साग पकाया
बंदर गया खेत में भाग,
चुट्टर-मुट्टर तोड़ा साग।
आग जला कर चट्टर-मट्टर,
साग पकाया खद्दर-बद्दर।
सापड़-सूपड़ खाया खूब,
पोंछा मु हूँह उखाड़ कर दूब।
चलनी बिछा, ओढ़कर सूप,
डटकर सोए बंदर भूप!
एक कहानी
सुनी सुनाई या मनमानी,
कहो कहानी, तुम्हें सुनानी,
जोर-जोर से कही कहानी।
‘हूँ हूँ’ होवे अहो कहानी,
चुप-चुप, चुप-चुप सुनो कहानी।
पोदा रानी, पोदा रानी,
चूल्हे की थी वह दौरानी।
एक रोज की तुम सुन पाओ,
कान इधर को अपना लाओ।
चूल्हे में जब आग जल रही
धधक-धधककर धूँ,
कान इधर को अपना लाओ
काना-बाती कूँ।
-साभार: बालसखा, अक्तूबर, 1946, 361
मिस्टर मोती
आधे गोरे आधे काले, आए मिस्टर मोती,
एक टाँग में पहन पजामा, एक टाँग में धोती।
एक पैर में जूता पहने, एक पैर में मौजा,
एक हाथ में रोटी पकड़े, एक हाथ में गोज़ा।
एक बाँह में अचकन डाले, एक बाँह में कोट,
रोकर माँगे मक्खन-बिस्कुट, हँस माँगे अखरोट।
कंधे पर तो पड़ा जनेऊ, मगर बढ़ाकर चोटी,
झूठ-मूठ की मूँछ लगाई, मुँह पर दाढ़ी छोटी।
काज़ल लगा हाथ मुँह पोता, सारी डिब्बी थोपी,
माथे पर हैं तिलक लगाए सिर पर तुर्की टोपी।
कुर्सी पर वे लेट रहे हैं, रखे पलंग पर पैर,
यह पंडित जी या मौलाना, खुदा करे अब खैर।
-साभार : बालसखा, अक्तूबर, 1946, 361