धरती
है आकाश पर
प्रेम टिका
विश्वास पर ।
जब से
चाँद हुआ है
ओझल
तब से
नज़र
पलास पर।
सबकी
आँखें
इधर-उधर
उनकी
टिकी गिलास पर ।
लघु
आलोचक
बरस रहा है
बाबा
तुल
चारों ओर मची हलचल है
शेष कुशल है ।
आई बाढ़ भरा है पानी
अपनी भी रह गई पलानी
राहत के पीछे भी छल है
शेष कुशल है ।
गाँव छोड़ अखिलेश गया है
कुछ करने परदेश गया है
इस चिंता में मन पागल है
शेष कुशल है ।
बाबा-अम्मा देख न पाते
दुख से अपनी मौत बुलाते
इनकी खटिया में खटमल है
शेष कुशल है ।
मंत्री हैं अब राजा-रानी
असली राजा भरता पानी
संसद के भीतर जंगल है
शेष कुशल है ।
परिवर्तन अब नारों में है
उपलब्धि अख़बारों में है
नालों में ही गंगाजल है
शेष कुशल है।
सीदास पर।
अंजुरी में जल आया
नदी नहीं आई
छूने गया तो
बज गया सितार
देखते ही देखते
बह गया पहाड़
अभी-अभी टीला था
अभी-अभी खाई
जीवन के संग-संग
पवन भी विहरता
पत्तों के गिरने से
पेड़ भी है झड़ता
छिपी है बड़ाई में
गहरी रुसवाई ।