दिल के रिश्ते दिमाग़ तक पहुँचे
दिल के रिश्ते दिमाग़ तक पहुँचे
साफ़ चेहरे भी दाग़ तक पहुँचे
बाद इसके चराग़ लौ देगा,
पहले इक लौ चराग़ तक पहुँचे
जज़्ब रग रग में हो चुका था वो
देर से हम फ़राग़ तक पहुँचे
साथ रहते हैं कैसे ख़ारो गुल
देखना था सो बाग़ तक पहुँचे
मुझको मेरा वजूद हो हासिल
कोई मेरे सुराग़ तक पहुँचे
मय न पहुँची हमारे होंटों तक
बारहा हम अयाग़ तक पहुँचे
होश आ जाये ऐ ‘ज़िया’ इसको
दिल जो मेरा दिमाग़ तक पहुँचे
ये तो अच्छा है जो निहाँ है दिल
ये तो अच्छा है जो निहाँ है दिल
वरना कब से धुआँ धुआँ है दिल
देखिये गर तो सिर्फ़ पैक़र है
सोचिये गर तो इक जहाँ है दिल
याद आयातुम्हे दिया था ना
ये तो बतलाओ अब कहाँ है दिल
जिस्म तहज़ीब ए हिन्द है मेरा
साँस है बिरहमन तो ख़ाँ है दिल
वो ये कहता है दिल तो बस दिल है
मैं ये कहता हूँ मेरी जाँ है दिल
कुछ ख़बर ही नहीं है सीने को
जब कि सीने के दरमियाँ है दिल
किसी की शक़्ल से सीरत पता नहीं चलती
किसी की शक्ल से सीरत पता नहीं चलती
कि पानी देख के लज़्ज़त पता नहीं चलती
ख़ुदा का शुक्र है कमरे में आइना भी है
नहीं तो अपनी ही हालत पता नहीं चलती
छलकते अश्क सभी को दिखाई देते हैं
किसी को ख़्वाब की हिजरत पता नहीं चलती
ऐ ज़िन्दगी तुझे क्या क्या न सोचता मैं भी
मुझे जो तेरी हक़ीक़त पता नहीं चलती
तमाम रंग हो आँखों में भर लिए इक साथ
सो अब किसी की भी रंगत पता नहीं चलती
दिलो दिमाग़ बराबर ही साथ रखते हो
‘ज़िया’ तुम्हारी तो सुहबत पता नहीं चलती
वक़्त के साथ मैं चलूँ कि नहीं
वक़्त के साथ मैं चलूँ कि नहीं
सोचता हूँ वफ़ा करूँ कि नहीं
तुझसे मिलकर तेरा न हो जाऊँ
सो बता तुझसे मैं मिलूँ कि नहीं
वो मुसल्सल सवाल करता है
उसको कोई जवाब दूँ कि नहीं
उसने मुड़ मुड़ के बारहा देखा
मैं उसे देखता भी हूँ कि नहीं
मेरे ही ज़िस्म तक न पहुँचा नूर
सोच में है दिया जलूँ कि नहीं
ये ख़ुशी है छुईमुई जैसी
मशवरा दो इसे छुऊँ कि नहीं
ऐ’ज़िया’ तू है जुस्तजू मेरी
मैं तेरा इन्तिज़ार हूँ कि नहीं
ज़ीस्त अपनी पे आ गई आख़िर
ज़ीस्त अपनी पे आ गई आख़िर
नोंच ली इसने रूह भी आख़िर
बढ़ गईं थीं ज़रूरते इतनी
शर्म खूँटी पे टांग दी आख़िर
तेरा ग़म याद और तन्हाई
मैंने मंज़िल तलाश ली आख़िर
तुझ पे ही ख़त्म था सफ़र मेरा
मैं था सूरज तू शाम थी आख़िर
ख़ाक ही है वजूद हर शय का
और अंजाम ख़ाक ही आख़िर
ख़ूँ जलाने का तजरुबा है ‘ज़िया’
रात दिन की है शायरी आख़िर
वही मुझको नज़रअंदाज़ करते हैं
वही हमको नज़र अंदाज़ करते हैं
जो कहते थे कि तुम पर नाज़ करते हैं
दुआ है ख़ैर हो अंजाम इस दिल का
कि अब हम इश्क़ का आग़ाज़ करते हैं
सुनो तन्हाइयों ज़ाहिर न करना तुम
कि अब से हम तुम्हें हमराज़ करते हैं
वो लम्हे ख़ामुशी मंसूब है जिनसे
वही दिल में बहुत आवाज़ करते हैं
हमारे पर कतरने से न होगा कुछ
हमारे हौसले परवाज़ करते हैं
भरोसा उठ गया है ऐ’ज़िया’सबसे
सो अब हम ख़ुद को ही दमसाज़ करते हैं