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सुभाष पाण्डेय की रचनाएँ

का चिन्ता के रोग लगाईं?

का ना पवनीं ए जिनिगी से
जवना खातिर सोग मनाईं?
कद काठी मजबूत देह बा
का चिन्ता के रोग लगाईं?

जवने चहनीं पियनीं, खइनीं,
जहवाँ इच्छा अइनीं, गइनीं।
नाम, मान, यश सजी दिशा में
मीत, सनेही पाइ धधइनीं।
ना कुंठा वैकुंठ बिराजीं
कथि के अब उतजोग लगाईं?
का चिन्ता के रोग लगाईं?

रिश्ता-नाता ठीक निबहनीं,
आपन हारल तनिक न कहनीं।
सभका खातिर लोर बहवनीं,
खुशी-खुशी तकलीफो सहनीं।
छप्पन बिजन मिलल भा सूखल
प्रेम सहित सब भोग लगाईं।
का चिन्ता के रोग लगाईं?

विनयी हरखित घर परिवारी,
सुत, दारा सब अज्ञाकारी।
सखा, सहोदर, सुता, भतीजा
सुन्नर सुन्नर सद् आचारी।
हँसत कटत दिन रतिया सदईं
बइठल देखत जोग सधाईं।
का चिन्ता के रोग लगाईं?

रोज किरिनि आ के दुलरावे,
बेना निज कर पवन डुलावे।
रतिया गोदी में बइठा के
आँचर तानत गोद सुतावे।
ई सुख छोड़ि अनत जाए के
हम काहें हड़बोंग मचाईं?
का चिन्ता के रोग लगाईं?

अपने में खूद के बइठाईं,
ना शत ठाँवन मन दउराईं।
कबहूँ पावत, कबहूँ खोवत
कविता खातिर कलम चलाईं।
गुजरत बा बहुते मस्ती में
मस्त रहे सब लोग लुगाई।
का चिन्ता के रोग लगाईं?

हँसावत-हँसावत रुलावल गइल बा

करीं ना ठिठोली सतावल गइल बा।
हँसावत-हँसावत रुलावल गइल बा।

विदा के मुहूरत मुकर्रर के पहिले
अचके में डोली पठावल गइल बा।

अम्बर ले ऊँचा पता ना कहाँ ले
गिरावे से पहिले चढ़ावल गइल बा।

सुला के बड़ा चैन से सेज-सपने
बस्ती में काठी धरावल गइल बा।

जुलुमी कहानी लिखाहीं का पहिले
कलम से सियाही सुखावल गइल बा।

खनत सोरि सहिते इँजोरा के आशा
तमस के किसानी करावल गइल बा।

‘संगीत’ सँवरेला वादी सुरन से
विवादी सुरन के सटावल गइल बा।

का फायदा?

फूल मुरुझात से, सुखि गइल पात से
कवनो बगिया सजवला से का फायदा?
तेल कतनो भरे, रात भर ना जरे
दीप अइसन जरवला से का फायदा?

ऊँच कतनो महल भा अटारी रहे
खूब पसरल रतन धन दुआरी रहे
मन कहे ना झुकबि ना करबि बंदना
माथ झुठहूँ झुकवला से का फायदा?

खूब हल्ला मचल ऊ पियासे मरल
ताल कुँइया नदी सब लबालब भरल
नाहिं पहुँचल कुआँ खुद लगे आइ के
तब पियासल कहवला से का फायदा?

डेग सङ ना उठावे गरज जब परी
पास आवे ना देखत दरद के घड़ी
चोट पर चोट मारे हिया की जरी
मीत अइसन बनवला से का फायदा?

शब्द सुन्नर सहेजल सजावल रहे
पाँति में रंग-ऐपन बिछावल रहे
पीर के नाद उठि के न गुंजल जले ,
गीत अइसन सुनवला से का फायदा?

रहि नगीच मधुगीत लिखीं

रहि नगीच मधुगीत लिखीं।
दूबकोर पर ओस बूँद के
नवल सुकोमल प्रीत लिखीं।

टेसु ललाई अधरनि पसरल
भोर किरिनियाँ साटि गइल
अंग-अंग के रंग सुनहला
पूनम चन्दा बाँटि गइल
सुखद अम्हाउर परस गात के
सब पावन परतीत लिखीं।

अँखियाँ जस खंजन के पँखिया
चितवत चित्त पवित्र भइल
साँस सुगंधित सोत सरब जग
मँहकत पसरल इत्र भइल
हारल मन सरबस तहरे से
तबहूँ आपन जीत लिखीं।

मुखछवि जलपूरित सरवर में
खिलल गुलाबी लगे कमल
निरखत लुकवावत पलकन में
परम मधुर अनुभूति विमल
कोमलताई अंग अंग के
सोनकलश नवनीत लिखीं।

भरमत मन अझुरात छने छन
सहज पाइ बिसराम थमल
झुकल माथ, जुड़ि गइल हाथ अब
रमता एही ठाँव रमल
गुन गावत सझुरावत बानी
मनहर कथा पुनीत लिखीं।

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