तेरा ही आस्ताना चाहती हूँ
तेरा ही आस्ताना चाहती हूँ
यहीं धूनी रमाना चाहती हूँ
है मेरी रूह इक गहरा समंदर
सो ख़ुद में डूब जाना चाहती हूँ
मेरी ख़ाना-बदोशी थक चुकी है
कहीं कोई ठिकाना चाहती हूँ
है तुझ से दूर जाने का ये मक़सद
तुझे नज़दीक़ लाना चाहती हूँ
जो हाथों से फ़िसलते जा रहे हैं
मैं वो लम्हे बचाना चाहती हूँ
नदी मैं हूँ तू मेरा है समंदर
बस अब तुझ में समाना चाहती हूँ
उजालों के लिए ख़ुद को जलाकर
उजालों में नहाना चाहती हूँ
आजकल प्यार कर रहे हो क्या
आजकल प्यार कर रहे हो क्या
दिल को बीमार कर रहे हो क्या
हर तरफ़ तुम दिखाई देते हो
ये चमत्कार कर रहे हो क्या
आईना पूछने लगा मुझसे
ख़ुद को बेदार कर रहे हो क्या
शौक़ फूलों का पाल कर ऐ दिल
ज़िन्दगी ख़ार कर रहे हो क्या
तुम तो शर्तों पे प्यार करते हो
कोई व्यापार कर रहे हो क्या
उसकी ऊँची उड़ान देखो तो
उसकी ऊँची उड़ान देखो तो
ख़ुद पे उसका गुमान देखो तो
आसमां नापने को निकली है
एक नन्ही सी जान देखो तो
बाँटता है जो ग़म ज़माने के
दिल पे उसके निशान देखो तो
रूह जब जिस्म छोड़ देती है
रुख़ पे तब इत्मिनान देखो तो
उस ने ख़ुद को समझ लिया शायद
हो गया बेज़ुबान देखो तो
सदा कोई मुसलसल आ रही है
सदा कोई मुसलसल आ रही है
थकन क़दमों को रोके जा रही है
तेरी उम्मीद तेरे दर की ख़्वाहिश
अधूरे ख़्वाब सी तड़पा रही है
बढ़ी रफ़्तार मेरी धड़कनों की
तेरी साँसों की ख़ुशबू आ रही है
उधर टूटा है तारा आसमाँ से
दबी ख़्वाहिश लबों तक आ रही है
क़रीब आए हैं वो जब से हमारे
हर इक ज़ंजीर खुलती जा रही है
लम्हा-लम्हा बिखर रही हूँ मैं
लम्हा-लम्हा बिखर रही हूँ मैं
आइनों से गुज़र रही हूँ मैं
उसकी आँखों के रास्ते होकर
दिल का ज़ीना उतर रही हूँ मैं
सानेहा वो गुज़र गया मुझ पर
अपने साए से डर रही हूँ मैं
मुझको लूटा है सिर्फ़ ख़ुशियों ने
दर्द पाकर सँवर रही हूँ मैं
ज़िन्दगी कह रही है चुपके से
धीरे-धीरे गुज़र रही हूँ मैं
ज़माने को भले ही इश्क़ पागलपन सा लगता है
ज़माने को भले ही इश्क़ पागलपन सा लगता है
मगर इक अजनबी मुझको मेरी धड़कन सा लगता है
महक अपनी लुटा देता है वो हर सू फ़ज़ाओं में
मोहबब्त से भरा हो दिल तो वो चन्दन सा लगता है
ये मौसम का असर है या के फिर है इश्क़ का जादू
वो रस्मन हाल पूछे, तो भी अपनापन सा लगता है
चुराकर दिल मेरा मुझसे चुराने लग गया आँखें
वो मेरी जान अब इस जान का दुश्मन सा लगता है
बहुत मग़रूर है, ज़ालिम है, पत्थर दिल भी है,लेकिन
न जाने क्यों मेरे जीने का वो कारन सा लगता है
किसी के वस्ल की बारिश की मुझमे है नमी इतनी
के अब तो हिज्र भी मुझको किसी सावन सा लगता है
तोड़ देती हैं बेड़ियाँ अक्सर
तोड़ देती हैं बेड़ियाँ अक्सर
क़ैद में रह के बेटियाँ अक्सर
चीर देती हैं दिल के दामन को
तंग ज़ेह्नों की बर्छियां अक्सर
ख़्वाब आँखों में छोड़ कर आधे
जाग जाती हैं लड़कियाँ अक्सर
ज़ह्र रिश्तों में घोल देती हैं
सख़्त लहजे की तल्खियां अक्सर
नाम पर्ची पे उसका लिख लिख के
दिल लगाता है अर्ज़ियाँ अक्सर
जब भी सोचूँ मैं उसके बारे में
याद आती हैं खूबियाँ अक्सर
ज़िन्दगी औरतों को देती हैं
घर की छोटी सी खिड़कियाँ अक्सर
दिल में चुभती हैं आज भी मेरे
टूटे रिश्तों की किर्चियाँ अक्सर
जिनमें एहसास के ठहराव थे गहरे वाले
जिनमें एहसास के ठहराव थे गहरे वाले
अब नज़र आते नहीं लोग वो पहले वाले
दर्द के गहरे समंदर से निकलने वाले
अब ये मोती नहीं आँखों में ठहरने वाले
होश कब ले के गए मेरे न मालूम चला
उसके नैना मेरे नैनों में उतरने वाले
उसने जाते हुए मुड़ कर नहीं देखा मुझ को
दिल को धड़का ये हुआ हम हैं बिछड़ने वाले
ग़म ज़दा वक़्त में बेनूर न हो जाएं कहीं
दौरे हाज़िर में मसाइल से गुज़रने वाले
ख़्वाहिशें,ख़्वाब, बुलन्दी है फ़क़त साँसों तक
साथ ले जाते नहीं कुछ भी तो जाने वाले
किसी के हिज्र में दिल की रवानी और होती है
किसी के हिज्र में दिल की रवानी और होती है
मुहब्बत दर्द में पलकर सयानी और होती है
ये दौलत और शोहरत से कभी हासिल नहीं होती
मोहब्बत से दिलों पर हुक़्मरानी और होती है
चमकते, मुस्कुराते लोग दिखते तो हैं महफ़िल में
मगर पर्दे के पीछे की कहानी और होती है
मैं अपने ही लहू से लिख रही हूँ दास्ताँ अपनी
जुनूं होता है जिसमें वो जवानी और होती है
सलीक़ा सिर्फ़ दौलत और कपड़ों से नहीं आता
नफ़ासत शख्सियत में ख़ानदानी और होती है
कहीं ग़म थाम लेगा और कहीं लाचारियां होंगी
कहीं ग़म थाम लेगा और कहीं लाचारियां होंगी
“तमन्नाओं की बस्ती में बहुत दुस्वारियाँ होंगी
भड़क उट्ठी ये कैसी आग मेरे दिल की बस्ती में
मेरे सीने में ही शायद कहीं चिंगारियां होंगी
सुनो! तुम सोच कर राह-ए-मुहब्बत में क़दम रखना
यहाँ मंज़िल से पहले राह में रुसवाईयाँ होंगी
अगर वो दूर जाएगा तो मुझ तक लौट आएगा
सफ़र में साथ उस के मेरी भी परछाइयाँ होंगी
नहीं उम्मीद कोई साथ आए मेरे मंज़िल तक
यही तो राह सच की है जहां तन्हाईयाँ होंगी
मुझे उस से कोई शिक़वा नहीं है
मुझे उस से कोई शिक़वा नहीं है
बुरा है वो मगर इतना नहीं है
कोई भी बात कह देता है सीधी
वो कड़वा है मगर झूठा नहीं है
दिलों के रब्त में मुश्किल है बस ये
कोई दिल से कभी मिलता नहीं है
मुहब्बत हो गई उस को है जब से
“वो तन्हाई में भी तनहा नहीं है”
मुझे ले चल किसी ऐसी जगह तू
जहाँ भी इश्क़ पर पहरा नहीं है
याद उस की जो पास आ बैठी
याद उस की जो पास आ बैठी
नींद आँखों से दूर जा बैठी
उस से मिलने की जुस्तजू जाएगी
ख़्वाब फिर से नए सजा बैठी
बन्दगी कर के एक पत्थर की
उसको अपना ख़ुदा बना बैठी
उसने आँखों में मेरी क्या झाँका
आईना मैं उसे बना बैठी
चाँद पाने की ख़्वाहिशें जागीं
दूर अपनी ज़मीं से जा बैठी
कोई भी चोट तेरी अब हरी न रह जाए
कोई भी चोट तेरी अब हरी न रह जाए
मेरे ख़ुलूस में कोई कमी न रह जाए
वफ़ा के नाम पे झूटी जो कौल तूने दी
तेरी वो दिल्लगी दिल से लगी न रह जाए
यूँ हसरतों का मेरी तार तार हो जाना
मेरे वजूद में लाचारगी न रह जाए
मुझे तलाश रही है कोई ख़ुशी शायद
वक़ार-ए-सब्र में कोई कमी न रह जाए
बुलंदियों पे जो पहुंचो तो याद ये रखना
किसी की बात कोई अनसुनी न रह जाए