली, अपनापन सपना रह जाना है।
शहरों के दरबे में सारी उम्र बीताना है।।

कोशिश 

आधी रात आँगन में लेटा, नींद नहीं आँखों में मेरे।
आसमान छत है मेरा, धरती मेरी बिस्तर है॥
पलके झपक रही है, पवन झल रहा शीतल पंखा।
ओश बनी है साक़ी मेरी, ठुमक के बुँदे ढाल रही हैं॥

सूर्य पिताजी मेरे काम से अब तक न लौटे।
चंदा मैया व्यस्त यहाँ है जग अंधियारे को उजाला बांटें॥
सितारे भाई बहन मेरे बस मुझसे करते रहते बातें।
दिल धड़क-धड़क जो कहता है वह टिमटिम करके सुनते हैं॥

जब सारी दुनिया सोती है, मीठे सपनों में खोती है।
मैं चाह के सो न पाता हूँ, बस तारे गिनता रहता हूँ॥
जन्म से ही गिनता आया, पर थोड़े से ही गिन पाया।
अभी सारे गिनना बाक़ी है और कोशिश आज भी जारी है॥

ये कार्य नहीं है आसान, बाधाये करती परेशान।
कभी गिनते-गिनते थक जाता, कभी गिनते-गिनते रुक जाता॥
कभी मेघ को गिनना नहीं कबूल, कभी वर्षा झोंके आँखों में धूल।
कभी गिनती ही मैं भुला हूँ, पर हार न मैंने मानी है॥

और कोशिश आज भी जारी है॥
और कोशिश आज भी जारी है॥

ममता का अपमान

मौत का सौदागर तू करे आतंक से प्यार।
हिंसा का पुजारी करे मजलूमों पर प्रहार॥

कोई हो मज़हब तुझे क्या दरकार!
तू तो बस करता जा मानव-संहार॥

इंसानों के मांस लहू से बुझाये भूख प्यास।
लाशों के ढेर पर बैठा करे तू अहठास॥

हैवानियत ईमान क़त्ल तेरे संस्कार।
मासूमो की किलकारी नहीं तुझे स्वीकार॥

मेरे जिगर के टुकड़े तुने जिगर कितने टुकड़े किये।
मेरी नज़र के उजाले तुने ऑंखें कितने सुने किये॥

मेरे घर के दीपक तुने कितने घरों के दीप बुझाये।
मै रोऊ पछताऊ हर पल तुने ऐसे दिन दिखलाये॥

आहत हु तुमसे किया ममता का अपमान।
किसी माँ के कोख से न जन्मे ऐसी संतान॥

हर भूले राही से करूँ मैं फ़रियाद।
घर लौट जा तू करे माँ तुझको याद॥

उपेक्षा 

लोग पग-पग पर छले,
नजर लगे जब-जब मिले,
तिल-तिल कर सदा जले,
बिन बात कालिख मले,
दिल जब परेशान हो, होता नहीं कोई काम है।

ज़माने के तानों का क्या,
तीखे वाक्-वाणों का क्या,
लोगों की बातों का क्या,
श्वानों की बारातों का क्या?
यही उनकी जात है, बस भौंकना ही काम है।

सामने कहे बड़ा होनहार,
पीठ पीछे सौ विकार,
परवाह क्या उन असुरों की,
दर्द देख कर दूसरों की,
मुस्कुराना शौक़ है, टांग अड़ाना काम है?

उपेक्षा से पूछते वो
क्या तुझमें है सिंग और पूंछ?
विनम्रता रूपी दुम कही हिला लिया,
दबंगता का सिंग कभी दिखा दिया,
इनके सदुपयोग से, होता हरेक काम है।

क्रोध आया उबल गया मैं,
शांत हुआ संभल गया मैं,
ठोकर से मैं गिरा, उठा,
ऐसा ही है जग सदा,
सब पर हँसना धर्म है, सब को डंसना काम है।

ह्रदय फटा तो रो लिया,
थक गया तो सो लिया,
जागा जब फिर चल दिया,
सुख भी ज़िया दुःख भी जिया
जिंदगी एक सफ़र, रुकने का न कोई काम है।

अमानुषों के भीड़ में,
कुछ भलेमानुस भी मिले,
निःस्वार्थ हर मदद की,
स्नेह दिया, साथ चले,
स्मरण करूँ उन्हें सदा, ऋणी रहूँ ये काम है।

मस्त सदा व्यस्त रहूँ,
खुश रहूँ, हँसता रहूँ,
कभी न मैं बुरा बनूँ,
बुरे जो उन्हें क्षमा करुँ,
पर नाम उनका याद रख, सावधान रहना काम है।

मैं सोचता हूँ कहा से आया,
किसने मुझ को बनाया?
मंज़िल कहाँ, जाना कहाँ,
कब तक हूँ, मैं कौन हूँ?
क्या मेरा नाम है, क्या यहाँ मेरा काम है?

दूर गगन से मैं आया,
विधाता ने बनाया,
जाऊँ जहाँ मंज़िल वहाँ,
कुछ क्षण के जीवन पथ का पथिक मैं,
चल मेरा नाम है, चलता रहूँ यही काम है।

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